उत्तर भारत के राज्यों में सरसों की खेती किसान खूब करते हैं. सरसों की फसल से न सिर्फ किसानों की कमाई बढ़ती है बल्कि इसके तेल, खली और हर चारा मिलने से पशुओं का आहार भी आसानी से उपलब्ध हो जाता है. हालांकि, बदलते मौसम और चुनौतियों को देखते हुए किसान अब ऐसी किस्मों की ओर रूख कर रहे हैं, जो कम समय में अधिक उपज दे सकें और उनमें रिस्क कम हो. इसीलिए भारतीय कृषि अनुसंधान परिषद के भारतीय कृषि अनुसंधान संस्थान (ICAR-IARI) के वैज्ञानिकों ने सरसों की नई किस्म पूसा सरसों जगन्नाथ (VSL-5) को विकसित किया है.
समय पर और देरी से बुवाई के लिए है बेस्ट
सरसों की इस किस्म की सबसे बड़ी खासियत यह है कि जगन्नाथ (VSL-5) को समय पर या थोड़ी देर से बोया जाए, यह दोनों ही परिस्थितियों में अच्छी उपज देती है. जिन किसानों को समय पर बुवाई का मौका नहीं मिलता, वे भी इस किस्म को अपनाकर अच्छा उत्पादन के साथ मुनाफा कमा सकते हैं. वहीं, इस किस्म के बीज सामान्य किस्मों की तुलना में बड़े और भारी होते हैं. 1000 बीजों का औसतन वजन करीब 5.5 ग्राम होता है, जो इसे अन्य किस्मों से अलग बनाता है. यही वजह है कि इसकी उपज लगभग 25 क्विंटल प्रति हेक्टेयर तक होती है. ज्यादा उत्पादन का सीधा फायदा किसानों की जेब में जाता है.
तेल की मात्रा में भी नंबर वन
जगन्नाथ किस्म की एक और बड़ी खूबी यह है कि इसके बीजों से लगभग 40 प्रतिशत तक तेल निकाल जा सकता है. तेल की यह मात्रा भी इसे बाकी किस्मों से काफी अलग बनाता है. इससे न केवल किसानों को फायदा होता है, बल्कि तेल मिल मालिकों और व्यापारियों को भी अच्छी गुणवत्ता सरसों मिलते है. यह किस्म लगभग 125 दिनों में पककर तैयार हो जाती है. यानी अगर आप अक्टूबर-नवंबर में इसकी बुवाई करते हैं तो फरवरी तक आपकी फसल तैयार हो जाती है. जिससे किसान समय रहते दूसरी फसलों की तैयारी भी कर सकते हैं.
कम देखभाल, ज्यादा मुनाफा
जगन्नाथ (VSL-5) किस्म की एक और अच्छी बात यह है कि इसकी खेती में बहुत ज्यादा देखभाल की जरूरत नहीं होती. सिंचाई की व्यवस्था होने पर किसान आसानी से अच्छी उपज ले सकते हैं. इस किस्म की खेती को छोटे और मध्यम वर्ग के किसान भी आसानी से अपना सकते है.
सरकार और वैज्ञानिक कर रहे हैं प्रचार
सरसों की इस किस्म को बढ़ावा देने के लिए कृषि वैज्ञानिकों और सरकारी संस्थानों की ओर से लगातार कृषि मेलें, प्रशिक्षण कार्यक्रमों और किसान सेमिनार के ज़रिए किसानों को इसकी जानकारी दी जा रही है ताकि ज्यादा से ज्यादा किसान इस किस्म की बुवाई समय आने पर कर सकें.