लीडिंग टेक्नोलॉजी जायंट गूगल सैटेलाइट इमेजरी की मदद से एक डिजिटल एग्री-स्टैक तैयार कर रहा है. उसने एक बेस लेयर के साथ शुरुआत की है जो खेत की सीमाओं की पहचान करने में मदद करेगी. एक अधिकारी की तरफ से इस बात की जानकारी दी गई है. न्यूज एजेंसी पीटीआई ने गूगल डीपमाइंड के एक सीनियर डायरेक्टर मनीष गुप्ता के हवाले से कहा कि स्टैक की इस बेस लेयर के डेटा और विश्लेषण का प्रयोग सब्सिडी भुगतान, कृषि बीमा या कृषि ऋण को बेहतर बनाने जैसे कई कामों में किया जा सकेगा.
गूगल का डिजिटल एग्री स्टैक
गुप्ता ने पिछले दिनों मुंबई टेक वीक में बोलते हुए कहा, ‘हमने पहला ऐसा मॉडल बनाया है जो सैटेलाइट इमेजरी विश्लेषण का प्रयोग करके अब यूज पैटर्न के आधार पर खेत की सीमाओं की पहचान करना शुरू कर सकता है. साथ ही वह इस बात का पता लगाना भी शुरू कर देगा कि किसान कौन सी फसल उगा सकते हैं और इस तरह की कई और चीजों के लिए इसका प्रयोग किया जा सकता है.’ उन्होंने बताया कि मॉडल ने यूआईडीएआई के आधार से प्रेरणा ली है. इसमें हर खेत को एक खास आईडी दी गई है और इसका मकसद ‘डिजिटल एग्री स्टैक’ की बेस लेयर के तौर पर काम करना है.
क्यों है इसकी जरूरत
गुप्ता ने बताया कि स्टार्टअप और बाकी कृषि-तकनीक खिलाड़ियों पर यह जिम्मेदारी है कि वे ऐसे सॉल्यूशंस को लेकर आएं जो प्लेटफॉर्म की तरफ से तैयार किए गए डेटा का प्रयोग करके ऋण फसल बीमा और सब्सिडी भी प्रदान कर सकें. गुप्ता ने इस तरह के प्रयोग की अहमियत के बारे में बताया. उन्होंने कहा कि भारतीय आबादी का 40 प्रतिशत हिस्सा खेती के कामों में लगा है. हर साल अकेले कृषि ऋण 550 बिलियन डॉलर का मौका है. इसमें से ज्यादातर हिस्सा ऐसे लोगों के पास हैं जो किसी बैंक या संस्था से ताल्लुक नहीं रखते हैं, जैसे कि साहूकार या महाजन.
गुप्ता की तरफ से यह बयान ऐसे समय में आया है जब भारत के बैंक किसानों को कर्ज देने के सिस्टम में सुधार करने की कोशिशों में लगे हुए हैं. सबसे बड़े ऋणदाता एसबीआई के चेयरमैन की तरफ से भी बैंक की तरफ से अपनी कृषि ऋण प्रक्रियाओं को और अधिक कुशल बनाने के लिए सैटेलाइट इमेजरी बेस्ड इनपुट का प्रयोग किया जा सकता है.
वॉयस रिकॉर्डिंग का डेटा
गुप्ता ने यह भी कहा कि भारतीय भाषाओं में मौजूद सामग्री बहुत सीमित है और गूगल इसी समस्या का समाधान करने की कोशिश कर रहा है. उन्होंने बताया कि कुल आठ बिलियन लोगों में से करीब 10 प्रतिशत लोग हिंदी बोलते हैं, लेकिन ऑनलाइन सामग्री में इस भाषा का हिस्सा केवल 0.1 प्रतिशत है. इस अंतर को खत्म करने के मकसद से गूगल ने ‘वाणी’ प्रोजेक्ट की शुरुआत की है. इसके तहत 700 से ज्यादा जिलों से वॉयस रिकॉर्डिंग के रूप में डेटा इकट्ठा करने की इच्छा है. उन्होंने कहा कि कंपनी ने परियोजना का पहला चरण शुरू किया है. इसके तहत इसने 80 जिलों से 14,000 घंटे का ऑडियो डेटा एकत्र किया है जिसमें लोग 59 भाषाओं में बात कर रहे हैं.