अगर आप डेयरी का काम शुरू करने की सोच रहे हैं तो इस भैंस का नाम जरूर जानिए. इसका नाम है नीली रावी. ये भैंस न सिर्फ हर दिन अच्छा दूध देती है, बल्कि रिकॉर्ड भी बना चुकी है. पंजाब की इस देसी नस्ल की मांग अब भारत से निकलकर पाकिस्तान, बांग्लादेश, चीन, श्रीलंका, फिलीपींस, ब्राजील और वेनेजुएला तक पहुंच गई है. चलिए जानते हैं, क्या है इस नस्ल की खासियत?
दूध देने का रिकॉर्ड बना चुकी है ये भैंस
पशु विशेषज्ञों के अनुसार एक नीली रावी भैंस साल भर में औसतन 2000 किलो दूध देती है. लेकिन बाताया जाता है कि एक बार इस नस्ल की भैंस ने 378 दिनों तक दूध दिया था और औसतन 6535 किलो दूध देकर सबको चौंका दिया था. यही वजह है कि आज नीली रावी डेयरी कारोबारियों की पहली पसंद बन रही है. इसके पालने में कम देखभाल, बढ़िया दूध और तगड़ी कमाई होती है. देखा जाए तो डेयरी कारोबार करने वालों की पहली पसंद यह भैंस बनती जा रही है.
कम दूध, ज्यादा दाम
इस भैंस पालन की सबसे बड़ी ताकत यही है कि कम खर्च. जहां एक ओर गाय को 18 से 20 लीटर दूध देना पड़ता है ताकि कुछ ढंग की कमाई हो, वहीं नीली रावी जैसी भैंस 13 से 14 लीटर दूध में ही वही आमदनी दिला देती है. मतलब यह कि कम खर्च, कम मेहनत और उतनी ही या उससे ज्यादा कमाई दिला सकती है. वहीं पंजाब के पशुपालकों का मानना है कि अगर आप को दूध का धंधा करना चाह रहे हैं तो गाय पालने के साथ साथ भैस पालन भी जरूर करें इससे बढ़िया कमाई हो सकती है.
इस नस्ल की पहचान कैसे करें
इस नस्ल की पहचान करना भी आसान है. क्योंकि इसकी नीली आंखें, सफेद बरौनियां, और माथे, थन, पूंछ, और पैरों पर सफेद निशान इसे दूसरी भैंसों से अलग बनाते हैं. इसकी बनावट मजबूत होती है और खास बात यह है कि गर्मी-सर्दी आसानी से झेल जाती है.
गाय की अपेक्षा भैंस ज्यादा सहनशील
पशु विशेषज्ञों के अनुसार गाय को रखने में ज्यादा साफ-सफाई, दवाइयां, पंखा और दिनभर देखरेख की जरूरत होती है. जबकि भैंस ज्यादा सहनशील होती है और उतनी देखभाल नहीं मांगती.
देश के साथ- साथ विदेशों में मांग
नीली रावी भैंस अब सिर्फ पंजाब या हरियाणा तक सीमित नहीं रही. इसकी मांग देश के साथ-साथ दुनिया में भी तेजी से बढ़ रही है. अगर आप टिकाऊ और फायदे वाला पशुपालन मॉडल ढूंढ रहे हैं, तो नीली रावी आपके लिए शानदार विकल्प बन सकती है.