अजवाइन एक ऐसा मसाला है जो हर भारतीय के किचन में पाया जाता है. पेट के दर्द से लेकर पराठें और समोसे के स्वाद को यह दोगुना मसाला कर देता है. शायद इसी बात को कर्नाटक के एक किसान ने समझा और अजवाइन की खेती में हाथ आजमाया. आपको जानकर हैरानी होगी कि इस मसाले की खेती से इस किसान को जमकर फायदा हुआ. दिलचस्प बात है कि किसान ने जिस गांव में इसकी खेती की वह अक्सर सूखे का शिकार हो जाता है.
सूखे के बीच कमाया अच्छा मुनाफा
कर्नाटक के कलबुर्गी जिले के चित्तपुर तालुक के गोटूर गांव में कल्याणराव जलजी ने अजवाइन की खेती की. जब पूरे राज्य से सूखे के वजह से कृषि संकट की परेशान करने वाली खबरें आ रही थीं, तब कलबुर्गी जिले के सूखाग्रस्त गोटूर गांव के किसान कल्याणराव जलजी अच्छा मुनाफा कमा रहे थे. कल्याणराव कैरम सीड या अजवाइन की खेती करके सफलता की नई कहानी लिख रहे थे. अजवाइन दरअसल भारतीय रसोई में व्यंजनों को तैयार करने के साथ-साथ दवा कंपनियों में पाचन संबंधी बीमारियों से पटने के लिए दवाओं को बनाने के लिए बड़े पैमाने पर प्रयोग की जाती है.
लाखों का नेट प्रॉफिट
जलजी ने अपनी पांच एकड़ बारिश आधारित भूमि पर अजवायन की खेती करते हैं. उन्हें एक एकड़ में आठ क्विंटल तक की उपज मिलती है. वह इसे 25,000 प्रति क्विंटल तक बेचते हैं. मजदूरी, बीज, खाद, कीटनाशक और अन्य इनपुट सहित खेती की लागत पांच हजार रुपये प्रति एकड़ से ज्यादा नहीं होती है. उन्हें एक एकड़ से एक लाख रुपये तक का नेट प्रॉफिट होता है.
वह कहते हैं कि अजवाइन की अच्छी कीमत मिलती है. तेलंगाना के विकाराबाद बाजार में इसकी अच्छी मांग है. जलजी साल 2015 से अजवाइन बेच रहे हैं. सिर्फ इतना ही नहीं वह मसालेदार खाद्य उत्पाद बनाने के लिए इस्तेमाल होने वाले अजवाइन के चोकर को भी करीब 6000 रुपये प्रति क्विंटल की दर से बेचते हैं. इससे उन्हें 20,000 रुपये की एक्स्ट्रा इनकम भी होती है.
इसकी खेती के हैं कई फायदे
अजवाइन की खेती के कई फायदे हैं. पहला, इसे ज्यादा पानी की ज़रूरत नहीं होती और यह बारिश आधारित क्षेत्रों के लिए उपयुक्त है. जलजी के अनुसार, इसे लाल चने जितना ही पानी की जरूरत होती है. दूसरा, इसे उगाने के लिए कम मज़दूरों की जरूरत होती है. जलजी फसल कटाई के मौसम को छोड़कर पूरे सीजन में पूरे पांच एकड़ की खेती खुद ही करते हैं. वे अपने पांच एकड़ अजवाइन की कटाई के लिए सिर्फ चार से पांच मजदूरों को काम पर रखते हैं. तीसरा, फसल की एक अलग खूशबू होती है और स्वाद में भी कड़वी होती है. इस वजह से मवेशी या भेड़ इसे पसंद नहीं करते. इस तरह, फसल आवारा जानवरों से खुद ही सुरक्षित रहती है.