पशुपालन करने वाले किसान अपनी दुधारू पशुओं की अधिकांश जरुरतों को पूरा कर लेते हैं, लेकिन उनके लिए सबसे बड़ी समस्या होती है हरा चारा. ऐसे में हम आपको एक ऐसी फसल के बारे में बता रहे हैं, जो हरे चारे की समस्या का हल कर सकती है और महीनों तक पशुओं को चारे की कमी नहीं होने देगी.
यह फसल भारत के ज्यादातर हिस्सों के मौसम के लिए उपयुक्त है, जिससे इसकी खेती करना आसान हो जाता है. किसान इस चारे की फसल से न सिर्फ पशुओं को चारा दे सकते हैं, बल्कि इसे बेचकर अच्छी कमाई भी कर सकते हैं. इस चारा फसल का नाम अफ्रीकन टॉल मेज (अफ्रीकी मक्का) है, जो एक हरा चारा है. यह प्रोटीन और अधिक शुष्क पदार्थ से भरपूर है, जो पशुओं के आहार के लिए बहुत लाभकारी है.
तापमान की जरूरत
अफ्रीकन टॉल मेज नामक यह फसल 20 से 35 डिग्री सेल्सियस तापमान में अच्छी तरह बढ़ती है और 9 से 11 फीट तक लंबी हो सकती है. इसे गहरी, रेतीली मिट्टी में अच्छे से उगाया जा सकता है और यह ज्यादा पानी सोख सकती है. बारिश के मौसम में इस फसल को हर 10 से 15 दिन में और गर्मियों में हर 6 से 8 दिन में पानी देना होता है.
कब मिलेगा चारा
कम समय में तैयार होने वाली फसल अफ्रीकन टॉल मेज की 60 से 75 दिनों बाद कटाई कर ली जाती है. इस फसल में उगने वाला भुट्टा शुरुआती अवस्था में होता है, जिसे चारे के तौर पर इस्तेमाल किया जा सकता है. इस फसल से पशुपालन करने वाले किसान को 12 से 16 टन हरा चारा प्रति एकड़ तक मिल सकता है और सींची हुई हालत में यह लगभग 40 से 45 टन प्रति हेक्टेयर तक उपज देती है.
दूध बढ़ाने में असरदार
अफ्रीकन मक्का का चारा गाय-भैंसों, बकरियों और भेड़ों के लिए बहुत पौष्टिक होता है, जो उन्हें ऊर्जा प्रदान करता है और दूध उत्पादन को बढ़ाने में सहायक होता है. इसके साथ ही यह चारा दूध की क्वालिटी को भी बेहतर बनाने में मदद करता है.