आज के समय में जहां किसान आधुनिक खेती और हाईब्रिड बीजों की ओर तेजी से बढ़ रहे हैं, वहीं सिसाना गांव के किसान सुनील चौहान ने परंपरा और सेहत दोनों को ध्यान में रखते हुए एक खास कदम उठाया है. उन्होंने अपनी ढाई बीघा जमीन में ‘सोना-मोती’ नाम की दो हजार साल पुरानी गेहूं की किस्म को उगाई है. यह किस्म की अपने खास आकार और रूप के लिए भी जाना जाता है. इसके साथ ही यह सिर्फ किसानों को अच्छी पैदावार ही नहीं बल्कि इस भागदौड़ भरी लाइफस्टाइल में भी लोगों को सेहतमंद बनाए रखती हैं.
देहरादून से लाया बीज, परंपरा से जोड़ी नई उम्मीद
मीडिया रिपोर्ट के अनुसार सुनील चौहान ने इस किस्म की बीज को देहरादून से लेकर आय थे, वहीं सुनील ने और भी कई किस्मों के धान पर प्रयोग किया है जिनमें उनका मानना है कि सोना-मोती गेहूं की खेती के लिए बेस्ट है. क्योंकि गेहूं के इस किस्म की खेती से उन्होंने करीब 15 क्विंटल गेहूं की उपज हो सकती है.
डायबिटीज और ब्लड शुगर को करता हैं कंट्रोल
सोना-मोती गेहूं न सिर्फ स्वाद में बेहतर है, बल्कि सेहत के लिए भी काफी फायदेमंद माना जाता है. इसमें ग्लूटेन की मात्रा कम होती है और ग्लाइसेमिक इंडेक्स भी सामान्य गेहूं से काफी कम होता है. यही वजह है कि यह गेहूं डायबिटीज, दिल की बीमारियों से मरीजों ब्लड शुगर को नियंत्रित करने में मदद करता है. इसके साथ ही इसमें प्रोटीन, फाइबर, विटामिन और मिनरल्स अधिक मात्रा में पाई जाती है जो आज कल के भागदौड़ भरी जिंदगी में लोगों की सेहत के लिए किसी प्राकृतिक औषधि से कम नहीं.
बाजार में भी जबरदस्त डिमांड
जहां सामान्य गेहूं की कीमत बाजार में 25-30 रुपये किलो के बीच रहती है, वहीं सोना-मोती की कीमत 80 से 150 रुपये प्रति किलो तक होती है. यानी यह गेहूं सिर्फ सेहत का खजाना नहीं, बल्कि किसानों के अच्छी आमदनी का साधन भी बन सकता है. वहीं सुनील चौहान का मानना है कि अगर इस गेहूं को ब्रांडिंग और सीधे ग्राहकों से जोड़ दिया जाए, तो किसान और अधिक मुनाफा कम सकते हैं.
इतिहास से जुड़ी है इस गेहूं की विरासत
वहीं गेहूं की किस्म सोना-मोती अपने इतिहास और विरासत के लिए भी जाना जाता है. कहानियों के अनुसार सोना-मोती गेहूं की किस्म हड़प्पा सभ्यता के जमाने से जुड़ी हुई मानी जाती है. इसकी एक खास पहचान यह भी है की इसके दाने गोल और छोटा होता है, जबकि आमतौर पर गेहूं के दाने लंबे होते हैं. इसके पौधे की ऊंचाई भी करीब दो फीट होती है, जिससे तेज हवा या बारिश के दौरान पौधे के गिरने का खतरा कम हो जाता है. यानी यह किस्म प्राकृतिक विपदाओं को भी बेहतर तरीके से झेल सकती है.