दुनियाभर में तेजी से बढ़ते कार्बन उत्सर्जन ने पर्यावरण को बुरी तरह से प्रभावित किया है. इसकी वजह से बेमौमस बारिश, सूखा जैसी स्थितियां देखने को मिल रही हैं. इसके नतीजे में कृषि क्षेत्र को सर्वाधिक नुकसान उठाना पड़ रहा है. एनर्जी थिंक टैंक एंबर की नई रिपोर्ट में कहा गया है कि भारत के तीन बड़ी इंडस्ट्री स्टील, सीमेंट और एल्युमीनियम के पास सोलर एनर्जी या रिन्यूएबल एनर्जी को अपनाने का मौका है. ये तीनों इंडस्ट्री अकेले 290 लाख टन तक कार्बन उत्सर्जन को घटा सकती हैं. कहा गया है कि छत्तीसगढ़ और ओडिशा ग्रीन मैन्यूफैक्चरिंग का सेंटर बन सकते हैं.
एनर्जी थिंक टैंक Ember की नई रिपोर्ट के मुताबिक भारी उद्योग कंपनियों के लिए 20 गीगावॉट (20 GW) सोलर एनर्जी पैदा करने का सुनहरा मौका है. रिपोर्ट के अनुसार देश के तीन बड़े भारी उद्योग स्टील, सीमेंट और एल्युमीनियम को 20 गीगावाट (GW) ओपन एक्सेस सोलर एनर्जी का बड़ा अवसर मिल सकता है, भले ही वे फिलहाल अपने बिजली उत्पादन के लिए कैप्टिव कोयले पर निर्भर हों. एनर्जी थिंक टैंक एंबर (Ember) की नई रिपोर्ट के मुताबिक अगर ये उद्योग रिन्यूएबल एनर्जी को अपनाते हैं तो वे 29 मिलियन टन यानी 290 लाख टन केमिकल कंपाउंड कार्बन डाइऑक्साइड (CO₂) एमिशन कम कर सकते हैं और उत्पादन लागत भी घटा सकते हैं.
रिपोर्ट के अनुसार स्टील सेक्टर अकेले इस अवसर में 9.4 GW का योगदान दे सकता है, क्योंकि यह महंगी ग्रिड बिजली पर निर्भर है. सेकेंडरी स्टील प्लांट्स में इस्तेमाल होने वाली आर्क फर्नेस जैसी तकनीकों में सौर ऊर्जा से लागत 10 फीसदी तक कम हो सकती है. वहीं, सीमेंट और एल्युमीनियम उद्योग कैप्टिव कोयले पर निर्भर हैं, फिर भी 11 GW की सौर क्षमता जोड़ सकते हैं.
ग्रीन मैन्यूफैक्चरिंग का सेंटर बन सकते हैं छत्तीसगढ़ और ओडिशा
रिपोर्ट बताती है कि छत्तीसगढ़ और ओडिशा इस 20 GW अवसर में लगभग 40 फीसदी हिस्सेदारी रखते हैं. इन राज्यों में भारी उद्योगों की अधिकता और अनुकूल नीति के कारण ओपन एक्सेस सोलर एनर्जी को अपनाना आसान है. सरकार की ओर से क्रॉस सब्सिडी शुल्क में छूट और अन्य रियायतें इस परिवर्तन को बढ़ावा दे सकती हैं. थिंक टैंक Ember के एशिया विश्लेषक दत्तात्रेय दास के अनुसार ओडिशा और छत्तीसगढ़ लंबे समय से औद्योगिक केंद्र रहे हैं. अब रिन्यूएबल एनर्जी को अपनाकर ये खुद को ग्रीन मैन्यूफैक्चरिंग हब में बदल सकते हैं. ओडिशा पहले से ही ग्रीन इंडस्ट्रियल पार्क की योजना बना रहा है, जिससे एक निर्यात-प्रधान, कम-कार्बन औद्योगिक भविष्य तैयार हो सकता है.
सिर्फ लागत ही नहीं, रणनीतिक लाभ भी
- रिन्यूएबल एनर्जी को अपनाने से उद्योगों को आर्थिक लाभ के साथ-साथ रणनीतिक बढ़त भी मिलेगी.
- स्टील सेक्टर को ग्रीन स्टील टैक्सोनॉमी में शामिल होने का मौका मिलेगा, जिससे वे ग्रीन प्रीमियम मार्केट में एंट्री कर सकते हैं.
- यूरोप जैसे बाजारों में कार्बन बॉर्डर टैक्स लागू होने से, कम एमिशन वाली कंपनियों को निर्यात में फायदा होगा.
- रिन्यूएबल एनर्जी से 50 फीसदी बिजली आपूर्ति
IEEFA के सस्टेनेबल फाइनेंस विशेषज्ञ लबन्या प्रकाश जेना के मुताबिक भारत का औद्योगिक क्षेत्र डिकार्बोनाइजेशन के लिए रिन्यूएबल एनर्जी आधारित विद्युतीकरण को तेजी से अपना सकता है. लेकिन इस बदलाव को सफल बनाने के लिए नीतिगत और संस्थागत बाधाओं को दूर करना जरूरी है. भारी उद्योग वर्तमान में अपनी 50 फीसदी बिजली जरूरतें रिन्यूएबल एनर्जी से पूरी कर सकते हैं, जो लागत के लिहाज से किफायती है. हालांकि, इससे आगे बढ़ने के लिए उन्नत रणनीतियों की जरूरत होगी.
एनर्जी स्टोरेज बड़ी चुनौती
Ember के अनुसार 80 फीसदी रिन्यूएबल एनर्जी यानी अक्षय ऊर्जा अपनाना संभव है, लेकिन इसके लिए एनर्जी स्टोरेज की जरूरत होगी, जिससे लागत 1.4 गुना बढ़ सकती है. 90 फीसदी अक्षय ऊर्जा की लागत 1.6 गुना होगी, लेकिन यह डिकार्बोनाइजेशन लक्ष्यों और अंतरराष्ट्रीय नियमों को देखते हुए स्वीकार्य है. 100 फीसदी (24/7) रिन्यूएबल एनर्जी हासिल करना फिलहाल चुनौतीपूर्ण है, क्योंकि इसमें एनर्जी स्टोरेज की लागत कुल खर्च का 60 फीसदी होती है.
सस्ता साधन है रिन्यूएबल एनर्जी
थिंक टैंक एंबर के कार्यकारी निदेशक किलियन डेली के अनुसार रिन्यूएबल एनर्जी पहले से ही भारतीय उद्योगों के लिए किफायती समाधान बन चुकी है. 24/7 स्वच्छ बिजली रिन्यूएबल एनर्जी की भविष्य की नई मानक होगी. इस रिपोर्ट से साफ है कि कंपनियां अभी भी लचीली मांग, स्टोरेज और मार्केट डिजाइन में इनोवेशन करके लगातार रिन्यूएबल एनर्जी सप्लाई की दिशा में आगे बढ़ सकती हैं.
पर्यावरण सुधार और कृषि पर खतरे कम होंगे
ऐसे में उम्मीद की जा रही है कि भारत का औद्योगिक क्षेत्र स्वच्छ ऊर्जा की ओर तेज़ी से बढ़ सकता है, जिससे उत्पादन लागत घटेगी, वैश्विक प्रतिस्पर्धा बढ़ेगी और पर्यावरणीय लक्ष्य पूरे होंगे. छत्तीसगढ़ और ओडिशा जैसे राज्य इस बदलाव में अग्रणी भूमिका निभा सकते हैं. हालांकि, सरकार को नीतिगत बाधाओं को दूर कर इस अवसर को पूरी तरह भुनाने के लिए कदम उठाने होंगे. इससे पर्यावरण को होने वाले नुकसान में सुधार और खेती के खतरों को कम करने में मदद मिलेगी.