आज के दौर में जहां हर ओर प्रदूषण की मार है, वहीं कुछ किसान ऐसे भी हैं जो न सिर्फ पर्यावरण को बचा रहे हैं, बल्कि इसी बहाने अच्छी कमाई भी कर रहे हैं. बात हो रही है कार्बन फार्मिंग की, एक ऐसी खेती जिसमें किसान धरती की सेहत सुधारते हुए अपने मुनाफे की जमीन भी पक्की कर रहे हैं.
कार्बन फार्मिंग क्या है?
साधारण भाषा में कहें तो कार्बन फार्मिंग वह तरीका है जिसमें किसान अपने खेतों की मिट्टी में ज्यादा से ज्यादा कार्बन एकत्रित करते हैं. ऐसा करके वे वातावरण में मौजूद कार्बन डाइऑक्साइड की मात्रा को कम करने में मदद करते हैं. यह न सिर्फ पर्यावरण के लिए अच्छा है, बल्कि किसानों के लिए भी एक नया कमाई का रास्ता बन गया है.
कैसे की जाती है कार्बन फार्मिंग?
- कम जुताई: बार-बार जुताई करने से मिट्टी में जमा कार्बन उड़ जाता है. कार्बन फार्मिंग में जुताई कम की जाती है.
- जैविक खाद का इस्तेमाल: रासायनिक खाद की जगह गोबर की खाद, वर्मी कम्पोस्ट आदि का उपयोग होता है.
- मिलीजुली फसलें: मूंग, अरहर जैसी दालों के साथ दूसरी फसलें मिलाकर बोई जाती हैं, जिससे मिट्टी की ताकत बनी रहती है.
- पेड़ों की सुरक्षा और घास के मैदानों को बचाकर भी इसमें मदद मिलती है.
कार्बन फार्मिंग के फायदे
1. मिट्टी की सेहत सुधरती है
कार्बन फार्मिंग से मिट्टी में कार्बन बढ़ता है, जिससे मिट्टी अधिक उपजाऊ बनती है. इससे फसलों की पैदावार भी बढ़ जाती है.
2. किसानों की आमदनी बढ़ती है
कुछ जगहों पर किसानों को कार्बन क्रेडिट्स बेचने का मौका मिलता है, जिससे उन्हें अतिरिक्त आमदनी होती है.
3. जलवायु परिवर्तन पर लगाम
कार्बन फार्मिंग ग्रीनहाउस गैसों के उत्सर्जन को कम करती है, जिससे जलवायु परिवर्तन की रफ्तार धीमी होती है.
4. पानी की बचत
इस तरीके में कम जुताई और प्राकृतिक खेती से मिट्टी की नमी बनी रहती है, जिससे सिंचाई का खर्च भी कम होता है.
5. खेती में कम खर्च
रासायनिक खाद और कीटनाशकों का इस्तेमाल घटता है, जिससे खेती की लागत भी घटती है.
6. पर्यावरण संरक्षण
जैव विविधता (पेड़-पौधे, कीड़े-मकोड़े) बढ़ती है और खेतों का पूरा इकोसिस्टम बेहतर होता है.
सरकार और कंपनियां भी आगे
कई निजी कंपनियां और सरकारें किसानों से कार्बन क्रेडिट खरीदने लगी हैं. इन क्रेडिट्स का उपयोग वे अपने कार्बन फुटप्रिंट को कम दिखाने में करती हैं. यानी किसान पर्यावरण की रक्षा करके कंपनियों की जरूरत भी पूरी कर रहे हैं.