पराली सिर्फ किसानों तक नहीं बल्कि पूरे देश की समस्या बन चुकी है. दरअसल पराली जलाने से निकलने वाला धुआं आज देशभर के बड़े शहरों, कस्बों और गांव को बुरी तरह प्रदूषित कर रहा है. सुप्रीम कोर्ट से लेकर सरकारों तक, लगातार पराली की समस्या से निपटने के लिए कदम उठा रही है.
हाल में मध्य प्रदेश के 700 से ज्यादा किसानों पर पराली जलाने के जुर्म में लाखों रुपये का भारी जुर्माना लगाया गया है. लेकिन सवाल ये उठता है कि किसान कैसे फसलों से बचे अवशेष का कुछ यूं इस्तेमाल करें कि उन्हें आर्थिक मुनाफा हो और उससे होने वाले प्रदूषण से भी बचा जा सके. आइए जानते हैं कैसे किसान पराली को बिना जलाए, उसका निपटारा कर सकते हैं.
क्या है पराली जलाना?
जब धान और गेंहू की फसल कट जाती है, तो खेत में जो पुआल या तना बच जाता है, उसे पराली कहा जाता है. किसान अक्सर इसे जला देते हैं, क्योंकि उनके पास इसे हटाने का कोई सस्ता और आसान तरीका नहीं होता. लेकिन जब ये पराली जलती है, तो इससे भारी मात्रा में धुआं और प्रदूषण फैलता है, जो सिर्फ पर्यावरण को ही नहीं, इंसानी सेहत को भी नुकसान पहुंचाता है.
क्यों जलाते हैं किसान पराली?
असल में, जब धान की कटाई मशीनों से की जाती है, तो मशीन सिर्फ ऊपरी हिस्सा यानी दाने वाला भाग ही काटती है. नीचे का हिस्सा खेत में ही बच जाता है और बहुत भारी मात्रा में पराली इकट्ठा हो जाती है. अब किसान अगर इसे हटाने में समय लगाएं, तो अगली फसल की बुवाई लेट हो सकती है. इसलिए वे पराली को आग के हवाले कर देते हैं, ताकि खेत जल्दी साफ हो जाए.
अब सवाल ये है कि किसान इसे जलाए बिना क्यों नहीं हटाते? तो जवाब है पैसे की तंगी. खासकर छोटे किसान, जो पहले से ही आर्थिक परेशानियों से जूझ रहे होते हैं, उनके पास पराली को हटाने के आधुनिक उपाय अपनाने का खर्च नहीं होता.
पराली की बनाएं खाद
धान या गेहूं की पराली को खेत की मिट्टी में मिलाने से मिट्टी की ताकत यानी उर्वरता बढ़ती है. इससे मिट्टी में जरूरी पोषक तत्व बढ़ते हैं और खेती के लिए मिट्टी अच्छी हो जाती है. साथ ही, मिट्टी में रहने वाले छोटे-छोटे जीवों की संख्या भी बढ़ती है, जो किसानों के लिए फायदेमंद होते हैं. एक्सपर्ट्स के मुताबिक अगर किसान पराली को खेत में मिलाते रहें, तो मिट्टी में जैविक कार्बन, नाइट्रोजन, फॉस्फोरस, पोटाश और सल्फर जैसे जरूरी तत्व बढ़ जाते हैं. इससे फसल को जरूरत का पानी और पोषण मिलते रहते हैं और सिंचाई में भी कम पानी लगता है.
कैसे करें डी-कंपोज?
पराली को जलाने की बजाय डी-कंपोजर से खाद में बदला जा सकता है. इसके लिए खेत में पराली जोतने के बाद प्रति हेक्टेयर 10 किलो डी-कंपोजर का छिड़काव करें. फिर 40 किलो यूरिया और 50 किलो सिंगल सुपर फॉस्फेट डालें और खेत को नम रखें. 10 दिन बाद फिर से खेत जोत दें. इससे पराली खुद-ब-खुद खाद में बदल जाएगी.
नाइट्रोजन जल्दी सड़ेगी पराली
किसान चाहें तो यूरिया में मौजूद नाइट्रोजन का इस्तेमाल करके भी पराली को जल्दी सड़ा सकते हैं. पराली पर प्रति एकड़ 10 किलो यूरिया डालें और हल्का पानी दें. 10 से 15 दिन में पराली सड़कर खाद बनने लगेगी.
घरेलू और सस्ता तरीका
किसान घर पर भी डी-कंपोजर घोल बना सकते हैं. इसके लिए 200 लीटर पानी में 2 किलो गुड़, 2 किलो बेसन और 20 ग्राम बायो डी-कंपोजर मिलाकर एक घोल तैयार करें. इसे 10 दिन तक ढककर रखें और दिन में 2 बार हिलाएं. जब घोल में झाग बनने लगे, तो यह इस्तेमाल के लिए तैयार है. इस घोल को 10 लीटर की मात्रा में प्रति एकड़ छिड़कें. इससे पराली खाद में बदल जाएगी.