स्मार्ट खेती की ओर बढ़ रहे किसान.. मल्चिंग तकनीक बनी पसंद, जान लें तरीका

मल्चिंग एक ऐसी तकनीक है जो मिट्टी की नमी बनाए रखने, खरपतवारों को रोकने और फसलों की उत्पादकता बढ़ाने में मदद करती है. इससे किसान कम लागत में अधिक मुनाफा कमा सकते हैं.

नोएडा | Published: 14 Apr, 2025 | 08:51 PM

किसान कम लागत में ज्यादा मुनाफा पाने के लिए आजकल स्मार्ट खेती की ओर रुख कर रहे हैं. स्मार्ट खेती का हिस्सा है मल्चिंग तकनीक. इस तकनीक के जरिए सिंचाई की जरूरत कम होती है और कीटों के साथ ही रोगों से फसलों को बचाए रखने में मदद मिलती है. आज के समय में बढ़ता जल संकट और बदलते जलवायु में बदलाव को देखते हुए मल्चिंग तकनीक किसानों के लिए एक फायदेमंद और टिकाऊ कृषि उपाय बनकर उभर रहा है. यह तकनीक किसानों के लिए बेहद कारगर साबित हो रही है.

मल्चिंग क्या होती है और कैसे होती है

साधारण शब्दों में कहें तो मल्चिंग पौधों के चारों ओर बिछाई जाने वाली सामग्री है, जो मिट्टी को ढंकने, नमी बनाए रखने, खरपतवारों को रोकने, मिट्टी के तापमान को नियंत्रित करने और मिट्टी की उर्वरता में सुधार करने के लिए उपयोग की जाती है. वहीं, मल्चिंग प्राकृतिक रूप से भी की जाती है. जैसे गिरे हुए सूखे पौधे भी मल्चिंगिंग के रूप में काम करते हैं. लेकिन, बागवानी में इसके लिए कम्पोस्ट, लकड़ी की छीलन, गोबर, अखबार, कार्ड बोर्ड या यहां तक कि समुद्री शैवाल तक का इस्तेमाल किया जाता है.

मल्चिंग तकनीक क्यों जरूरी है

मल्चिंग तकनीक से खेत की मिट्टी की नमी बरकरार रहती है, खरपतवार (जंगली घास) कम उगती है और मिट्टी का तापमान संतुलित रहता है. इसके अलावा ठंडे मौसम में मिट्टी को गर्म रखता है और गर्मियों में ठंडा, मिट्टी के कटाव और सख्त होने से बचाता है, पौधों की पत्तियों पर मिट्टी नहीं छिटकती, जिससे फंगल बीमारियों का खतरा घटता है, जैविक मल्चिंग मिट्टी को पोषक तत्व भी देता है, जिससे उसकी उर्वरता बढ़ती है.

मल्चिंग के प्रकार

मल्चिंग दो तरह से होती है एक तो जैविक मल्चिंग होती है, जिसमें सूखे पत्ते, पुआल, पत्तियां और लकड़ी के टुकड़े. यह धीरे-धीरे सड़ते हैं और मिट्टी को पोषक तत्व देते हैं. काली प्लास्टिक शीट, सिल्वर प्लास्टिक, रबर चिप्स, बजरी या कृत्रिम पदार्थों से भी मल्चिंग की जाती है. इसके इस्तेमाल मिट्टी को ढंकते हैं, लेकिन मिट्टी को पोषण नहीं मिल पाता है.

मल्चिंग लगाने का तरीका

मल्चिंग लगाने का तरीका मौसम के हिसाब से अलग-अलग होता है. बसंत में जब ठंड खत्म हो जाए, तो पुराने मल्चिंग को हटाकर 2-3 इंच मोटी नई मल्चिंग की परत बिछा दें. पतझड़ में पहली ठंड के बाद 3-4 इंच मोटी जैविक परत जैसे सूखे पत्ते या भूसी डालें, ताकि पौधे सर्दियों के लिए अच्छे तरीके से तैयार हो सकें.

मल्चिंग का इस्तेमाल करने से पहले इन बातों का रखें ध्यान

  • – बहुत ज्यादा मल्चिंग न लगाएं, क्योंकि यह जड़ों को सड़ा सकती है.
  • – पेड़ों के तनों और पौधों की जड़ों से 6 से 12 इंच की दूरी पर मल्चिंग रखें, ताकि कीड़े और नमी से नुकसान न हो.
  • – कुछ लकड़ी आधारित मल्चिंग (जैसे ताजा आरा) मिट्टी से नाइट्रोजन खींच लेते हैं, इसलिए इनके साथ नाइट्रोजन युक्त खाद मिलाएं.