यह मुख्य तौर पर हिमाचल प्रदेश, उत्तराखंड, जम्मू और कश्मीर और पश्चिमी घाट के कुछ हिस्सों जैसे समशीतोष्ण जलवायु वाले पहाड़ी क्षेत्रों में उगाया जाता है. इस मसाले के लिए मध्यम बारिश के साथ ठंडी, समशीतोष्ण और उपोष्णकटिबंधीय जलवायु अच्छी मानी गई है. इसकी खेती ठीक से हो सके, इसलिए इसे रोजाना छह से आठ घंटे तक की धूप जरूरी होती है.
'ओरेगैनो' नाम ग्रीक शब्दों ओरोस (पहाड़) और गानोस (चमक) से आया है. माना जाता है कि इस मसाले की खोज ग्रीस में हुई थी. कहते हैं कि इसे एक देवी एफ्रोडाइट ने तैयार किया था. इाके बाद रोम के लोग पूरे यूरोप और फिर उत्तरी अफ्रीका तक इस मसाले को लेकर गए.
कुछ लोग इसे पिज्जा से ही जोड़ते हैं लेकिन इसका इतिहास काफी रोचक है. जहां ग्रीस के लोगों ने शादी समारोहों में खुशी के इजहार के लिए इसका प्रयोग किया तो वो अंतिम संस्कारों में भी शांति के लिए इसका प्रयोग करते हैं. वर्तमान समय में ग्रीस में त्वचा के घावों, मांसपेशियों के दर्द और एंटीसेप्टिक के तौर पर इसका प्रयोग होता है.
अगर भारत की बात करें तो इतिहासकारों का मानना है कि इसका उपयोग हजारों सालों से खाना पकाने और औषधीय जड़ी-बूटी के तौर पर किया जाता रहा है. यह कश्मीर से सिक्किम तक हिमालय में पाया जाता है.
भारत के कृषि विशेषज्ञों की मानें तो इस किस्म की खेती मैदानी और पहाड़ी दोनों क्षेत्रों में की जा सकती है. मैदानी इलाकों में किसान इसकी खेती केवल सर्दियों के मौसम में ही कर पाएंगे, जबकि पहाड़ी इलाकों में इसकी खेती साल में दो बार की जा सकती है.