अक्सर आपको लगता है कि खेती-किसानी में बहुत कम महिलाएं हैं और जो हैं उन्हें सफलता मुश्किल से मिलती है. लेकिन ऐसा नहीं है और आज खेती में भी महिलाएं अपना परचम लहरा रही हैं. ऐसी ही एक महिला हैं आंध्र प्रदेश की अनुगुला वेंकट सुगुणम्मा जिन्होंने नैचुरल फार्मिंग यानी प्राकृतिक तरीके से होने वाली खेती में सफलता की नई कहानी लिखी है. उनकी कहानी को नीति आयोग ने भी अपनी वेबसाइट पर साझा किया है.
बोई धनिस्ता धान की किस्म
अनुगुला ने आम, मूंगफली और धान की खेती से सबको प्रेरित किया है. आज वह अपनी सफलता से क्षेत्र की दूसरी महिलाओं को भी प्रभावित कर रही हैं. नीति आयोग की तरफ से दी गई जानकारी के अनुसार अनुगुला ने साल 2018 में मंडल स्तर की एक मीटिंग में हिस्सा लिया था. यह मीटिंग प्राकृतिक खेती से जुड़ी थी और यहीं से उन्होंने नैचुरल फार्मिंग को अपनाया. मीटिंग में विशेषज्ञों की तरफ से प्राकृतिक खेती के तरीकों और इनसे होने वाले फायदों के बारे में बताया गया था. अनुगुला के पास 18 एकड़ जमीन है, जिसमें 15 एकड़ आम का बाग, 2 एकड़ मूंगफली और 1 एकड़ धान है. लेकिन प्राकृतिक खेती के लिए अनुगुला ने धान की धनिस्ता किस्म को चुना और इसकी खेती की.
अच्छी फसल के लिए क्या किया
अनुगुला ने बीजामृत, घनजीवामृत, द्रवजीवामृत, कषायम जैसे प्राकृतिक खेती के सभी तरीकों का पालन किया. उन्होंने मिट्टी में 400 किलोग्राम घनजीवामृत डाला, उसके बाद 3 टन गोबर की खाद डाली. साथ ही हर 15 दिन में द्रवजीवामृत का छिड़काव किया. इसके साथ-साथ बीजामृत से बीजोपचार किया. अनुगुला ने 9 एकड़ जमीन में नवधान्य बोया और बाद में इसे मिट्टी में मिला दिया. उन्होंने गांव के बाकी किसानों को प्राकृतिक खेती के बेहतर तरीकों से रूबरू करवाया. एक सीजन के बाद, कई किसान उनसे प्रेरित हुए और उन्होंने भी प्राकृतिक खेती को अपनाना शुरू कर दिया.
हुआ कितना फायदा
अनुगुला ने जब प्राकृतिक खेती के तरीकों की मदद से धान की धनिस्ता किस्म को बोया तो इसकी खेती में पारंपरिक धान की किस्म RNR-15048 की तुलना में कम खर्च आया. धनिस्ता किस्म को बोने में जहां 25950 रुपये खर्च हुए तो पारंपरिक धान को बोने में 32450 रुपये का खर्च आता था. वहीं धनिस्ता की उपज भी ज्यादा थी.अनुगुला को प्राकृतिक खेती से एक एकड़ में बोए गए धनिस्ता धान की 27.4 क्विंटल उपज हासिल हुई. जबकि पारंपरिक धान की मात्रा सिर्फ 24 क्विंटल ही थी.
धनिस्ता धान में उन्हें 68500 रुपये का रिटर्न हासिल हुआ. वहीं पारंपरिक किस्म की बात करें तो यह आंकड़ा 45600 रुपये पर ही था. धनिस्ता धान की किस्मसे उन्हें नेट प्रॉफिट 42550 रुपये मिला तो पारंपरिक धान की किस्म से वह सिर्फ 13150 रुपये का ही शुद्ध लाभ कमा पा रही थीं. साफ है कि किस तरह से प्राकृतिक तरीके से खेती से करने से ज्यादा आर्थिक फायदा हो रहा था.