खेती की दुनिया में नई तकनीक के रूप में हैप्पी सीडर मशीन एक महत्वपूर्ण बदलाव लेकर आई है. यह मशीन धान की कटाई के बाद खेत में बचे पुआल के बीच बिना जुताई किए गेहूं, चना, मसूर और मटर जैसी फसलों की सीधी बुआई कर सकती है. इसके इस्तेमाल से न केवल सिंचाई में पानी की बचत होती है, बल्कि खेत की उर्वरता भी बनी रहती है. खास बात यह है कि पुआल जलाने की जरूरत नहीं पड़ती और यह खेत के लिए प्राकृतिक मल्च का काम भी करता है. इतना ही नहीं इसके खरीद पर बिहार सरकार 1,20,000 रुपये तक सब्सिडी दे रही है.
45 हॉर्स पावर वाले ट्रैक्टर में फिट होती है हैप्पी सीडर मशीन
हैपी सीडर मशीन खेती की दुनिया में बड़ा बदलाव ला रही है. यह एक ऐसी तकनीक है जो धान की कटाई के बाद खेत में बचे पुआल के बीच बिना जुताई किए गेहूं, चना, मसूर और मटर जैसी फसलों की सीधी बुआई कर सकती है. खास बात यह है कि इस मशीन का इस्तेमाल करने से सिंचाई में लगने वाले पानी की भी बचत होती है और खेत की उर्वरता भी बनी रहती है. हैपी सीडर मशीन में दो अलग-अलग बॉक्स लगे होते हैं, एक में खाद और दूसरे में बीज रखा जाता है. इतना ही नहीं मशीन 45 हॉर्स पावर या उससे ज्यादा के ट्रैक्टर में फिट होकर काम करती है और एक साथ नौ पंक्तियों में बुआई कर सकती है. खास बात यह है कि मशीन में गहराई को भी खेत की जरूरत के मुताबिक कम या ज्यादा किया जा सकता है.
जीरो टिलेज तकनीक से बुआई
काम करने के तरीके की बात करें तो, जब हार्वेस्टर से धान की फसल काट ली जाती है और खेत में पुआल फैल जाता है, तब यह मशीन मैदान में उतरती है. मशीन के एक्सल पर लगे ब्लेड पुआल को छोटे-छोटे टुकड़ों में काटकर खेत में बिछा देते हैं. वहीं दूसरी तरफ फार सिस्टम बिना खेत को जोते जीरो टिलेज तकनीक से बुआई कर देता है. यानी पुआल जलाने की कोई जरूरत नहीं पड़ती और बिछा हुआ पुआल खेत के लिए प्राकृतिक मल्च का काम करता है.
बिहार सरकार दे रही है 1 लाख 20 हजार की सब्सिडी
कीमत की बात करें तो हैप्पी सीडर मशीन की बाजार में अनुमानित कीमत करीब 2 लाख से 2.85 लाख रुपये के बीच है. किसानों की मदद के लिए बिहार सरकार ने इस मशीन पर सब्सिडी की घोषणा की है. सामान्य श्रेणी के किसानों को 75 प्रतिशत या अधिकतम 1,10,000 रुपये की सब्सिडी मिल रही है. वहीं अत्यंत पिछड़ा, अनुसूचित जाति या अनुसूचित जनजाति के किसानों को 80 प्रतिशत या अधिकतम 1,20,000 रुपये तक सब्सिडी दी जा रही है.
हालांकि, विशेषज्ञ मानते हैं कि कीमत और तकनीकी जानकारी की कमी छोटे और सीमांत किसानों के लिए एक चुनौती बन सकती है. इसके बावजूद, जो किसान इस तकनीक को अपना पा रहे हैं, उनके लिए हैपी सीडर खेती में एक नया अध्याय साबित हो रही है.