तिलहन फसलों के उत्पादन को बढ़ाने के लिए केंद्र सरकार का खास फोकस है. इसके तिलहन मिशन भी शुरू किया गया है, जिसके तहत किसानों को तिलहन फसलों की खेती के लिए प्रेरित किया जा रहा है और किसानों को उन्नत किस्म के बीज उपलब्ध कराए जा रहे हैं. इसी कड़ी में नई किस्मों को भी विकसित किया जा रहा है, जो जलवायु अनुकूल होने के साथ-साथ कई बीमारियों से लड़ने में भी सक्षम है. इतना ही नहीं इन किस्मों को कम पानी में भी उगाने के लिए विकसित किया गया है. ऐसी ही सरसों किस्म पूसा 29 (LET-36). इसे किसानों के बीच खूब लोकप्रियता मिली है.
मैदानी इलाकों में ज्यादा पैदावार देने में सक्षम
भारतीय कृषि अनुसंधान संस्थान (IARI) दिल्ली में सरसों की नई किस्म पूसा 29 (LET-36) को विकसित किया गया है. यह किस्म खासतौर पर उत्तर भारत के राज्यों जैसे दिल्ली, हरियाणा, जम्मू, पंजाब और राजस्थान के लिए बेहतरीन माना गया है. पूसा सरसों 29 कम यूरिक ऐसिड (सिंगल जीरो) वाली सरसों की किस्म है जो किसानों के लिए फायदेमंद साबित हो रही है.
141 दिन में तैयार हो रही सरसों
पूसा सरसों 29 की सबसे बड़ी खासियत यह है कि यह अच्छी पैदावार और जल्दी तैयार होने वाले फसलों में से एक है. यह किस्म 143 दिनों में पककर तैयार हो जाती है. यह किस्मों की तुलना में 3-4 दिन पहले तैयार हो जाती है. पूसा सरसों 29 (LET-36) सरसों की यह किस्म शुष्क जलवायु और नम मिट्टी में भी उगाई जा सकती है. इस सिंचाई की आवश्यकता कम होने के कारण इसे किसी भी जलवायु के लिए बेस्ट बनाता है.
22 क्विंटल उपज और 38 फीसदी तेल रिकवरी
पूसा सरसों 29 किस्म का औसत उत्पादन 21.69 क्विंटल प्रति हेक्टेयर है. वहीं, इसका तेल रिकवरी औसत तेल 37.2 प्रतिशत है, जो इसे सामान्य किस्मों से कहीं अधिक तेल देने वाली किस्म बनाता है. किसानों को बंपर उत्पादन के साथ ही तेल की मात्रा भी ज्यादा हासिल हो रही है. यह किस्म कम पानी और लागत में होने के चलते किसानों को ज्यादा मुनाफा देने वाली साबित हो रही है.
बुवाई से पहले तीन बार करें जुताई
सरसों की खेती के लिए कुछ विशेष तकनीकों का पालन करना होता है, ताकि इसे सही तरीके से उगाया जा सके और अधिकतम उत्पादन हासिल किया जा सके. सरसों की खेती के लिए बलुई दोमट मिट्टी सबसे अच्छी मानी जाती है. वहीं, बीज को सही गहराई और सही दूरी पर बोना जरूरी होता है, ताकि पौधों को बढ़ने के लिए पर्याप्त स्थान मिल सके. इसके लिए खेत की मिट्टी को हल या कल्टीवेटर से दो से तीन बार जुताई करनी जरूरी होती है.
बुवाई के 25 दिन में पहली सिंचाई जरूरी
सरसों की खेती में सिंचाई का ध्यान रखना भी जरूरी होता है. पहली सिंचाई 25 से 30 दिन बाद और दूसरी फलियां तैयार होने के समय करनी चाहिए. खरपतवार नियंत्रण के लिए बुवाई के 15 से 20 दिन बाद पौधों की दूरी सही कर देनी चाहिए. इसके अलावा सिंचाई से पहले निराई-गुड़ाई करनी चाहिए. बता दें कि रासायनिक तरीकों से खरपतवार को नियंत्रित करने के लिए पेंडीमेथालीन रसायन से छिड़काव कर सकते है. सरसों की कटाई तब करें जब सरसों की फलियां 75 प्रतिशत सुनहरे रंग की हो जाएं.