आज हम आपको कर्नाटक की एक ऐसी किसान के बारे में बताने जा रहे हैं जिसने बंजर भूमि को भी फायदे की जमीन में तब्दील कर दिया. यह कहानी है राजाम्मा की जिन्हें शादी में अपने माता-पिता की तरफ से कुछ ऐसे बीज दिए गए थे जो काफी समय से संभालकर रखे गए थे. ये बीज उनकी समृद्धशाली जिंदगी की वजह बन गए हैं. पिछले करीब 55 सालों से कोलार की रहने वाली राजम्मा इन बीजों की वजह से आज एक ऐसे किसान के तौर पर सामने आई हैं जिन्होंने विरासत में मिले कुछ बीजों से पूरे कृषि क्षेत्र को ही बदलकर रख दिया है.
बाजरा, दालों और सब्जियों के बीज
वेबसाइट 30stades की एक रिपोर्ट के अनुसार राजम्मा के माता-पिता ने उनकी शादी पर उन्हें कुछ विरासती बीज उपहार में दिए थे. इन बीजों की मदद से पिछले 55 सालों में उन्होंने 120 प्रकार के बाजरा, दालों और सब्जियों के बीजों को उगाया और सहेजा है. इन बीजों को उन्होंने किसानों के साथ साझा किया है और पट्टे पर दी गई बंजर जमीनों को हरे-भरे खेतों में बदल दिया है. राजम्मा, कोलार की कुरुबा समुदाय से आती हैं. वह पिछले आधी सदी से उन बीजों से फसल को दोगुनी करती आ रही हैं. उनके परिवार के पास टोंडाहल्ली गांव में आधे एकड़ से भी कम जमीन है. यह गांव कोलार के मुलाबागिलू में आता है.
45 फसलों के पुश्तैनी बीज
कर्नाटक का कोलार जिला वह जगह है जो जंगल की कमी से गुजर रहा है और यहां की जलवायु भी अर्धशुष्क है. ऐसे में यहां पर खेती करना भी काफी मुश्किल हो जाता है. राजम्मा खेती के लिए और माता-पिता से मिले बीजों को सहेजने के लिए पारंपरिक तरीकों पर ही यकीन करती हैं. उन्होंने वेबसाइट को बताया कि वो लाल मिट्टी, राख और गौमूत्र का प्रयोग उर्वरक के तौर पर करती हैं. इसके अलावा नीम और करंज के पत्तियों का प्रयोग भी करती हैं. ये सूखी होती हैं और बीज को ट्रीट करने के लिए इन्हें तरल पदाथों में मिलाया जाता है. राजम्मा के पास आज 45 ऐसी फसलों की 120 किस्मों के बीज हैं जो बारिश पर निर्भर हैं. इनमें ज्वार, मोती बाजरा, खलिहान बाजरा, फॉक्सटेल बाजरा और कोदो बाजरा के अलावा कुछ दालों और सब्जियों के भी बीज उनके पास हैं.
लेकिन नहीं मिलती कोई सब्सिडी
उनकी मानें तो सारे बीज 100 फीसदी ऑर्गेनिक हैं और किसी भी तरह के रसायन के संपर्क में कभी नहीं आए हैं. 71 साल की राजम्मा के साथ उनके बेटे प्रभाकर के पास कृषि विज्ञान केंद्र (KVK) और एनजीओ से भी कुछ लोग इन बीजों को खरीदने के लिए आते हैं. हालांकि इन्हें अभी तक किसी भी तरह की सब्सिडी और सरकारी योजना का फायदा नहीं मिल सका है. बेटे प्रभाकर के अनुसार वो सीमांत किसान हैं और उनके पास कोई भी जमीन नहीं है और ऐसे में वो किसी भी योजना के पात्र नहीं हैं.