जरा आंखें बंद करिए और एक तस्वीर देखिए… एक गांव का साधारण-सा आंगन. सूरज ढलने को है, और हल्की गुलाबी रोशनी दूर खेतों में पसरी हुई है. आंगन में रस्सियों से बंधी भैंसें अपने बछड़ों को दूध पिला चुकी हैं, और अब एक किसान बाल्टी लेकर भैंस दुह रहा है. दूध की मोटी धार बाल्टी में गिरते ही झाग बनने लगता है. वो गाढ़ा, सफेद दूध, जिसकी खुशबू में ताजगी भी है और मेहनत की महक भी. किसान की आंखों में सुकून है, क्योंकि ये भैंसें उसके लिए सिर्फ पशु नहीं, बल्कि उसकी उम्मीद का खजाना हैं. लेकिन जनाब, ये कोई साधारण भैंसें नहीं हैं! ये हैं भारत की शाही नस्लें, जो दूध के मैदान में बादशाहत करती हैं. इनकी खासियत यह है कि एक बार ब्याने के बाद ये किसान को महीनों तक झोली भर दूध देती हैं. इनका दूध इतना गाढ़ा होता है कि मक्खन निकालते ही घर में त्योहार जैसा माहौल बन जाता है. ऐसा नहीं कि ये सिर्फ हिंदुस्तान में ही राज करती हैं, बल्कि विदेशों में भी इनकी मांग है. तो चलिए, अब आपको बताते हैं उन भैंसों के बारे में, जिनके नाम से ही पशुपालकों की आंखों में चमक आ जाती है.
मुर्रा भैंस है काला सोना
हरियाणा और पंजाब में किसान मुर्रा नस्ल की भैंसों को “काला सोना” कहकर बुलाते हैं. मुर्रा भैंस का जलवा ही कुछ ऐसा है! इसका रंग स्याह काला और चमकदार है, और इसके सींग जलेबी की तरह गोल होते हैं. इसकी सबसे बड़ी खासियत यह है कि सही देखभाल के साथ यह दिन में 15 से 20 लीटर तक दूध दे सकती है, और कुछ खास परिस्थितियों में 25 से 30 लीटर तक भी. इसके दूध में 7% तक वसा होती है, जो इसे गाढ़ा और पौष्टिक बनाती है. मुर्रा भैंस का गर्भकाल करीब 310 दिन का होता है, और अगर इसकी अच्छी देखभाल की जाए, तो यह सालों तक मुनाफा देती रहती है. बाजार में इसकी कीमत 50,000 से 2 लाख रुपये तक होती है, जो इसकी नस्ल और दूध देने की क्षमता पर निर्भर करती है. सिर्फ भारत ही नहीं, बल्कि विदेशों में भी इसकी खूब मांग है, जहां इसका इस्तेमाल डेयरी उद्योग में किया जाता है.
डेयरी का हीरा है जाफराबादी नस्ल
गुजरात की शान मानी जाने वाली जाफराबादी भैंस का नाम इसके मूल स्थान, जाफराबाद के नाम पर पड़ा है. इसे देखते ही समझ आ जाता है कि यह वजन में भारी है—करीब 700 से 900 किलो तक. इसके सींग घुमावदार और रंग गहरा काला होता है. दूध देने में यह शानदार है, और सही देखभाल के साथ यह रोजाना 15 से 25 लीटर तक दूध देती है, कभी-कभी 30 लीटर तक भी. इसकी त्वचा ढीली होती है, और कई बार इसके माथे पर सफेद निशान इसकी पहचान बनता है. इसके दूध में वसा की मात्रा 7 से 9% तक होती है, जो इसे डेयरी उत्पादों के लिए बेहतरीन बनाती है. डेयरी उद्योग में इसे सोने की खान माना जाता है. बाजार में इसकी कीमत 50,000 से 1 लाख रुपये तक होती है.
घी देने वाली रानी है भदावरी भैंस
भदावर के इलाके से निकली इस नस्ल का इतिहास बड़ा दिलचस्प है. पहले आगरा, भिंड, इटावा और ग्वालियर के कुछ हिस्सों को मिलाकर एक राज्य था, जिसे भदावर कहा जाता था. वहीं इस नस्ल का विकास हुआ, इसलिए इसे भदावरी भैंस कहते हैं. इसका दूध घी बनाने के लिए आदर्श माना जाता है, क्योंकि इसमें वसा की मात्रा 8 से 10% तक होती है. इस भैंस का रंग तांबई होता है और इसकी गर्दन पर दो धारियां होती हैं, जिन्हें ‘कंठ माला’ कहा जाता है. यह कठिन परिस्थितियों में भी जीने का माद्दा रखती है और कम चारे में भी अच्छा दूध देती है. एक दिन में यह 5 से 10 लीटर दूध देती है, जो छोटे किसानों के लिए वरदान है. बाजार में इसकी कीमत 60,000 से 1 लाख रुपये तक होती है.
कम खुराक में ज्यादा दूध देती है सूरती
गुजरात की चारोतर पट्टी में पाई जाने वाली सूरती भैंस अपने कम खर्चे और ज्यादा उत्पादन के लिए मशहूर है. इसका रंग सिल्वर ग्रे से लेकर काला तक हो सकता है, और इसकी पूंछ लंबी होती है. इसके दूध में वसा की मात्रा 8 से 12% तक होती है, जो इसे घी और मक्खन बनाने के लिए बेहतरीन बनाती है. एक ब्यात में यह 900 से 1300 लीटर दूध देती है, जो छोटे किसानों के लिए फायदे का सौदा है. इसका वजन 400 से 450 किलो तक होता है, और बाजार में इसकी कीमत 30,000 से 70,000 रुपये तक होती है. यह भैंस उन किसानों के लिए वरदान है, जो कम संसाधनों में ज्यादा मुनाफा कमाना चाहते हैं.
देसी नस्लें क्यों हैं बेमिसाल?
ये भैंसें सिर्फ दूध नहीं देतीं, बल्कि किसानों को एक स्थायी आय का जरिया भी देती हैं. मुर्रा और जाफराबादी जैसी भैंसें भारी मात्रा में दूध देती हैं, तो सूरती और भदावरी जैसी नस्लें कम खर्च में मुनाफा देती हैं. इनके दूध से घी, मक्खन, पनीर और अन्य डेयरी उत्पाद बनाए जाते हैं, जो बाजार में अच्छी कीमत पर बिकते हैं. इन भैंसों की सबसे बड़ी खासियत यह है कि ये भारत की जलवायु और परिस्थितियों के अनुकूल हैं, और इन्हें पालना आसान है. यही वजह है कि देसी नस्ल की भैंसों की मांग अब विदेशों में भी बढ़ रही है.