ओटमील बना किसानों की कमाई का नया जरिया, जानें इसकी खेती के फायदे

ओटमील को सुपरफूड माना जाता है क्योंकि इसमें फाइबर, प्रोटीन, विटामिन और एंटीऑक्सीडेंट्स की भरपूर मात्रा होती है.

Agra | Updated On: 7 Mar, 2025 | 06:00 PM

ओट्स (जई), जिसे दलिया के नाम से भी जाना जाता है. आजकल स्वास्थ्य के प्रति जागरूक लोगों के बीच इसकी काफी डिमांड है, और बाजार में बढ़ती यह डिमांड किसानों के लिए भी काफी फायदेमंद साबित हो रही है. ओट्स की खेती कम पानी, कम देखभाल और खराब मिट्टी में भी की जा सकती है, जिससे यह पारंपरिक फसलों की तुलना में अधिक टिकाऊ और लाभकारी साबित होती है. चलिए जानते हैं किसानों के लिए इसकी खेती करना कितना फायदेमंद साबित हो सकता है.

सुपरफूड है ओटमील

ओटमील को सुपरफूड माना जाता है क्योंकि इसमें फाइबर, प्रोटीन, विटामिन और एंटीऑक्सीडेंट्स की भरपूर मात्रा होती है. यह हृदय रोगों को रोकने, वजन घटाने और ब्लड शुगर को नियंत्रित करने में काफी मददगार है. बढ़ती स्वास्थ्य जागरूकता के चलते ओटमील की मांग घरेलू और अंतरराष्ट्रीय बाज़ारों में तेजी से बढ़ रही है.

किसानों के लिए फायदेमंद

-इसकी खेती से किसानों को कम लागत में अधिक मुनाफा होता है. ओट्स की खेती में रासायनिक उर्वरकों और कीटनाशकों की आवश्यकता कम होती है, जिससे उत्पादन लागत घटती है.

-वैसे तो इसकी फसल ठंडी जलवायु में अच्छी होती है, लेकिन यह विविध जलवायु परिस्थितियों में भी अच्छी ग्रोथ कर सकती है.

-गेहूं और धान जैसी पारंपरिक फसलों के साथ ओट्स की खेती से किसानों को विभिन्न प्रकार की खेती करने का मौका मिलता है.

-हेल्थ और फिटनेस इंडस्ट्री के विस्तार के साथ ओटमील की मांग लगातार बढ़ रही है, जिससे किसानों को अच्छे दाम मिलने की संभावना रहती है.

ओट्स की खेती के लिए उपयुक्त स्थान

ओट्स की खेती के लिए ठंडी और शुष्क जलवायु सबसे अच्छी मानी जाती है. दक्षिण भारत में तापमान अधिक होने के कारण इसकी उपज अच्छी नहीं होती. जबकि उत्तर भारत में कम तापमान के चलते इसकी खेती बड़े पैमाने पर की जाती है. जई की खेती के लिए 15 से 25 डिग्री सेल्सियस तापमान को आदर्श माना जाता है.

खेती से पहले भूमि तैयारी

खेती शुरू करने से पहले खेत को अच्छी तरह तैयार करना आवश्यक है. इसके लिए खेत को 2-3 बार हैरो और कल्टीवेटर से जोतें और फिर पाटा लगाएं ताकि मिट्टी भुरभुरी हो जाए. इसके बाद, प्रति हेक्टेयर 10-15 टन कम्पोस्ट खाद मिलाएं. भूमिगत कीड़ों से सुरक्षा के लिए 25 किलो मिथाइल पैराथियॉन (2 प्रतिशत घोल) प्रति हेक्टेयर भूमि में मिलाना चाहिए. खेत तैयार होने के बाद हल्की सिंचाई (पलेवा) करें और ओट्स आने पर एक-दो बार कल्टीवेटर से जुताई करके बीज बोएं.

कटाई का समय और तरीका

किसान जई की फसल की पहली कटाई, बुवाई के 60 दिन बाद करें, और दूसरी कटाई 45 दिन बाद करें. फसल की अच्छी पुनर्वृद्धि के लिए कटाई भूमि से 4-5 सेमी ऊंचाई से करनी चाहिए. देरी से बोई गई फसल में पुनर्वृद्धि अच्छी नहीं होती है.

Published: 7 Mar, 2025 | 04:54 PM