अगर किसान अपनी खेती के पारंपरिक तरीकों में बदलाव करें और आधुनिक, टिकाऊ तकनीकों को अपनाएं, तो कम जमीन में भी अच्छी कमाई की जा सकती है. महाराष्ट्र के पुणे जिले के नसरपुर की 42 वर्षीय महिला किसान चैत्राली कृष्ण फडतारे इसकी बेहतरीन मिसाल हैं. उन्होंने अपनी 35 एकड़ जमीन पर ट्रेडिशनली केमिकल्स खेती छोड़कर ऑर्गेनिक खेती अपनाई और अब सिर्फ आधे एकड़ में हर महीने 1 लाख रुपये तक मुनाफा कमा रही हैं. इसके साथ ही, उन्होंने अपने खेत को एक एग्रो-टूरिज्म सेंटर में भी बदल दिया, जहां देश-विदेश से लोग ऑर्गेनिक खेती को देखने और सीखने के लिए आते हैं.
कैसे आया बदलाव?
चैत्राली फडतारे पिछले 25 सालों से पारंपरिक खेती कर रही थीं जिसमें केमिकल्स मैन्योर और पेस्टिसाइड्स का भारी इस्तेमाल किया जाता था. जिसे उत्पादन लागत बढ़ रही थी, लेकिन मुनाफा सीमित था. साथ ही, केमिकल्स खेती की वजह से मिट्टी की फर्टिलिटी कम हो रही थी और खेत में काम करने वाले मजदूरों को त्वचा रोग और अन्य स्वास्थ्य समस्याएं भी हो रही थीं.
तभी साल 2024 में चैत्राली ने ‘द आर्ट ऑफ लिविंग’ संस्था के ‘श्री श्री शेतकरी मंच’ के तहत एक ट्रेनिंग सेशन में भाग लिया. इस सेशन को नैचुरल फार्मिंग के विशेषज्ञ प्रभाकर राव ने लिया था. यहां उन्होंने जाना कि कैसे एक देसी गाय का गोबर और गोमूत्र 20 एकड़ तक की खेती को उपजाऊ बना सकता है. इस ट्रेनिंग से मोटिवेट होकर चैत्राली ने तुरंत अपनी खेती में बदलाव करने का फैसला किया. उन्होंने केमिकल्स मैन्योर और पेस्टिसाइड्स का इस्तेमाल पूरी तरह से बंद कर दिया और उसकी जगह जीवामृत, मल्चिंग और इंटरक्रॉपिंग जैसी बायोटेक्नोलॉजी को अपनाया.
प्राकृतिक खेती को अपनाने के फायदे
चैत्राली के इस फैसले के नतीजे जल्द ही दिखने लगे. उनकी फसलें न सिर्फ पहले से ज्यादा स्वस्थ और हरी-भरी हो गईं, बल्कि उनकी लागत भी काफी कम और मुनाफा कई दुगनी बढ़ गई. तो वहीं रासायनिक खेती के कारण बंजर होती मिट्टी फिर से उपजाऊ हो गई. जिसे उनकी उगाई जाने वाली फसलें, जैसे धनिया, टमाटर, पालक, लौकी और करेला, अब पूरी तरह से ऑर्गेनिक और स्वाद में पहले से बेहतर होने लगे. इसके साथ ही खेत में काम करने वाले लोगो की त्वचा रोग या अन्य स्वास्थ्य समस्या भी खत्म हो गई और ग्राहक बिना किसी चिंता के ताजी ऑर्गेनिक सब्ज़ियां भी खरीद रहे हैं.
खेती को बनाया एग्रो-टूरिज्म सेंटर
उन्होंने न केवल खुद की खेती बदली, बल्कि दूसरों को भी नैचुरल फार्मिंग की शिक्षा दी. साथ ही उन्होंने अपने खेत को एग्रो-टूरिज्म सेंटर में बदला, जहां देश-विदेश से लोग नैचुरल फार्मिंग को करीब से देखने और समझने आने लगें.
इन सेंटर्स पर विजिटर्स का स्वागत ऑर्गेनिक स्नैक्स से किया जाता है, जो खेत की उपज से ही बनाए जाते हैं.
मेहमानों को खेत की सैर कराई जाती है, जहां वे केमिकल्स और प्राकृतिक खेती का अंतर अपनी आंखों से देख सकते हैं.
संस्कृति और अध्यात्म से जुड़ाव: इसे साथ खेत के पास स्थित बाणेश्वर मंदिर इस अनुभव को और खास बना देता है.
हर हफ्ते कितने टूरिस्ट आते हैं.
हर वीकेंड 150 से 300 पर्यटक इस फार्म पर आते हैं. इसके अलावा, स्कूली बच्चों के लिए ‘शेत शिवार फेरी’ नाम का एक विशेष कार्यक्रम भी शुरू किया गया है, जिसमें बच्चों को खेल-खेल में खेती के बारे में सिखाया जाता है. तो वहीं इस से दूसरे किसान भी हो रहे प्रेरित नसरापुर गांव के ज्यादातर किसान अभी भी पारंपरिक केमिकल्स खेती कर रहे हैं. लेकिन चैत्राली की सफलता ने उनके बीच एक नई सोच की जन्म दिया है. अब कई किसान प्राकृतिक खेती अपनाने में रुचि दिखा रहे हैं .
भविष्य की योजनाएं
Krishi jagran की रिपोर्ट के अनुसार चैत्राली फडतारे केवल खुद के लिए ही नहीं, बल्कि पूरे कृषि समुदाय के लिए कुछ बड़ा करने का सपना देख रही हैं. उनका उद्देश्य ज्यादा से ज्यादा किसानों को प्राकृतिक खेती के फायदों के बारें में समझें ताकि वे आसानी से अपना सके. इसके साथ ही एग्रो-टूरिज्म का विस्तार कर एक ऐसा मॉडल सेंटर बनाना चाहती हैं, जहां देश-विदेश के लोग आकर प्राकृतिक खेती की बारीकियों को और भी बेहतर तरीके से सीख सकें. जिसे वह एक आत्मनिर्भर कृषि मॉडल तैयार कर सके जो दूसरे गांवों में भी आसानी से अपनाया जा सके.