हीट एक्शन प्लान की कमियों के बीच बीकानेर के वन से उम्मीदों को मिला नया ठिकाना

जहां देश भर के शहर इस हरियाली के संकट से जूझ रहे हैं, वहीं बीकानेर जैसे शुष्क और मरुस्थलीय क्षेत्र में एक शख्स ने न केवल हरियाली उगाई है, बल्कि जलवायु-स्थायित्व का एक जीवंत मॉडल भी प्रस्तुत किया है.

बीकानेर | Updated On: 22 Apr, 2025 | 12:22 PM

वर्ष 2024 ने जहां गर्मी के सारे रिकॉर्ड तोड़े वहीं भारतीय मौसम विभाग ने इस वर्ष अप्रेल से जून के बीच लू के दिनों में इज़ाफ़े का पूर्वानुमान जारी कर दिया है. अभी अप्रैल में इसका अहसास भी होना शुरू हो गया है. पिछले माह दिल्ली स्थित शोध अनुसंधान संस्थान सस्टेनेबल फ्यूचर्स कॉलेबोरेटिव द्वारा अमेरिका की हार्वर्ड यूनिवर्सिटी, किंग्स कॉलेज लंदन और अन्य विशेषज्ञों के साझे प्रयासों से तैयार एक शोध रिपोर्टक्या भारत गर्माती दुनिया के लिए तैयार हैशीर्षक से प्रकाशित की गई. इस रिपोर्ट में भारत के हीट एक्शन प्लान की दीर्घकालीन रणनीतियों की भारी कमी की ओर ध्यान आकर्षित किया गया है. रिपोर्ट के अनुसार देश के अधिकांश शहरी क्षेत्रों में ग्रीन इन्फ्रास्ट्रक्चर जैसे शहरी वन, हरे गलियारे और सार्वजनिक हरित स्थान की घोर कमी है, जो बढ़ती गर्मी और जलवायु आपदाओं के प्रभावों को कम करने में सहायक हो सकते हैं.

जहां देश भर के शहर इस हरियाली के संकट से जूझ रहे हैं, वहीं बीकानेर जैसे शुष्क और मरुस्थलीय क्षेत्र में एक शख्स ने केवल हरियाली उगाई है, बल्कि जलवायुस्थायित्व का एक जीवंत मॉडल भी प्रस्तुत किया है.

बीकानेर के प्रोफेसर ने 3 हजार पेड़ों वाला वन लगाया

यह कहानी है राजकीय डूंगर कॉलेज, बीकानेर के एसोसिएट प्रोफेसर श्यामसुंदर ज्याणी की, जिन्होंने 2013 में बिना किसी सरकारी आर्थिक सहयोग के अपने वेतन से कॉलेज की 16 एकड़ परित्यक्त भूमि को हरियाली में बदल दिया. आज, यह भूमि एक हराभरा संस्थागत वन बन चुकी है, जिसमें 90 से अधिक प्रजातियों के लगभग 3,000 पेड़ लहलहा रहे हैं.

इस वन का एक हिस्सा स्थानीय मरुस्थली घासों जैसे सेवण, धामण और बूर से सुसज्जित है, जो ना केवल जैव विविधता के संरक्षण में सहायक हैं, बल्कि क्षेत्रीय पारिस्थितिकी को पुनर्स्थापित करने में भी महत्वपूर्ण भूमिका निभा रहे हैं. इस जंगल में आज लोमड़ी, खरगोश, छिपकलियाँ और अन्य सरीसृप देखे जा सकते हैं. यह संकेत है कि पारिस्थितिक तंत्र फिर से जीवित हो चुका है.

Bikaner forest developed by Professor Shyam Sundar Jyani - Kisan India

Bikaner forest developed by Professor Shyam Sundar Jyani 

21 हजार पौधे बीकानेर के आर्मी स्टेशन को भेजे

वन के भीतर ही एक अभिनव पहल के रूप मेंदेव जसनाथ जन पौधशालाकी स्थापना की गई है, जो मध्यकालीन पर्यावरण संत देव जसनाथ की शिक्षाओं से प्रेरित है. यह पौधशाला हर वर्ष हज़ारों पौधे विद्यार्थियों, स्थानीय निवासियों, ग्रामीण समुदायों और भारतीय सेना को निःशुल्क प्रदान करती है. पिछले वर्ष अकेले 21,000 पौधे बीकानेर के आर्मी स्टेशन को भेजे गए, जबकि पूर्व वर्षों में बाड़मेर जैसे दूरस्थ इलाकों से लोग यहां से पौधे लेकर गए हैं.

200 से अधिक सामुदायिक वनों का विकास

प्रो. ज्याणी की यह पहल यहीं तक सीमित नहीं रही. वे स्कूल शिक्षकों और पंचायती राज संस्थाओं के सहयोग से बीकानेर संभाग में अब तक 200 से अधिक सामुदायिक वनों का विकास करवा चुके हैं. यह मॉडल भारत के मरुस्थलीय इलाकों मेंग्रीन इंफ्रास्ट्रक्चरकी एक व्यवहारिक, सामुदायिक और जलवायुसंवेदनशील अवधारणा प्रस्तुत करता है, जिसे उन्होंनेपारिवारिक वानिकीनाम दिया हैएक विचार जिसमें पेड़ों को परिवार, संस्थान और गांव द्वारा सदस्यों की तरह अपनाया जाता है.

यूएन और ऑक्सफोर्ड ने केस स्टडी की

ऑक्सफ़ोर्ड यूनिवर्सिटी और संयुक्त राष्ट्र पर्यावरण कार्यक्रम की ओर से संचालित नैचर पॉजिटिव यूनिवर्सिटीज नेटवर्क ने इस संस्थागत वन को अपनी वैश्विक पहल में शामिल करते हुए एक केस स्टडी प्रकाशित की है. आज यह एनपीयू का एक अहम हिस्सा है जो एनपीयू से जुड़े दुनियाभर के विश्वविद्यालयों के लिए एक प्रेरक उदाहरण है इसी के मद्देनजर एनपीयू ने पिछले वर्ष प्रो. ज्याणी कोस्टाफ चैंपियनके रूप में सम्मानित किया.

Professor Shyam Sundar Jyani

Professor Shyam Sundar Jyani

वन और पौधशाला खर्च की 23 लाख तनख्वाह

अद्भुत बात यह है कि इस पूरे वन और पौधशाला के निर्माण में कॉलेज से एक भी रुपया खर्च नहीं हुआ. प्रो. ज्याणी बताते हैं कि अब तक इस परियोजना पर लगभग 23 से 24 लाख रुपए खर्च हो चुके हैं, जिनमें से 19 लाख मैंने अपनी तनख्वाह से लगाए हैं. शेष राशि मेरे दोस्तों और कुछ सहकर्मियों के सहयोग से जुटाई गई. एक कर्मचारी को पौधों की देखरेख के लिए रखा है, जिसे मैं अपने वेतन में से हर माह 12 हज़ार रुपए तनख्वाह देता हूं.

पृथ्वी दिवस पर जब दुनिया टिकाऊ जीवनशैली और जलवायु समाधान की बात कर रही है और भारत का बड़ा हिस्सा गर्मी से आहत है, तब बीकानेर के एक प्रोफेसर की बदौलत उपजा यह वन हमें यह दिखाता है कि स्थायी समाधान धरती से, मेहनत से, और निष्ठा से आते हैं अकेले सरकारी  बजट से नहीं. ( लेख – श्याम सुंदर ज्याणी, प्रोफेसर, बीकानेर डूंगर कॉलेज)  

Published: 22 Apr, 2025 | 08:30 AM

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