पशुपालकों के लिए हमेशा से मुनाफा बनाने को लेकर चुनौती रही है. लेकिन, अगर वह सही नस्ल के पशुओं का पालन करें तो कमाई की चिंता आसानी से दूर हो सकती है. यहां हम बात कर रहे हैं राजस्थान के रेगिस्तानी इलाकों में पाई जाने वाली खास नस्ल की गाय, जिसका नाम है थारपारकर. यह गाय भारत में मुख्य रूप से जैसलमेर, बाड़मेर, जोधपुर और कच्छ के कुछ हिस्सों में मिलती है. वही इसका उद्गम स्थान पश्चिमी राजस्थान और पाकिस्तान का सिंध इलाका माना जाता है. इसका शरीर छोटा लेकिन मजबूत होता है, रंग हल्का भूरा और सींग मध्यम आकार के होते हैं. यह गाय मौसम के हिसाब से खुद को ढालने में सक्षम है. चलिए जानते हैं इस गाय में क्या खूबियां है?
300 दिन तक दूध देती है थारपारकर
थारपारकर गाय का लैक्टेशन पीरियड यानी दूध देने का समय करीब 300 दिन का होता है. इस दौरान ये गाय साल में करीब 3000 लीटर दूध देती है. खास बात यह है कि इसके दूध में ओमेगा-3 फैटी एसिड और अच्छी वसा पाई जाती है, जो शरीर के लिए फायदेमंद होती है. यही वजह है कि इस गाय को दोहरी कमाई वाली गाय भी कहा जाता है. बीमार लोगों को इसके दूध का सेवन करने की भी सलाह दी जाती है.
दूध से सालाना 72 लाख की कमाई
जैसलमेर के भू गांव के स्वरुप दान सिंह कई पीढ़ियों से थारपारकर गायों का पालन कर रहे हैं. उनके पास आज 60 गायें हैं जो रोजाना लगभग 400 लीटर दूध देती हैं. अगर बाजार भाव 60 प्रति लीटर तक मानें तो स्वरुप सिंह को रोजाना 24,000 रुपए तक की कमाई होती है. इस हिसाब से सालाना ये कमाई करीब 70 से 72 लाख रुपये तक है. इसके अलावा इस गाय का गोबर और गोमूत्र जैविक खेती में भी काम आता है, जो एक अलग आमदनी का जरिया है.
भोजन और देखभाल में भी किफायती
थारपारकर गाय को जौ, ज्वार, बाजरा, गेहूं, मक्का और सूखी घास जैसे सामान्य चारे से ही पोषण मिल जाता है. खर्चा कम और फायदा ज्यादा, यही इस नस्ल की सबसे बड़ी खासियत है. स्वरुप सिंह बताते हैं कि अब ये नस्ल धीरे-धीरे दुर्लभ होती जा रही है, पूरे देश में मुश्किल से 2-3 हजार गायें ही बची हैं.