बैगा समाज के अनुसार यह गोदना इस समाज की पहचान मानी जाती है. इसे बनाने का तरीका काफी मुश्किल होता है तो वहीं इसकी सांस्कृतिक और आध्यात्मिक महत्व भी होता है.
गोदना एक तरह की शरीर पर बनाई जाने वाली लोकल आर्ट है, जिसे विशेष प्रकार की स्याही और 32 सुइयों के माध्यम से बनाया जाता है.
इसके स्याही को प्राकृतिक रूप से तैयार किया जाता है. इसके लिए काले तिलों को पहले भूनकर गूंथा जाता है, फिर जलाकर उनकी राख को इकट्ठा किया जाता है. फिर इसे शरीर पर गुदने के लिए इस्तेमाल किया जाता है.
बैगा समाज में गोदना की परंपरा छह वर्ष की उम्र में लड़कियों के माथे पर ‘वी’ आकार का चिन्ह बनाकर शुरू कर दी जाती है. तो वहीं शादी के बाद महिलाएं इसे अपने शरीर पर माता-पिता की निशानी के तौर पर बनवाती हैं.
इसके पीछे बैगा समाज के लोगों का मानना है कि गहने तो बेचे जा सकते हैं, लेकिन गोदना हमेशा उनके साथ रहेगा. इसी कारण इसे काफी शुभ माना जाता है.
यह न केवल एक शारीरिक श्रृंगार नहीं, बल्कि यह महिलाओं को परिवार और समाज में विशेष सम्मान देता है. यह उनकी संस्कृति, परंपरा और धार्मिक आस्था का प्रतीक भी माना जाता है.
इसके साथ ही वह बताते हैं कि यह स्वास्थ्य के लिए काफी फायदेमंद होते है. यह गोदना शरीर की शिराओं पर प्रभाव डालता है, जिससे कई बीमारियों में बचाव होता है.
कुछ लोग इसे एक्यूपंचर जैसी प्रक्रिया मानते हैं. संताल समुदाय के लोगों का मानना है कि यदि कोई बच्चा चलने में असमर्थ है, तो उसकी जांघ के पास गोदना गुदवाने से उसकी कमजोरी दूर हो सकती है.