अलसी (Linum usitatissimum) की खेती भारत में बड़े पैमाने पर की जाती है. खासकर इसके बीजों से निकलने वाले तेल की डिमांड बजार में बनी रहती है. दरअसल, इसके बीजों में 33-47% तक तेल की मात्रा पाई जाती है और अधिक चिकनाई होने के कारण अलसी का इस्तेमाल रंग-रोगन, जल-रोधक फैब्रिक और इंडस्ट्रियलिस्ट प्रोडक्ट्स के निर्माण में किया जाता है.
वहीं, सेहत के प्रति जागरुक होते लोग इसे आहार के रूप में भी अपनाया रहे हैं. जबकि अलसी से तेल निकालने के बाद मिले वेस्ट को खाद और पशु चारे के रूप में उपयोग किया जाता है. इसके साथ ही इसका इस्तेमाल कागज और प्लास्टिक निर्माण में भी किया जाता है. तो आइए जानते हैं कैसे अलसी की खेती किसानों के लिए फायदेमंद हो सकती है.
अलसी की प्रमुख किस्में और उनकी विशेषताएं
एलसी 2063 (2007)
यह किस्म खासतौर पर सिंचित क्षेत्रों के लिए बहुत उपयुक्त मानी जाती है. इसके पौधों के फूल नीले रंग के होते हैं, जो फल के खोल को सुरक्षित रखने में मदद करते हैं. यह फसल लगभग 158-160 दिनों में तैयार हो जाती है. इसके बीजों में 38.4% तेल की मात्रा होती है, और औसतन 4-5 क्विंटल प्रति एकड़ पैदावार मिलती है. साथ ही, यह किस्म पत्तों पर सफेद धब्बों की समस्या से भी बची रहती है, जो इसे अन्य किस्मों से बेहतर बनाती है.
एलसी 2023 (1998)
यह किस्म सिंचित और कम जल वाले क्षेत्रों के लिए बेहतरीन है. इसके पौधे लंबाई में होते हैं और इसके फूल नीले रंग के होते हैं. इसके बीजों में 37.5% तेल की मात्रा होती है और यह फसल लगभग 155-165 दिनों में पककर तैयार हो जाती है. औसतन, यह किस्म 4.5 क्विंटल प्रति एकड़ पैदावार देती है और सफेद धब्बों की बीमारी के प्रति भी प्रतिरोधक क्षमता रखती है.
सुरभि (KL-1)
यह किस्म उच्च उत्पादकता वाली है और इसमें सूखा, कुंगी और सफेद धब्बों के रोगों के प्रति मजबूत प्रतिरोधक क्षमता होती है. इसकी फसल 165-170 दिनों में पूरी तरह तैयार हो जाती है. इसके बीजों में 44% तेल की मात्रा होती है और इसकी औसतन पैदावार 3-6 क्विंटल प्रति एकड़ होती है. यह किस्म किसानों के लिए एक बेहतरीन विकल्प है, खासकर उन क्षेत्रों के लिए जहां पानी की कमी होती है.
जीवन (DPL-21)
यह दोहरे इस्तेमाल वाली किस्म है, जिसका मतलब है कि इसके बीजों से तेल और खाद्य दोनों चीजों का उपयोग किया जा सकता है. इसकी ऊँचाई 75-85 सेमी होती है और इसके बीज भूरे रंग के होते हैं. इसके फूल नीले होते हैं. यह किस्म 175-181 दिनों में पककर तैयार हो जाती है और सूखा, कुंगी और सफेद धब्बों की बीमारी के प्रति सहनशील रहती है. इसकी औसतन पैदावार 6 क्विंटल प्रति एकड़ होती है.
अन्य महत्वपूर्ण किस्में:
पुसा-3
एलसी-185
एलसी-54
शीला (LCK-9211)
के-2
इन किस्मों के माध्यम से किसान अपनी खेती की उपज को बेहतर बना सकते हैं. इन किस्मों का चुनाव क्षेत्रीय जलवायु और मिट्टी की गुणवत्ता के आधार पर किया जाता है, ताकि अधिकतम उत्पादन प्राप्त किया जा सके. अलसी की खेती से किसान की आय में भी बढ़ोतरी हो सकती है.