स्ट्रॉबेरी एक लो-कैलोरी सुपरफूड है, जिसमें विटामिन सी, एंटीऑक्सीडेंट और फाइबर की मात्रा अधिक होती है. यही वजह है कि बाजार में इसकी मांग तेजी से बढ़ रही है और किसान इस मांग को ध्यान में रखते हुए स्ट्रॉबेरी की खेती कर रहे हैं. स्ट्रॉबेरी की खेती के दौरान किसानों के लिए यह बेहद जरूरी है कि वे अधिक उपज और उत्कृष्ट गुणवत्ता वाले फलों को विभिन्न बीमारियों से सुरक्षित रखें. अक्सर देखा जाता है कि किसानों को स्ट्रॉबेरी की फसल में होने वाले रोगों की सही जानकारी नहीं होती, जिससे पूरी फसल बर्बाद हो जाती है.
अगर आपकी फसल पर भी किसी रोग के लक्षण दिख रहे हों, तो उचित तकनीक का इस्तेमाल करके फसल को बचाया जा सकता है. चलिए जानते हैं स्ट्रॉबेरी पर होने वाले 9 रोगों से बचने के उपाय.
1. पत्ती धब्बा रोग
लक्षण: इस रोग के होने पर स्ट्रॉबेरी की पत्तियों पर गहरे बैंगनी रंग के धब्बे बनने लगते हैं, जो धीरे-धीरे बढ़कर 3-6 मिमी के भूरे या सफेद रंग में परिवर्तित हो सकते हैं. इसकी वजह से पत्तियां टूटकर गिरने लगती हैं.
उपाय: खेत की हल्की सिंचाई करें और संक्रमित पत्तियों को पौधों से हटाकर नष्ट कर दें. फफूंद को खत्म करने के लिए मैंकोजेब या हेक्साकोनाजोल का 2 ग्राम प्रति लीटर पानी में मिलाकर 10 दिन के अंतराल पर छिड़काव करें.
2. ग्रे मोल्ड
लक्षण: यह रोग स्ट्रॉबेरी के फूलों, फलों और तनों पर नजर आता है. इससे फल सड़ने लगते हैं और सफेद-भूरे रंग की फफूंदी लग जाती है.
उपाय: सबसे पहले प्रभावित पौधे को हटाकर खेत से बाहर कर दें. अधिक नमी और घनी रोपाई से बचें और मैंकोजेब या हेक्साकोनाजोल का छिड़काव करें.
3. रेड स्टेल/रेड कोर रोग
लक्षण: इस रोग के लगने पर पौधों की जड़ें अंदर से लाल हो जाती हैं, जिससे जल संचरण पर असर पड़ता है और पौधे मुरझाकर मर जाते हैं.
उपाय: पौधा लगाते समय खेत में जल निकासी की उचित व्यवस्था करें. संक्रमित पौधों को हटाकर हेक्साकोनाजोल का छिड़काव करें.
4. विल्ट रोग
लक्षण: इस रोग के होने पर पौधे अचानक मुरझाने लगते हैं. इसकी पत्तियां पीली होकर झड़ जाती हैं और छोटे फल गिरने लगते हैं.
उपाय: खेत में जलभराव से बचें. कार्बेन्डाजिम या हेक्साकोनाजोल का घोल बनाकर मिट्टी में सिंचाई करें.
5. पाउडरी मिल्ड्यू
लक्षण: इसमें पत्तियां ऊपर की ओर मुड़ने लगती हैं और बैंगनी रंग के धब्बे बन जाते हैं. प्रभावित फल सफेद रंग के चूर्ण जैसे कवच से ढक जाते हैं.
उपाय: पौधों की उचित दूरी पर रोपाई करें, जिससे वायु संचार बना रहे. इसके साथ ही सल्फर आधारित फफूंदनाशक का छिड़काव करें.
6. अल्टरनेरिया स्पॉट रोग
लक्षण: इस रोग में स्ट्रॉबेरी की पत्तियों पर गोल, लाल-बैंगनी धब्बे दिखाई देते हैं, और पत्तियां समय से पहले गिरने लगती हैं.
उपाय: रोगग्रस्त पत्तियों को नष्ट करें और मैंकोजेब या किसी अन्य फफूंदनाशक का छिड़काव करें.
7. एन्थ्रेक्नोज
लक्षण: इसमें पौधे की पत्तियों, तनों और फलों पर काले धब्बे बन जाते हैं, जिसके बाद फल गलकर गिर जाते हैं.
उपाय: स्ट्रॉबेरी की खेती करते समय इस बात का ध्यान रखें कि पौधों के आसपास हमेशा सफाई बनी रहे. रोग होने पर हेक्साकोनाजोल या मैंकोजेब का छिड़काव करें.
8. क्राउन रॉट
लक्षण: इस रोग में पौधे दोपहर के समय मुरझा जाते हैं और शाम को ठीक हो जाते हैं. इसकी जड़ों में लाल-भूरे रंग की सड़न दिखने लगती है.
उपाय: खेत में जल निकासी सुधारें और हेक्साकोनाजोल का छिड़काव करें.
9. एंगुलर लीफ स्पॉट
लक्षण: पत्तियों की निचली सतह पर छोटे पानी से भरे फफोले दिखाई देते हैं, जो रोग के बढ़ने के साथ ही लाल रंग के धब्बों में बदल जाते हैं.
उपाय: ऐसे पौधों को जड़ से उखाड़कर फेंक दें.
बता दें कि दुनियाभर में स्ट्रॉबेरी की लगभग 600 से अधिक प्रजातियां हैं, जिनमें से भारत में कुछ ही किस्मों को उगाया जाता है.