एलोवेरा एक औषधीय पौधा है, जिसका इस्तेमाल सौंदर्य प्रसाधन, आयुर्वेदिक दवाइयों और स्वास्थ्य से जुड़े उत्पादों को बनाने में किया जाता है. कोरोना महामारी के दौर में एलोवेरा की मांग में भारी इजाफा देखने को मिला था, वहीं अब कम पानी कम देखभाल और ज्यादा मुनाफे की वजह से किसान एलोवेरा की खेती में दिलचस्पी दिखा रहे हैं. अगर आप भी एलोवेरा की खेती करने का मन बना रहें हैं, तो पहले जाने इससे जुड़ी हर एक बात.
खेती के फायदे
जैसे जैसे एलोवेरा के फायदें लोगों को पता चल रहे हैं, वैसे ही ये खेती एक फायदेमंद बिजनेस बन रहा है. एक बार पौधा लगाने के बाद यह पांच सालों तक मुनाफा देता है. यही कारण है कि लोग इसकी खेती की ओर आकर्षित हो रहे हैं.
एलोवेरा के प्रकार
दुनिभर में एलोवेरा की लगभग 300 प्रजातियां पाई जाती हैं, लेकिन इनमें से केवल 5 ही औषधीय गुणों से भरपूर होती हैं. एलोवेरा के 11 प्रकार जहारीले और 284 प्रकार में सिर्फ जीरो से 15 फीसदी तक औषधीय गुण होते हैं.
इनमें ‘एलो बार्बाडेन्सीस मिलर’ सबसे ज्यादा प्रचलित है, जबकि ‘मुसब्बर अर्बोरेसेंस’ जलन कम करने में मददगार होता है. भारत में आईसी111271, एएल-1 हाईब्रिड और आईसी111269 जैसी प्रजातियों की खेती सबसे अधिक होती है.
बढ़ती मांग
एलोवेरा से बनने वाले प्रोडक्ट्स की लगातार बजार में मांग बनी रहती है. इसकी खेती शुरू करने से पहले किसान किसी कंपनी के साथ पहले ही सौदा कर ले, तो उन्हें अधिक लाभ मिल सकता है.
एलोवेरा की खेती करने वाले किसान पतंजलि, डाबर, हिमालय और अन्य आयुर्वेदिक सामान बनाने वाली कंपनियों को भी अपनी फसल बेच सकते हैं.
खेती के लिए आवश्यक जानकारी
एलोवेरा की खेती के लिए दोमट और रेतीली मिट्टी उपयुक्त होती है, लेकिन जलभराव वाली जमीन से बचना चाहिए. यह कम बारिश वाले शुष्क क्षेत्र में ज्यादा अच्छी उपज देगा है.
इसकी खेती सालभर में कभी भी की जा सकती है, लेकिन जुलाई का महीना सबसे बेहतर माना जाता है. इसकी रोपाई करने के कम से कम 8 महीने में पौधे तैयार होते हैं. इस फसल की खास बात है कि न तो इसमें कोई रोग पाया जाता है और न ही कोई जानवर इसे खाकर फसल को नुकसान पहुंचाता है.
कम लागत, अधिक मुनाफा
एक एकड़ जमीन में लगभग 11,000 पौधे लगाए जा सकते हैं, जिससे 25 टन तक पैदावार होती है. बाजार में एक टन एलोवेरा की कीमत 20,000 से 30,000 रुपये तक हो सकती है. इस प्रकार, एक एकड़ से 5 लाख रुपये तक की कमाई संभव है.