दुनियाभर में पृथ्वी दिवस 2025 पर पर्यावरण संरक्षण को लेकर कार्यक्रम किए जा रहे हैं और धरती के साथ इस पर रहने वाले जीवों को बचाने का संकल्प लिया गया है. मिट्टी और जल संरक्षण वैज्ञानिक एम. मुरुगानंदम ने बताया है कि दुनियाभर के लिए प्लास्टिक कचरा बड़ी मुसीबत बन रहा है. अकेले भारत हर साल 56 लाख टन कचरा पैदा कर रहा है, जिससे मिट्टी की ताकत पर बुरा असर पड़ने के साथ ही जलवायु पर प्रतिकूल असर देखा जा रहा है. इसके नतीजे में फसलों और कृषि क्षेत्र पर भी बुरा असर देखा जा रहा है.
हर साल 22 अप्रैल को मनाया जाने वाला पृथ्वी दिवस पर्यावरण संरक्षण और टिकाऊ जीवनशैली को अपनाने की तत्काल जरूरत की वैश्विक याद दिलाता है. वर्ष 2024 का पृथ्वी दिवस “प्लैनेट वर्सेज प्लास्टिक्स” विषय पर केंद्रित था, जिसमें 2040 तक प्लास्टिक उत्पादन में 60 फीसदी की कटौती का आह्वान किया गया. वहीं, वर्ष 2025 का विषय “आवर पावर, आवर प्लैनेट” नवीकरणीय ऊर्जा की परिवर्तनकारी क्षमता पर वैश्विक ध्यान केंद्रित करता है.
वायुमंडल को नुकसान पहुंचा रहीं कार्बन गैसें
भारतीय मृदा जल संरक्षण संस्थान (ICAR-IISWC) देहरादून के प्रमुख वैज्ञानिक डॉ. एम मुरुगानंदम ने बताया कि आज पृथ्वी दिवस पहले से कहीं अधिक प्रासंगिक हो गया है क्योंकि हम एक ओर विकास और शहरीकरण के नाम पर कार्बन अवशोषण और संचित करने में सहायक हरित आवरण को समाप्त कर रहे हैं, तो दूसरी ओर, वाहनों और उद्योगों से प्रदूषण बढ़ाकर वायुमंडल में CO₂, PM2.5, PM10 और अन्य गैसीय प्रदूषकों का असंतुलन पैदा कर रहे हैं. यह दोहरा प्रभाव जलवायु परिवर्तन को गति दे रहा है और पर्यावरण के साथ-साथ मानव स्वास्थ्य पर भी बुरा प्रभाव डाल रहा है.
प्लास्टिक कचरा धरती और खेती के लिए मुसीबत बना
वैज्ञानिक डॉ. एम मुरुगानंदम के अनुसार प्लास्टिक प्रदूषण की पर्यावरणीय चुनौती आज भी गंभीर बनी हुई है. विश्व स्तर पर हर वर्ष लगभग 400 मिलियन टन यानी 4 करोड़ लाख टन प्लास्टिक कचरा उत्पन्न होता है. जो पिछले दो दशकों में अत्यधिक बढ़ा है. इनमें से लगभग 80 लाख टन प्लास्टिक समुद्रों में पहुंचता है, जिससे लगभग 700 प्रजातियों पर गंभीर खतरा मंडरा रहा है. उन्होंने कहा कि भारत अकेले लगभग 56 लाख टन टन प्लास्टिक कचरा प्रतिवर्ष पैदा करता है. इससे समुद्री जीवन, जैव विविधता और मानव स्वास्थ्य के लिए गंभीर खतरा बन रहा है. यदि वर्तमान प्रवृत्ति जारी रही तो 2040 तक समुद्रों में जाने वाला प्लास्टिक कचरा लगभग तीन गुना हो सकता है. यह स्थिति जलवायु बदलाव और खेती को बुरी तरह प्रभावित कर सकती है.
बचाव के उपाय क्या हैं
वैज्ञानिक कहते हैं कि इस संकट के बीच इलेक्ट्रिक वाहनों (EVs) को अपनाने एक आशाजनक संकेत है. इसके साथ ही जैव आधारित हाइड्रोजन ऊर्जा, नवीकरणीय ऊर्जा उभरता हुआ स्वच्छ ऊर्जा विकल्प है, जिस पर अभी भी पर्याप्त ध्यान नहीं दिया गया है. हरित आवरण को बढ़ावा देना जमीनी स्तर पर उतना ही जरूरी है. तेजी से हो रहे शहरीकरण के चलते प्राकृतिक भूमि की जगह अब कठोर, जल-अवरोधक सतहें ले रही हैं, जिससे प्रकृति की कार्बन अवशोषण और जलचक्र को नियंत्रित करने की क्षमता कम होती जा रही है. इसके नतीजे में आपदाएं और पर्यावरणीय समस्याएं देखी जा रही हैं. वनीकरण, हरित क्षेत्र विस्तार और प्राकृतिक इकोसिस्टम का संरक्षण जलवायु परिवर्तन के प्रभावों को कम करने के लिए बेहद जरूरी है. यह तभी संभव है जब इसमें शोधकर्ताओं, नीति-निर्माताओं, प्रशासकों और नागरिकों की सामूहिक भागीदारी पक्की हो.