आंवला (गूजबेरी) को भारत में ‘अमृत फल’ के नाम से भी जाना जाता है. यह आयुर्वेद में औषधीय गुणों और विटामिन C की प्रचुर मात्रा के लिए जाना जाता है. इसकी बाजार में बढ़ती मांग और कम रखरखाव वाली खेती के कारण किसान इसे उगाना पसंद करते हैं. लेकिन कई बार आंवले की फसल पर लगने वाले रोगों की वजह से पैदावार कम हो जाती है या गुणवत्ता प्रभावित होने के कारण किसानों को उचित मूल्य नहीं मिल पाता.
यहां आंवला पर लगने वाले 8 प्रमुख रोग और उनके नियंत्रण के उपाय बताए गए हैं:
1. झुलसा रोग
बरसात के मौसम में आंवले के पेड़ की टहनियां झुलसने लगती हैं और तना ऊपर से नीचे की ओर सूखने लगता है. इससे फसल का 50% तक नुकसान हो सकता है.
नियंत्रण:फसल के आसपास हमेशा सफाई बनाए रखें. कार्बेन्डाजिम (0.1%) या मैन्कोजेब/जिनेब (0.25%) का छिड़काव करें.
2. धब्बा रोग
बरसात के दिनों में पत्तों पर पानी जैसे धब्बे दिखाई देते हैं, जो बाद में जलने जैसे नजर आते हैं.
नियंत्रण: कैप्टॉन (0.2%) या कार्बेन्डाजिम (0.1%) का पौधों पर छिड़काव करें.
3. एन्थ्रेक्नोज
इस रोग के कारण पत्तियों, फूलों और फलों पर काले रंग के धब्बे बनते हैं, जिससे फल जल्दी गिरने लगते हैं और उनकी गुणवत्ता घट जाती है.
नियंत्रण: कॉपर ऑक्सीक्लोराइड या कार्बेन्डाजिम का छिड़काव करें और संक्रमित भागों को हटाकर नष्ट कर दें.
4. रतुआ रोग
इस रोग के होने पर पत्तियों, फूलों, शाखाओं और तने पर नारंगी रंग के फफोले दिखाई देते हैं.
नियंत्रण: जुलाई से सितंबर के दौरान डाइथेन-ज़ेड 78 (0.2%) या वेटएबल सल्फर (0.4%) का तीन बार पौधों पर छिड़काव करें.
5. फफूंदी रोग
पौधों की पत्तियों पर धूसर या सफेद रंग की फफूंदी दिखाई देने लगती है, जिससे पौधों की फोटोसिंथेसिस प्रक्रिया बाधित होती है और पौधा धीरे-धीरे खराब होने लगता है.
नियंत्रण: बोर्डो मिश्रण (1%) का छिड़काव करें और पौधों के बीच पर्याप्त दूरी रखें ताकि हवा का प्रवाह बना रहे.
6. सूटी मोल्ड
पौधों की पत्तियों, टहनियों और फूलों पर काले रंग की मख़मली परत बनती है. यह रोग अक्सर रस चूसने वाले कीटों के कारण फैलता है.
नियंत्रण: स्टार्च (2%) या लैम्ब्डा सायहलोथ्रिन (0.05%) का छिड़काव करें या संक्रमण अधिक होने पर वेटएबल सल्फर (0.2%) मिलाकर छिड़काव करें.
7. ब्लू मोल्ड
आंवले के फलों की सतह पर भूरे रंग के धब्बे बनते हैं, जो धीरे-धीरे नीले रंग में बदल जाते हैं, जिससे फल खराब हो जाता है.
नियंत्रण: फलों को सावधानी से रखें और बोरेक्स या सोडियम क्लोराइड (1%) से उपचार करें.
8. गीली सड़न
नवंबर-दिसंबर में फलों पर भूरे और काले धब्बे दिखने लगते हैं. इस रोग का प्रभाव पके हुए फलों पर अधिक होता है.
नियंत्रण: फलों की तुड़ाई के समय चोट से बचाएं. साथ ही डाइथेन एम-45 (0.2%) या कार्बेन्डाजिम (0.1%) का छिड़काव करें.