असम के संतरा और नींबू किसानों के लिए काजी नींबू किस्म (Kaji Nemu) वरदान बन गई है. इसमें पाए जाने वाले औषधीय गुणों के चलते यह नियमित खाने के साथ ही इसका इंडस्ट्रियल इस्तेमाल खूब किया जाता है. वर्तमान में अमेरिका, सिंगापुर समेत कई यूरोपीय देशों से इस नींबू की डिमांड खूब आ रही है. इसके चलते इसे अधिक दाम मिल रहा है और बिक्री भी तुरंत हो जा रही है. भारतीय कृषि अनुसंधान संस्थान के सहयोग से डिराक मैथोंग गांव इस नींबू का गढ़ बन गया है. चरणबद्ध तरीके से इसकी आधुनिक खेती शुरू करने के लिए शामिल किए गए किसानों की आमदनी में 3 गुना तक की बढ़ोत्तरी हुई है. जबकि, उत्पादन में उछाल देखा गया है.
भारतीय कृषि अनुसंधान संस्थान के राष्ट्रीय एकीकृत कीट प्रबंधन अनुसंधान संस्थान के अनुसार असम कई अनूठी खट्टे नींबू की किस्मों का घर है. यहां के स्थानीय नींबू किस्म को लोग काजी नेमू (Kaji Nemu) के नाम से जानते हैं. भोजन में इस्तेमाल होने के साथ ही औषधीय और औद्योगिक उपयोगों के लिए प्रिय इस खट्टे फल को कीटों के संक्रमण, खराब पैदावार और रासायनिक कीटनाशकों पर भारी निर्भरता समेत कई चुनौतियों का सामना करना पड़ा है. मूल्यवान फसल होने के बावजूद काजी नेमू के उत्पादन में ट्रंक बोरर, फल चूसने वाले कीट, एफिड्स और साइट्रस कैंकर जैसे कीटों की वजह से गिरावट देखी जा रही थी.
8 साल पहले शुरू प्रोजेक्ट को सफलता
ICAR-राष्ट्रीय एकीकृत कीट प्रबंधन अनुसंधान केंद्र (ICAR-NRIIPM) ने 2017 में इन चुनौतियों को पहचानते हुए तिनसुकिया में असम कृषि विश्वविद्यालय के साइट्रस अनुसंधान स्टेशन (AAU-CRS) के साथ मिलकर भारत सरकार के जनजातीय उप-योजना (TSP) कार्यक्रम के तहत पहल शुरू की. इसका लक्ष्य असम के आदिवासी किसानों को एकीकृत कीट प्रबंधन (IPM) के जरिए काजी नेमू का उत्पादन बढ़ाना और सामाजिक आर्थिक स्थिति को ऊपर उठाना था.
IPM मॉडल से खेती कर रहे 611 किसान
असम के मध्य में बाढ़ग्रस्त क्षेत्र डिराक मैथोंग गांव में क्षेत्रफल 418 हेक्टेयर में किसान परिवारों के साथ मिलकर इस पहल को शुरू किया गया. पहले चरण में 34 लाभार्थी परिवारों को प्रोजेक्ट में शामिल किया गया, जिन्होंने 12.7 हेक्टेयर काजी नेमू की खेती की. दूसरे चरण में 40 और परिवारों को जोड़कर 19.6 हेक्टेयर में खेती बढ़ाई गई. कुल 611 किसान परिवार अब इस नींबू की खेती के लिए प्रोजेक्ट से जुड़े हैं. यहां पर एक स्थान विशिष्ट IPM मॉडल लागू किया गया. इसमें किसानों को नई कीट नियंत्रण विधियों और स्वदेशी तकनीकी ज्ञान (ITK) से लैस कर ट्रेनिंग और इनपुट दिए गए.
नींबू किसानों की कमाई 3 गुना बढ़ी
कीटों से फसल को होने वाले नुकसान को कम करके और कीट प्रबंधन तकनीकों में सुधार करके इस परियोजना ने असम नींबू की खेती में उल्लेखनीय वृद्धि की, जो 33 हेक्टेयर से बढ़कर 107 हेक्टेयर हो गई. जबकि, किसानों की आय में दो से तीन गुना का इजाफा देखा गया. वहीं, औसत नींबू उपज 4,421 किलोग्राम प्रति हेक्टेयर से बढ़कर 7,614 किलोग्राम प्रति हेक्टेयर हो गई. इसके अलावा सहकारी समिति के तहत असम नींबू नर्सरी की स्थापना की गई. इसने किसानों को स्वस्थ रोपण सामग्री बेचकर अतिरिक्त कमाई करने का मौका दिया.
विदेशों में खूब मांग और जीआई टैग
डिराक मैथोंग गांव को अब ‘आईपीएम गांव’ के रूप में जाना जाता है. क्योंकि, यहां का टिकाऊ साइट्रस खेती का एक मॉडल बन गया है. आज काजी नेमू को वैश्विक पहचान वाला उत्पाद बना दिया है. अब इन फलों की बिक्री पूरे भारत में की जाती है और सिंगापुर, दुबई और यूनाइटेड किंगडम के अंतरराष्ट्रीय बाजारों में भी इनका निर्यात किया जाता है. CRS-ना दिहिंग नेमू टेंगा उन्नयन समिति ने बिचौलियों को हटाकर किसानों को बेहतर रिटर्न हासिल करने में मदद की. सहकारी समिति ने असम नींबू के लिए भौगोलिक संकेत (जीआई) टैग हासिल करने में भी महत्वपूर्ण भूमिका निभाई. जीआई टैग हासिल करने की प्रक्रिया अभी चल रही है.
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