मल्चिंग, आजकल नए तरीके की खेती करने वाले किसानों की फेवरिट टेक्निक बन गई है. यहां तक कि कुछ लोग अब किचन गार्डन में भी इस टेक्निक को अपनाने लगे हैं. प्लास्टिक मल्चिंग के फायदे इतने हैं कि किसान इसे नजरअंदाज भी नहीं कर सकते हैं. बाजार में यूं तो कई तरह के प्लास्टिक मल्च मौजूद हैं जिनका प्रयोग कई तरह की फसलों में होता है. लेकिन इसी प्लास्टिक मल्चिंग से कुछ नुकसान भी हैं जिसकी वजह से इसके बहुत ज्यादा प्रयोग से बचने की सलाह भी दी जाती है.
क्यों होता है मल्चिंग का प्रयोग
मल्चिंग का प्रयोग मुख्य तौर पर ज्यादा पानी से मिट्टी को होने वाले नुकसान को रोकना है ताकि कोई भी फसल पानी की नियंत्रित मात्रा के साथ बढ़े. इसके अलावा यह मिट्टी के तापमान, पानी के प्रयोग की क्षमता, पौधों के विकास, फसलों की गुणवत्ता के साथ ही साथ उसे खरपतवार और कीड़ों के संक्रमण से भी बचाता है. मल्च यानी मिट्टी की सतह पर प्रयोग की जाने वाली सामग्री और आजकल इस टेक्निक का प्रयोग कई तरह से किया जाने लगा है.
फसलों पर होता है गलत असर
ऐसी कई रिसर्च हुई हैं जिनसे पता लगता है कि बाजार में मिलने वाले रंग-बिरंगे मल्च का फसलों पर गलत प्रभाव भी पड़ता है. कुछ पौधों में वृद्धि और फसल में कमी, कीटों का संक्रमण, माइक्रोप्लास्टिक प्रदूषण, मिट्टी का जमाव जैसे नुकसान भी देखे गए हैं.
बहुत ज्यादा मल्चिंग की वजह से घास के दबने का डर रहता है जिससे ऑक्सीजन सही तरह से सप्लाई नहीं मिल पाती है.
मल्चिंग की वजह से कीड़ों को छिपने की जगह मिल जाती है और इससे पौधों में संक्रमण हो सकता है.
मल्चिंग की वजह से मिट्टी का तापमान भी बढ़ जाता है जिससे माइक्रोब्स बढ़ जाते हैं. इससे भी फसल को नुकसान हो सकता है.
मल्चिंग से मिट्टी में प्लास्टिक के छोटे-छोटे कण मिल जाते हैं और इसकी वजह से प्रदूषण बढ़ता है.
ज्यादा मल्चिंग मिट्टी का बायोलॉजिकल सिस्टम खराब कर सकती है.
मिट्टी के नमूने और तापमान में बदलाव होता है और इससे माइक्रोक्लाइमेट का निर्माण होता है.
प्लास्टिक मल्चिंग से कुछ खास कीड़ें फसलों के लिए आकर्षित हो सकते हैं.
सूखे बायो मल्चिंग से आग लगने का खतरा भी बढ़ जाता है.
बायो मल्चिंग की वजह से हल्की बारिश मिट्टी तक नहीं पहुंच पाती.
फसल के बाद मल्चिंग को खत्म करना भी एक बड़ा सवाल होता है.