कृषि में फसलों का उत्पादन बढ़ाने के लिए किसान काफी मात्रा में रसायनों का इस्तेमाल करते हैं. इससे खेतों की उर्वरा शक्ति तो कम हो ही रही है, साथ ही इन फसलों में तमाम तरह के रोग लग रहे हैं, जिसकी वजह से इंसानों और जानवरों में बीमारियां पनप रही हैं. इसके अलावा, रासायनिक कीटनाशकों के इस्तेमाल से खेतों की मिट्टी प्रदूषित हो रही है, जिसके कारण मित्र कीट भी खत्म हो रहे हैं. इन सब बातों को ध्यान में रखते हुए लखीमपुर खीरी जिले के मड़ई पुरवा में रहने वाले किसान अचल कुमार मिश्रा ने कृषि को वैज्ञानिक तरीके से अपनाने का प्रयास शुरू कर दिया है.
गेंदा फूल बना गन्ने की खेती का गेमचेंजर
उन्होंने ‘किसान इंडिया’ से बात करते हुए बताया कि वे मुख्य रूप से गन्ने की खेती करते हैं, जिसमें रसायन का इस्तेमाल अधिक मात्रा में होता है. इसके कारण गन्ने की उपज पर इसका प्रभाव पड़ा और साथ ही खेती में लागत भी अधिक आ रही थी. इसके बाद जब उन्होंने गन्ने की खेती में इकोसिस्टम के साथ ही इंटरक्रॉप के रूप में गेंदा लगाया तो इकोलॉजिकल इंजीनियरिंग के चलते उनके खेत की उर्वरा शक्ति बढ़ने के साथ-साथ खेती की लागत में कमी आई. फूलों से उनकी आमदनी में भी इजाफा हुआ.
इकोलॉजिकल इंजीनियरिंग ने बदली किस्मत
लखीमपुर खीरी के उप कृषि निदेशक अरविंद मोहन मिश्रा बताते हैं कि नेशनल इंस्टीट्यूट ऑफ प्लांट हेल्थ मैनेजमेंट, हैदराबाद द्वारा विकसित की गई इकोलॉजिकल इंजीनियरिंग तकनीक का किसानों को लाभ मिल सके, इसके लिए इंस्टीट्यूट इस तकनीक को बढ़ावा देने के कार्यक्रम पर काम कर रहा है. इस कार्यक्रम के माध्यम से खेतों में रासायनिक कीटनाशकों के उपयोग को कम करके फसल के उत्पादन को बढ़ाने के लिए किसानों को प्रशिक्षण दिया जाता है.
इस तकनीक में हम खेतों की सीमा पर मक्का, बाजरा और ज्वार जैसी फसलें लगाते हैं. इससे फायदा यह होता है कि खेतों की सीमा पर एक घेरा बन जाता है, जिससे दुश्मन कीट खेतों में प्रवेश नहीं कर पाते हैं. इसके अलावा, हम लेमनग्रास जैसे कुछ औषधीय पौधे भी लगा देते हैं, जो खराब कीटों को खत्म करने में काफी कारगर होते हैं.
गन्ने की खेती से बनाई पहचान
राजधानी के केल्विन डिग्री कॉलेज से लॉ की डिग्री हासिल करने के साथ अचल मिश्रा अपनी यूनिवर्सिटी से गोल्ड मेडलिस्ट भी रहे हैं. अचल मिश्रा ने ‘किसान इंडिया’ से बात करते हुए बताया कि पढ़ाई पूरी करने के बाद नौकरी के बजाय उन्होंने खेती को ही रोजगार बनाया. शुरुआती दौर में सबसे पहले गन्ने की खेती की, जहां उन्हें बहुत मुनाफा हुआ.
अचल कहते हैं कि परंपरागत विधि से बुवाई करने से एक एकड़ में 45 कुंतल गन्ना लगता है, जबकि हमारी पद्धति से बुवाई करने में 24-28 कुंतल ही बीज लगता है, लेकिन उत्पादन कई गुना ज्यादा बढ़ जाता है. साल 2019 में एशिया में 3296 कुंतल गन्ने का सर्वाधिक उत्पादन अपने नाम दर्ज करा चुके हैं, जो रिकॉर्ड अभी तक किसी किसान ने नहीं तोड़ा है. मौजूदा समय में अचल मिश्रा पेट्रोल पंप के मालिक हैं और उनकी सालाना आय 70 लाख रुपये से अधिक है. (लेखक स्वतंत्र पत्रकार हैं)