खेती अब सिर्फ खाद और कीटनाशकों पर निर्भर नहीं रही. देशभर में किसान अब नेचुरल फार्मिंग यानी प्राकृतिक खेती की ओर बढ़ रहे हैं. यह खेती का एक ऐसा तरीका है जिसमें खेत की उपजाऊ शक्ति को बनाए रखते हुए बिना किसी रासायनिक खाद या दवाइयों के फसल उगाई जाती है. इससे न केवल उत्पादन अच्छा होता है, बल्कि लागत भी काफी कम आती है.
नेचुरल फार्मिंग क्या होती है?
नेचुरल फार्मिंग यानी प्राकृतिक खेती एक ऐसी खेती की तरीका है जिसमें रासायनिक खाद या कीटनाशकों का इस्तेमाल नहीं किया जाता. इसमें किसान गोबर, गोमूत्र, खेत की मिट्टी, फसल के बचे हुए हिस्से और जैविक कचरे से ही खेती के लिए जरूरी चीजें तैयार कर लेते हैं. इस खेती में ज्यादा पानी या भारी सिंचाई की भी जरूरत नहीं होती. इससे खेत की मिट्टी को कोई नुकसान नहीं होता और जमीन लंबे समय तक उपजाऊ बनी रहती है.
सरकार की नई योजना
भारत सरकार ने एक करोड़ किसानों को नेचुरल फार्मिंग से जोड़ने की योजना शुरू की है. इसके तहत किसानों को प्रशिक्षित किया जा रहा है और उन्हें प्रमाणन, ब्रांडिंग व विपणन की सुविधा भी दी जा रही है. सरकार देशभर में 10,000 बायो इनपुट सेंटर स्थापित कर रही है, जहां किसानों को उनकी फसलों, मिट्टी और मौसम के अनुसार जैविक संसाधन उपलब्ध कराए जाएंगे.
क्या है जीरो बजट नेचुरल फार्मिंग (ZBNF)?
जीरो बजट नेचुरल फार्मिंग का अर्थ है, बिना किसी अतिरिक्त लागत के खेती करना. इसे महाराष्ट्र के प्रसिद्ध किसान सुभाष पालेकर ने विकसित किया. इस प्रणाली में देसी गाय के गोबर और मूत्र से खेत के लिए आवश्यक खाद और कीटनाशक तैयार किए जाते हैं. खेत की जरूरतों को पूरा करने वाले सभी संसाधन किसान अपने घर या खेत से ही प्राप्त करता है, जिससे उसे बाजार से महंगे उत्पाद खरीदने की जरूरत नहीं होती.
ZBNF के मूल तत्व
जीरो बजट नेचुरल फार्मिंग यानी ZBNF में कुछ खास तरीके अपनाए जाते हैं. सबसे पहले ‘बीजामृत’ का इस्तेमाल करके बीजों को धोकर तैयार किया जाता है, जिससे बीजों में कोई रोग न लगे. फिर ‘जीवामृत’ डाला जाता है जो गोबर, गोमूत्र और अन्य जैविक चीजों से बनता है और मिट्टी को ताकतवर बनाता है. खेत की मिट्टी को सूखने से बचाने के लिए ‘मल्चिंग’ की जाती है, यानी फसल के बचे हुए टुकड़ों से जमीन को ढक दिया जाता है. साथ ही ‘वाफसा’ नाम की तकनीक से मिट्टी में नमी और हवा का संतुलन बनाए रखा जाता है, जिससे फसल को अच्छा पोषण मिलता है.
देश के कई राज्यों ने अपनाया
आंध्र प्रदेश, कर्नाटक और महाराष्ट्र जैसे राज्यों में हजारों किसान इसे अपनाकर मुनाफा कमा रहे हैं. आंध्र प्रदेश में तो पंचायत स्तर पर नेचुरल फार्मिंग को बढ़ावा दिया जा रहा है, और इसे हर गांव तक पहुंचाने की योजना बनाई गई है. कर्नाटक में भी किसान संगठनों द्वारा इसे समर्थन मिल रहा है.
किसानों को क्या लाभ?
इस पद्धति( method) से खेती करने पर किसानों की लागत घटती है और आय बढ़ती है. मिट्टी की गुणवत्ता बेहतर होती है, जिससे लंबे समय तक फसलें ली जा सकती हैं. इसके अलावा इससे पर्यावरण को भी नुकसान नहीं होता और खाने के लिए सुरक्षित व पौष्टिक अनाज मिलते हैं. रासायनिक खाद और दवाइयों से मुक्त होने के कारण किसान स्वास्थ्य संबंधी जोखिमों से भी बचते हैं.