क्या आपने कभी सोचा है कि जिन अनाजों का सेवन आप अपने खाने में करते हैं. जिनको खाने से शरीर को कई तरह के स्वास्थ्य संबंधी फायदे होते हैं, उनका इतिहास काफी पुराना है. इन्हीं अनाजों में से एक अनाज है रागी. जानकारी के अनुसार ऐसा माना जाता है कि रागी का इतिहास करीब 4 हजार साल पुराना है. तो चलिए इस खबर में आगे जान लेते हैं कि क्या है रागी का इतिहास और कैसे इसकी खेती किसानों को मालामाल बनाती है.
4000 साल पुराना इतिहास
रागी या मडुआ एक ऐसा मोटा अनाज है जिसके तार हड़प्पन सभ्यता से जुड़े हैं. इसका इतिहास करीब 4 हजार साल पुराना माना जाता है. बता दें, कि जानकारी के अनुसार रागी की शुरुआत अफ्रीका से हुई जहां इसे फिंगर मिलेट के रूप से जाना जाता है. इसके बाद यहां भारत में प्राचीन सभ्यता जैसे हड़प्पन सभ्यता की खुदाई के दौरान भी रागी के इस्तेमाल के प्रमाण मिले थे.
कैसे होती है रागी की खेती
रागी की खेती से पहले खेत को अच्छे से साफ कर तैयार कर लें. इसके बाद रागी के बीजों की बुवाई छिड़काव के माध्यम से करें. चाहें तो ड्रिल विधि से भी इसकी बुवाई की जा सकती है. ड्रिल विधी से रागी के बीज जमीन से 3 सेमी नीचे चले जाते हैं. हर क्यारी के बीच की लगभग दूरी एक फीट होनी चाहिए. बीजों के बीच की दूरी 15 सेंटीमीटर रखनी चाहिए. रागी की बुवाई मई के आखिर में शुरू की जाती है जो कि जून भर चलती है. देश के कुछ हिस्सों में जून के बाद भी कागी की फसल लगाई जाती है. किसान चाहें तो जायद के मौसम में भी रागी उगा सकते हैं.
रागी की इन किस्मों से होगी बंपर पैदावार
हर तरह के अनाज की कई किस्में बाजार में उपलब्ध होती हैं. रागी की भी ऐसी कई प्रजातियां बाजार में हैं जिनकी बुवाई से किसान बंपर कमाई कर सकते हैं. जेएनआर 852, जीपीयू 45, चिलिका, जेएनआर 1008, पीइएस 400, वीएल 149, आरएच 374 ऐसी ही प्रजातियां हैं. जिनसे किसान बंपर पैदावार कर सकते हैं. रागी एक ऐसा अनाज है जो गंभीर सूखे को भी सहन कर सकता है. ऊंचाई वाले क्षेत्रों में भी रागी को बोया जा सकता है. रागी में एक और खासियत है कि इसकी फसल कम समय में तैयार हो जाती है. यानी बुवाई के बाद फसल की कटाई करीब 65 दिन में की जा सकती है.