भारत में अंगूर की खेती हमेशा से ही किसानों के लिए एक लाभकारी कृषि व्यवसाय रही है. देश में अंगूर की खेती खासतौर से महाराष्ट्र, कर्नाटक, तमिलनाडु और पंजाब जैसे राज्यों में बड़े पैमाने पर की जाती है. भारत दुनिया के प्रमुख अंगूर उत्पादक देशों में शामिल है. बेहतर कृषि तकनीकों और सही देखभाल के साथ, अब किसान अंगूर की खेती से ज्यादा मुनाफा कमा रहे हैं. चलिए, जानते हैं अंगूर की कुछ प्रमुख किस्में और इसके खेती करने का सही तरीका.
अंगूर की प्रमुख किस्में
अंगूर की खेती करने से पहले, सही किस्म का चयन करना बेहद जरूरी है. भारत में कई तरह की अंगूर की किस्में उगाई जाती हैं, जिनमें से कुछ उपज देने वाली, बीज रहित और जूस बनाने के लिए उपयुक्त होती हैं.
1. पंजाब मैक्स पर्पल
यह किस्म 2008 में पेश की गई थी. इसके फल पकने पर गहरे जामुनी रंग के हो जाते हैं. यह किस्म आकार में मीडियम होती है और इसमें बीज पाए जाते हैं.
2. पर्लेट
यह किस्म 1967 में विकसित की गई थी और यह अधिक उत्पादन देने वाली किस्मों में गिनी जाती है. इसके फल हल्के सुगंधित होते हैं और छिलका मोटा होता है. यह किस्म प्रति बेल 25 किलो तक उपज देती है.
3. ब्यूटी सीडलैस
यह किस्म 1968 में आई थी. इसके फल बीज रहित होते हैं और रंग में नीले-काले होते हैं. यह दक्षिण-पश्चिमी क्षेत्रों में बेहतर उत्पादन देती है.
4. फ्लेम सीडलैस
यह किस्म 2000 में पेश की गई थी. इसके फल बिना बीज के होते हैं और पकने पर हल्के जामुनी रंग के हो जाते हैं.
5. सुपीरियर सीडलेस
इस किस्म के फल सुनहरे रंग के होते हैं और आकार में बड़े होते हैं. इसमें शर्करा की मात्रा लगभग 10% होती है.
अंगूर की खेती करने का सही तरीका-
जलवायु और मिट्टी का चयन
अंगूर की खेती के लिए दोमट, बलुई-दोमट या गहरी चिकनी मिट्टी उपयुक्त रहती है, जिसका PH 6.5 से 7.5 के बीच होना चाहिए. इसके लिए गर्म और शुष्क जलवायु सबसे उपयुक्त है, और तापमान 15°C से 35°C के बीच सबसे अच्छा रहता है.
खाद और सिंचाई प्रबंधन
प्रति हेक्टेयर 15-20 टन गोबर की खाद डालें और यूरिया, पोटाश और फास्फोरस का सही अनुपात में उपयोग करें.
सिंचाई प्रणाली
अंगूर की खेती के लिए ड्रिप सिंचाई सबसे बेहतर रहती है. गर्मी में हर 4-5 दिन में पानी दें, जबकि सर्दियों में 10-12 दिन में एक बार सिंचाई करें.
बेलों की छंटाई और देखभाल
पौधों के स्वस्थ विकास के लिए समय-समय पर बेलों की छंटाई करनी चाहिए. इसके साथ ही अंगूर में फफूंदी, मृदुरोमिल आसिता और पाउडरी मिल्ड्यू जैसी बीमारियां हो सकती हैं, जिनसे बचने के लिए कीटनाशकों और जैविक उपायों का इस्तेमाल करें.
अंगूर की तुड़ाई और पैकिंग
अंगूर 120-150 दिनों में तैयार हो जाते हैं. इन्हें हाथ से धीरे-धीरे तोड़कर अच्छी तरह पैक करें, ताकि ताजगी बनी रहे और बाजार तक पहुंचने में कोई परेशानी न हो.
मुनाफा और बाजार मूल्य
अंगूर की औसत उपज प्रति हेक्टेयर 20-25 टन होती है. बाजार में इसकी कीमत ₹50 से ₹200 प्रति किलो तक हो सकती है, जो किस्म और गुणवत्ता के आधार पर बदलती रहती है. भारतीय अंगूरों की यूरोप, मध्य पूर्व और एशियाई देशों में भी अच्छी मांग है, जिससे किसानों को अच्छा मुनाफा मिल सकता है.
अंगूर की खेती न केवल एक लाभकारी व्यवसाय है, बल्कि सही देखभाल और तकनीक से किसानों की मेहनत भी सफल हो सकती है. यदि आप अंगूर की खेती करने का सोच रहे हैं, तो सही किस्म और खेती के तरीके को समझकर आप बेहतर मुनाफा कमा सकते हैं.