अगर कोई कहे कि वह बंजर पहाड़ पर एक घना जंगल उग सकता है,तो शायद आप यकीन न करें. लेकिन इंदौर के डॉ. शंकर लाल गर्ग ने यह कर दिखाया. जहां कभी सिर्फ सूखी, पत्थर से भरी जमीन थी, वहां आज 40,000 से ज्यादा पेड़ लहलहा रहे हैं. यह सफर काफी मुश्किलों भरा था. बात करें 2019 में जब उनके जंगल में आग लगी और 1,000 से ज्यादा पेड़ जलकर राख हो गए, तो यह किसी बुरे सपने से कम नहीं था. लेकिन डॉ. गर्ग ने हार मानने के बजाय और भी ज्यादा जोश से अपने जंगल को फिर से खड़ा करने की ठानी.
आज, 22 एकड़ में फैले इस जंगल में औषधीय और छायादार पेड़ हैं. यहां पक्षियों की चहचहाहट गूंजती है और जंगली जानवर वापस लौट आए हैं. लेकिन इस सपने को हकीकत में बदलना आसान नहीं था.
कॉलेज के बजाय जंगल उगाने का फैसला
डॉ. गर्ग, जो पहले इंदौर में एक सरकारी स्कूल के प्रधानाचार्य थे, 2015 में रिटायर होने के बाद उन्होंने सोचा था कि केशर पर्वत पर कॉलेज बनाएंगे, जो उनके लिए आर्थिक से रूप फायदेमंद साबित होता. लेकिन उन्होंने पत्थरों से भरी जमीन को एक हरे-भरे जंगल में बदलने का फैसला किया. 67 साल की उम्र में, जब लोग आराम करना पसंद करते हैं, तब उन्होंने पेड़ लगाने की चुनौती को अपना मिशन बना लिया. लेकिन यह आसान नहीं था. यह जमीन पत्थरों से भरी और यहां पानी की बेहद कमी थी.
कैसे हुई बंजर जमीन को जंगल में तब्दील करने की
डॉ. गर्ग, बताते हैं की ” 2019 की एक रात, जब इंदौर के रिटायर्ड प्रोफेसर डॉ. शंकर लाल गर्ग अपने घर पर आराम कर रहे थे, तभी एक फोन कॉल ने उनकी वर्षों की मेहनत पर पानी फेर दिया. अपनी आंखों के सामने अपने सपने को राख में बदलते देखा. केशर पर्वत पर उन्होंने जो हरा-भरा जंगल तैयार किया था, वह जलकर खाक हो चुका था. करीब 1,000 पेड़ जल चुके थे. यह नजारा किसी बुरे सपने जैसा था.
इसके साथ ही वह यह भी बताते हैं कि “वह हार नहीं माने. आठ साल बाद उन्होंने मालवा पठार पर स्थित बंजर भूमि को जंगल में बदलने का फैसला किया. लेकिन यह आसान नहीं था. “जब मैंने खुदाई शुरू की, तो 5-6 इंच से ज्यादा खुदाई कर पाना संभव नहीं था. मैंने ऊपर से मिट्टी डलवाई और 100 पौधे लगा दिए. रोज़ पानी डालता था और कुछ ही दिनों में वे बढ़ने लगे. धीरे-धीरे पेड़ अपनी जड़ें खुद चट्टानों में बना लेते हैं. यही प्रकृति का नियम है. और आज उन्होंने न केवल फिर से पेड़ लगाए, बल्कि 22 एकड़ में फैला घना जंगल खड़ा कर दिया है.
बिना संसाधनों के कैसे उगाया जंगल?
डॉ. गर्ग के पास कोई सरकारी सहायता नहीं थी. उन्होंने पेड़ लगाने की शुरुआत नीम, पीपल, आम, अमरूद और बरगद जैसे पौधों से की. धीरे-धीरे यह पौधे जंगल का आकार लेने लगे. आज यहां 40,000 पेड़ हैं, जिनमें से 15,000 से ज्यादा पेड़ 12 फीट से ऊंचे हो चुके हैं. जंगल में अब सागौन, शीशम, चंदन, जैतून (इटली और स्पेन से), एवोकाडो (ऑस्ट्रेलिया से) और खजूर (मेक्सिको से) जैसे पेड़ भी उगाए जा रहे हैं.
केसर की खेती – नामुमकिन को मुमकिन बनाया
इन सबके बीच एक बड़ी सफलता केेसर (सैफरन) की खेती थी. मालवा का यह इलाका गर्म होने के कारण यहां केशर उगाना लगभग असंभव था. लेकिन 2023 में उन्होंने 500 केशर के फूल उगाकर सबको चौंका दिया. इसके साथ ही बता दें की उनका जंगल अब एक जैव विविधता का केंद्र(Biodiversity Center) बन चुका है. यहां अब सियार, जंगली सूअर और 30 से अधिक पक्षियों की प्रजातियां वापस आ चुकी हैं.
पानी की समस्या को कैसे किया हल?
Thebetterindia की रिपोर्ट के अनुसार डॉ. गर्ग बताते हैं शुरुआत में, डॉ. गर्ग ने तीन बोरवेल खुदवाए, लेकिन उनमें से किसी में भी पानी नहीं आया. फिर उन्होंने पानी के टैंकर खरीदने शुरू किए. 6,000 लीटर पानी के एक टैंकर की कीमत 600 रुपये थी, लेकिन गर्मियों में यह 2,000 रुपये तक पहुंच जाती थी. हर दिन एक टैंकर खरीदना पड़ता था. लेकिन आज स्थिति पूरी तरह बदल चुकी है. इस जंगल ने इलाके का जल स्तर बढ़ा दिया है. जहां पहले 600 फीट की खुदाई पर भी पानी नहीं मिलता था, अब केवल 250 फीट पर पानी आ रहा है.
डॉ. गर्ग की सबसे बड़ी सीख यह है कि हर इंसान को कम से कम एक पेड़ जरूर लगाना चाहिए. वे कहते हैं कि एक पेड़ आपको और दूसरों को ताजी हवा, फल, छाया, और बाढ़-सूखे से बचाव देगा. एक पेड़ लगाना एक पीढ़ी के लिए निवेश करने जैसा है.