भारत-नेपाल सीमा पर तैनात सशस्त्र सीमा बल (SSB) अब सिर्फ सुरक्षा का जिम्मा ही नहीं निभा रही, बल्कि गांवों के पशुधन की हिफाजत में भी जुट गई है. बरसात के मौसम में जब खुरपका-मुंहपका जैसे संक्रामक रोग पशुओं को जकड़ लेते हैं, तब लखीमुपर खीरी जिले के पलिया में एसएसबी की 39वीं बटालियन के जवानों ने गांव-गांव जाकर मोर्चा संभाल लिया है. वह पशुओं को संक्रामक बीमारियों से बचाने के लिये कैंप लगाकर पशुपालकों को जागरूक कर रहे हैं.
गांवों में लगा है एसएसबी का फ्री कैंप
कमांडेंट रवींद्र कुमार राजेश्वरी का कहना है कि भारत एक कृषि प्रधान देश है और गांवों की आत्मा उसके पशुधन में बसती है. हमारी जिम्मेदारी सिर्फ सीमा की सुरक्षा नहीं, बल्कि गांव की सेहत का भी ध्यान रखना है. यही सेवा भाव की भावना को लेकर इंडो नेपाल बॉर्डर पर बसे सुडा, बजाही गांवों में अभियान चलाकर निःशुल्क पशुओं का स्वाथ्य परीक्षण पशु चिकित्सक डॉ. शालिनी परिहार के द्वारा किया जा रहा है. इस शिविर में अबतक कुल 31 पशुओं का इलाज किया जा चुका है.
ऐसे करें खुरपका रोग की पहचान
बरसात आते ही खुरपका मुहपका बीमारी पशुओं का तेजी से फैलती हैं इसको लेकर डॉ. शालिनी परिहार ने किसानो को जागरूक करते हुये बताया इस रोग के विषाणु बीमार पशु की लार, मुंह, खुर व थनों में पड़े फफोलों में पाए जाते हैं. इस बिमारी में रोग ग्रस्त पशु को 104 से 106 डिग्री तक बुखार हो जाता है. जिसके कारण पशु खाना-पीना बंद कर देता है और मुंह से लार बहने लगती है. इसके अलावा पशु के मुंह के अंदर, खुरों के बीच और कभी-कभी थनों पर छाले पड़ जाते हैं. जो कि बाद में ये घाव का रूप ले लेते हैं.समय रहते इलाज न हो तो ये घाव बन जाते हैं और पशु चलने-फिरने में भी असमर्थ हो जाता है.
पशुपालक बरतें ये सावधानियां
डॉ. शालिनी परिहार ने बताया बीमार पशु को अन्य पशुओं से अलग रखें. इसके साथ ही बीमार पशुओं के आवागमन पर रोक लगा देनी चाहिए.इसमें ध्यान देने की बात यह है कि रोग से प्रभावित क्षेत्र से पशु नहीं खरीदना चाहिए.पशु का बाड़ा साफ सुथरा रखना चाहिए. अगर कोई पशु बीमार हो कर मृत हो जाता है तो मृत पशु को जमीन के नीचे चूना डालकर दबाना चाहिए.