बंजर जमीन पर उगने वाला तारामीरा- सरसों से भी देता है ज्यादा तेल

इस फसल की खास बात यह है कि इसकी कुछ एडवांस किस्में अधिक तेल देती हैं.

Agra | Updated On: 10 Mar, 2025 | 09:30 AM

सरसों का उत्पादन कम होने और तेल की बढ़ती कीमतों को देखते हुए सरकार तिलहन फसलों को बढ़ावा दे रही है. खासकर वह तिलहन फसलें, जो तेल की कमी को पूरा कर सकें. इन्हीं में से एक फसल है तारामीरा. ये सरसों जैसी दिखने के साथ साथ पेराई के बाद अच्छी मात्रा में तेल देती है.

इस फसल की खास बात यह है कि इसकी कुछ एडवांस किस्में अधिक तेल देती हैं. किसान को इस फसल की खेती करने से अच्छे लाभ के साथ-साथ तिलहन की समस्या से भी निजात मिल सकता है. इसके साथ ही साथ ही लोगों को लगातार महंगे तेल से भी छुटकारा मिल जाएगा. तो चलिए लेते है सरसों परिवार की खास फसल तारामीरा के बारे में अधिक जानकारी.

बंजर जमीन में लगेगी फसल
तारामीरा की सबसे बड़ी खासियत यह है कि इसे बंजर जमीन पर भी उगाया जा सकता है. खासकर वो ज़मीन, जहां कोई अन्य फसल नहीं उगती. किसान ऐसी जमीन पर तारामीरा के बीज डालकर अच्छी उपज प्राप्त कर सकते है. इसे फसल को उपजाऊ हो या अनुपयोगी, दोनों में उगाया जा सकता है. इसके बीजों से लगभग 35 प्रतिशत तेल पाया जाता है.

तारामीरा की किस्में
इस फसल की खास किस्मों में एईएस-1, एईएस-2, एईएस-3, एईएस-4 और आरएमटी-314 शामिल हैं. आरएमटी-314 को खासतौर पर बारानी क्षेत्रों में बेहतर माना जात है. इसकी औसत उपज 12-15 क्विंटल प्रति हेक्टेयर होती है और इसकी पकने की अवधि 130-140 दिन होती है. इसमें 36.9 प्रतिशत तेल पाया जाता है. साथ ही इसके हजार दानों का वजन 3-5 ग्राम होता है और इसकी शाखाएं फैली होती हैं.

कैसे करें इसकी खेती
तारामीरा की खेती करने के लिए सबसे अच्छी हल्की दोमट मिट्टी होती है. अम्लीय या अधिक क्षारीय जमीन इसके लिए उपयुक्त नहीं है. यह फसल उन इलाकों में भी लगाई जा सकती है, जहां अन्य फसलें सफलतापूर्वक नहीं लग पातें. इसे खरीफ की फसलें जैसे चारे, चंवला, उड़द, मूंग, मक्का, ज्वार आदि लेने के बाद यदि नमी हो तो हल्की जुताई करके इसे बोया जा सकता है. जितना संभव हो सके, बारिश के दौरान तारामीरा की बुवाई के लिए खेतों को खाली न छोड़ें.

दीमक से बचाव
तारामीरा के पौधओं पर दीमक का हमला अधिक होता है, इसलिए फसल को बचाने के लिए समय रहते इसका उपाय करना जरूरी है. दीमक और अन्य कीटों से बचाव के लिए बुवाई से पहले खेत में क्यूनालफॉस 1.5 प्रतिशत चूर्ण 25 किलोग्राम प्रति हेक्टेयर बिखेरकर जुताई करनी चाहिए.

ध्यान रखने वाली बातें
इस फसल की बुवाई मिट्टी की नमी और तापमान पर निर्भर करता है. फसल में 30 किलो नाइट्रोजन और 15 किलो फास्फोरस प्रति हेक्टेयर देने चाहिए. साथ ही उर्वरकों को बुवाई के समय ही देना चाहिए.

अंतिम जुताई के समय 250 किलो जिप्सम प्रति हेक्टेयर की दर से मिला दें. जहां सिंचाई की सुविधा हो, तो पहली सिंचाई 40-50 दिन में करें. वहीं दूसरी सिंचाई दाना बनने के समय करें.

कीट और रोगों का इलाज
तारामीरा की फसल पर अक्सर में मोयला कीट का हमला होता है. इस समस्या पर काबू पाने के लिए मिथाइल पैराथियान 2 प्रतिशत या कार्बेरिल 5 प्रतिशत या मैलाथियान 5 प्रतिशत चूर्ण 25 किलो प्रति हेक्टेयर की दर से छिड़काव करें. सफेद रोली, झुलसा और तुलासिता जैसे रोगों के लक्षण दिखाई देने पर डेढ़ किलो मैन्कोजेब या जाईनेब का पानी में घोल बनाकर छिड़काव करें.

पौधों में रोग बढ़ने पर इस प्रक्रिया को 20 दिन के अंतराल पर फिर दोहराएं. इसके साथ ही जब पौधों की पत्तियां झड़ने और फलियां पीली पड़ने लगें, तो फसल को काट लें.  ऐसा न करने से कटाई में देरी होगी और दाने खेत में झड़ जाएंगे.

Published: 10 Mar, 2025 | 01:24 PM