उत्तर प्रदेश सरकार ने राज्य में लहसुन की खेती और किसानों को प्रोत्साहित करने के लिए नवंबर 2024 में एक योजना की शुरुआत की थी. इस योजना के तहत राज्य में हॉर्टीकल्चर डिपार्टमेंट की तरफ से प्रति हेक्टेयर 30 हजार रुपये की अनुमन्य इकाई लागत तय की गई है. इसमें किसानों को प्रति हेक्टेयर 40 प्रतिशत सानी 12 हजार रुपये तक की सब्सिडी प्रदान की जाएगी. यह सब्सिडी प्रति किसान न्यूनतम 0.2 हेक्टेयर से अधिकतम 4.0 हेक्टेयर तक की भूमि पर मुहैया कराई जाएगी. लहसुन का बीज नई दिल्ली स्थित नेशनल हॉर्टीकल्चर रिसर्च एंड डेवलपमेंट की तरफ से किसानों को उपलब्ध कराया जाएगा. बीज की कीमत 370 से 390 रुपये प्रति किलोग्राम के बीच रखी गई है.
10 हजार हेक्टेयर क्षेत्र को कवर करना
भारत सरकार की मदद से चलाई जाने वाली इस योजना के तहत पूरे राज्य में 10 हजार हेक्टेयर अतिरिक्त क्षेत्र में लहसुन की खेती की जाएगी. सरकार की तरफ से बताया गया राज्य में लहसुन की खेती को प्रोत्साहित करने के लिए सरकार ने मसला क्षेत्र विस्तार कार्यक्रम के तहत योजना बनाई है. इस योजना के तहत प्रदेश में प्रति हेक्टेयर 30 हजार रुपये की इकाई लागत तय की गई है. वहीं, किसानों को सस्ते दाम में बीज देने की तैयारी हैं ऐसे में बीज की कीमत 370 से 390 रुपये प्रति किलोग्राम के बीच तय की गई है.
नवंबर में जब इस योजना को शुरू किया गया था तब सरकार की तरफ से कहा गया था कि इस फैसले का मकसद चीन की तरफ से आने वाले लहसुन की खेप को रोकना और बाजार में कीमतों पर नियंत्रण करना है.
कैसे मिलेगा किसानों को फायदा
यह योजना केंद्र सरकार की तरफ से 60 फीसदी और राज्य सरकार की तरफ से 40 प्रतिशत आर्थिक मदद पर चलाई जा रही है. किसान इस योजना का लाभ पहले आओ पहले पाओ के आधार पर प्राप्त कर सकते हैं. इच्छुक किसानों को अपने जनपद के जिला उद्यान अधिकारी कार्यालय में संपर्क करना होगा. वहीं, किसान योजना में पंजीकरण करने के लिए विभाग की आधिकारिक वेबसाइट http://dbt.uphorticulture.in पर भी ऑनलाइन रजिस्ट्रेशन करा सकते हैं.
अभी कहां-कहां होती है खेती
परंपरागत रूप से, उत्तर प्रदेश में लहसुन की खेती मध्य प्रदेश और राजस्थान की सीमा से लगे जिलों में केंद्रित थी. हालांकि, सरकार ने इसका दायरा बढ़ाकर 45 जिलों तक कर दिया है, जिनमें लखनऊ, गाजियाबाद, सहारनपुर, मुजफ्फरनगर, मेरठ, बुलंदशहर, बरेली, मुरादाबाद, आगरा, मथुरा और मैनपुरी शामिल हैं. यूपी लहसुन की कटाई आमतौर पर जनवरी से मार्च तक की जाती है, और सूखे हुए कंदों को साल भ्र प्रयोग के लिए स्टोर किया जाता है.