आज के दौर में जब खेती में लागत बढ़ रही है और मुनाफा घटता जा रहा है. ऐसे में जरूरत है उन्नत किस्मों के बीजों के चयन की. किसानों को बेहतर बीज देने के काम करने वाली सरकारी संस्था भारतीय कृषि अनुसंधान परिषद ने सरसों की नई वैराइटी विकसित की है, जो कम दिनों में और कम पानी लागत में तैयार हो जाती है. बंपर उपज के साथ ही किसानों को अधिक तेल रिकवरी भी मिलती है. आइये जानते हैं सरसों की नई वैराइटी के बारे में-
भारतीय कृषि अनुसंधान के वैज्ञानिकों ने पूसा सरसों-21 (LES-1-27) किस्म विकसित की है. यह किस्म कम एरुसिक एसिड पैदा करती है, जिससे इसका तेल स्वास्थ्य के लिए ठीक रहता है. इसके साथ ही यह किस्म ज्यादा उपज वाले गुणों के लिए जाना जाता है. 2008 में विकसित की गई पूसा सरसों-21 किस्म किसानों के लिए कई तरीकों से फायदेमंद साबित हो सकता है.
कहां की जा सकती है खेती?
पूसा सरसों-21 देश के उत्तर-पश्चिमी मैदान क्षेत्रों (North Western Plain Zone) और मध्य क्षेत्र (Central Zone) के लिए बेस्ट माना जाता है. जिनमें पंजाब, हरियाणा, दिल्ली, राजस्थान, उत्तर प्रदेश, उत्तराखंड, जम्मू कश्मीर के मैदानी इलाके, मध्य प्रदेश, और छत्तीसगढ़ प्रमुख राज्य हैं. इन इलाकों की अच्छी जलवायु और मिट्टी के कारण पूसा सरसों-21 (LES-1-27) की अच्छी ग्रोथ देखने को मिलती है.
क्या है खासियत?
पूसा सरसों-21 एक सिंगल ज़ीरो किस्म है, यानी इसमें एरुसिक एसिड की मात्रा बहुत कम होती है. एरुसिक एसिड एक ऐसा तत्व है जो अधिक मात्रा में होने पर स्वास्थ्य के लिए हानिकारक हो सकता है. कम एरुसिक एसिड का मतलब है कि इससे निकाला गया तेल स्वास्थ्य के लिए अधिक सुरक्षित है. यही कारण है कि सरसों की यह किस्म स्वस्थ और अच्छे क्वालिटी वाले तेल उत्पादन के लिए बेस्ट माना जा रहा है.
अच्छी उपज, बेहतर मुनाफा
उत्पादन क्षमता 20.7 क्विंटल प्रति हेक्टेयर है, जो पारंपरिक किस्मों के मुकाबले अधिक है. इसकी फसल 142 दिनों में तैयार हो जाती है, जिससे यह समय और लागत दोनों की बचत करने में मदद करता है. इतना ही नहीं, इस किस्म के बीजों में तेल की मात्रा करीब 36 प्रतिशत तक होती है, जो सरसों की अन्य सामान्य किस्मों से अधिक मानी जाती है.
खेती की तैयारी कैसे करें?
इस किस्म की खेती के लिए बलुई दोमट मिट्टी सबसे अच्छी होती है. खेत की तैयारी के समय एक बार एम.बी. हल से जुताई करें और उसके बाद 2-3 बार हैरो से जुताई कर जमीन को भुरभुरा बना लें. अंतिम जुताई के समय गोबर की खाद या एफ.वाय.एम. 7.5 टन प्रति हेक्टेयर की मात्रा में डालें. इसके बाद खेत को समतल करके सिंचाई और जल निकासी के लिए 3-4 मीटर की दूरी पर नालियां बनाएं.
बीमारियों से बचाने के लिए ये उपाय करें किसान
बीजों को बोने से पहले बीज को विटावैक्स पावर 1.5 ग्राम या कार्बेन्डाजिम 1 ग्राम + थिरम 1.5 ग्राम प्रति किग्रा बीज से उपचारित करना आवश्यक है, जिससे बीमारियों या रोगों का पता किया जा सकें. फिर हर 12-15 दिन के अंतराल पर सिंचाई करें. वहीं, जब फली (Pods) पीली पड़ने लगे, तभी फसल की कटाई करें. देरी करने पर फलियों के फटने और बीज झड़ने का खतरा रहता है. कटाई के बाद फसल को 4-5 दिन तक खेत में सुखाएं, फिर 1 दिन धूप में मड़ाई कर बीज निकालें. बीजों को 4-5 दिन तक धूप में सुखाकर 8 प्रतिशत नमी होने तक स्टोर करें.