केरल के एक किसान के साथ कुछ ऐसा हुआ जिसने उनके दिल को तोड़कर रख दिया. विलंगड़ में वालूक के रहने वाले पुल्पल्ली जोशी ने अपने खेत में लगे 18 फलदार नारियल के पेड़ों की टहनियां पूरी तरह से काट दी हैं. उनके पास इसके अलावा कोई और विकल्प ही नहीं था. यह फैसला उन्हें तब मजबूर होकर लेना पड़ा जब बंदरों का एक झुंड खतरा बन चुका था. बंदरों का झुंड पेड़ों पर चढ़ने लगा था. ये बंदर कोमल नारियल (tender Coconut) और पूरी तरह से विकसित नारियल तोड़कर फेंक देते थे.
नारियल हो रहा था महंगा, तब लिया फैसला
वेबसाइट मातृभूमि की रिपोर्ट के अनुसार जोशी को यह दिल तोड़ने वाला कठोर कदम ऐसे समय में उठाना पड़ा जब नारियल की कीमतें रिकॉर्ड स्तर पर पहुंच गई थीं. अब उनके घर से थोड़ी दूरी पर केवल छह नारियल के पेड़ बचे हैं. जोशी ने वेबसाइट के साथ बात करते हुए कहा, ‘नारियल से ज्यादा जरूरी है जिंदगी. अगर मेरा परिवार परेशान हो जाए तो क्या फायदा, भले ही हमें नारियल की अच्छी कीमत मिल जाए?’ जोशी की बेबसी बढ़ती मानव-वन्यजीव संघर्ष की खतरनाक सच्चाई को भी दिखाती है.
जंगली सुअर का भी आतंक
जोशी का घर नारिप्पट्टा पंचायत के वार्ड तीन में है. उनकी आजीविका नारियल, सुपारी, काली मिर्च, जायफल और कसावा की खेती पर निर्भर है. हालांकि, जंगली सूअरों और बंदर लगातार उनकी फसलों को नष्ट कर रहे हैं. इस वजह से वह आजकल खेती छोड़कर झाड़ियां साफ करने के काम में व्यस्त हैं. जोशी के अनुसार कुछ समय पहले तक वह नारियल की खूब फसल काटा करते थे. लेकिन बंदरों के बढ़ते आतंक की वजह से अगर छह महीने में एक बार पेड़ों से नारियल तोड़ा भी जाए, तो भी उन्हें मजदूरी की लागत पूरी करने के लिए जरूरी पैसा नहीं मिलता.
पूरे समय जारी रहते हैं हमले
उन्होंने बताया कि बंदरों के हमले दिन और रात दोनों समय होते हैं. वो नारियल के पेड़ों पर चढ़ते हैं. फिर पके और मुलायम दोनों तरह के नारियल तोड़ते हैं और उन्हें उनके घर में लोगों पर फेंकते हैं. यह खतरा इतना ज्यादा हो गया था उनकी पत्नी और बच्चे बाहर निकलने से भी डरते थे. जोशी के दो बच्चे हैं. अगर वो बाहर निकलते हैं तो बंदर उन पर नारियल के छिलके फेंकते हैं. उनकी पत्नी जो मनरेगा के तहत काम करती हैं, बच्चों को घर पर अकेला नहीं छोड़ सकतीं. जोशी ने कहा कि जब वे आसपास होते हैं तो बंदर परेशान नहीं करते. लेकिन वो हर समय घर पर नहीं रह सकते क्योंकि इससे परिवार की आजीविका खत्म हो जाएगी.
फॉरेस्ट ऑफिस से की शिकायत
कुट्टियाडी फॉरेस्ट ऑफिस में इस बाबत पहले भी शिकायत दर्ज कराई गई थी. इसमें बंदरों के आतंक के कारण नारियल की खेती नहीं कर पाने की बात कही गई थी. उस समय विभाग ने 4000 रुपये की आर्थिक मदद भी थी. लेकिन उसके बाद से इस आतंक को नियंत्रित करने के लिए कोई और मदद या उपाय नहीं किए गए हैं. जोशी ने सरकार से बंदरों के आतंक के खिलाफ कार्रवाई करने का अनुरोध किया है. न सिर्फ जोशी बल्कि विलंगड़ और वालूक इलाकों में कई किसान जंगली जानवरों के कारण गंभीर तौर पर पीड़ित हैं. ये किसान जंगली सूअर, बाइसन, हाथी और दूसरे जंगली जानवरों के लगातार खतरों के कारण खेती न कर पाने से निराश हैं.