हरे नहीं लाल रंग की यह भिंडी, किसानों के लिए है वरदान

सब्‍जी अनुसंधान के वैज्ञानिकों ने बड़ी मेहनत से इसे विकसित किया है. उनकी मानें तो काशी लालिमा भिंडी का स्‍वाद हरे रंग की भिंडी की तुलना में काफी अच्‍छा है.

Published: 21 Feb, 2025 | 05:01 PM

लाल रंग की भिंडी, सुनकर आप भी चौंक गए न, लेकिन यह भिंडी बाजार में आ गई है और यकीन मानिए किसानों के लिए फायदेमंद भी साबित हो रही है. न केवल किसानों बल्कि इस भिंडी को सेहत के लिए भी बेस्‍ट करार दिया जा रहा है. इस भिंडी को उत्‍तर प्रदेश के वाराणसी में स्थित भारतीय सब्‍जी अनुसंधान की तरफ से विकसित किया गया है. लाल रंग की इस भिंडी को काशी लालिमा नाम दिया गया है और विशेषज्ञों की मानें तो इसका सेवन दिल के लिए बेहतर हो सकता है. वहीं, अगर किसान इस भिंडी की खेती करते हैं, तो उन्‍हें भी काफी फायदा होता है.

कड़ी मेहनत के बाद हुई तैयार

सब्‍जी अनुसंधान के वैज्ञानिकों ने बड़ी मेहनत से इसे विकसित किया है. उनकी मानें तो काशी लालिमा भिंडी का स्‍वाद हरे रंग की भिंडी की तुलना में काफी अच्‍छा है. वैज्ञानिकों ने इस 23 साल की कड़ी मेहनत के बाद तैयार किया गया है. काशी लालिमा भिंडी में रोग प्रतिरोधात्‍मक क्षमता भी काफी ज्‍यादा है और इसलिए किसानों को खेती करते समय कीटनाशकों का प्रयोग नहीं करना पड़ता है. काशी लालिमा भिंडी कई पोषक तत्‍वों से भरपूर है. इस भिंडी में पोषक तत्‍वों की मात्रा इतनी ज्‍यादा है कि इसे ‘पावर हाउस’ तक कहा जाता है.

हार्ट डिजीज रहती हैं दूर

भारतीय सब्‍जी अनुसंधान के डायरेक्‍टर टीके बेहरा की मानें तो अगर इस लाल भिंडी का सेवन नियमित तौर पर किया जाए तो हार्ट डिजीज होने का जोखिम बहुत कम हो जाता है. काशी लालिमा भिंडी में सोडियम की मात्रा बहुत कम होती है. साथ ही इसमें प्रोटीन, वसा, फाइबर ,मैग्नीशियम भी भरपूर है. वहीं यह भिंडी विटामिन ए ,विटामिन सी ,विटामिन के विटामिन बी-6 जैसे पोषक तत्‍वों से भी लैस है. इसमें पाया जाने वाला एंथोसाइन रोग प्रतिरोधक क्षमता को बढ़ाता है.

फल सड़ने की बीमारी नहीं

वैज्ञानिकों के अनुसार काशी लालिमा भिंडी की वह उच्‍च किस्‍म है जिसमें पीला मोजेक वायरस के खिलाफ प्रतिरोधक क्षमता ज्‍यादा है. यह किस्म अपनी उच्च उपज, रोग प्रतिरोधक क्षमता और बेहतर स्वाद के लिए मशहूर है. यह पत्ती मुरझाने और फल सड़न जैसी बीमारियों के प्रति प्रतिरोधी होती है. काशी लालिमा भिंडी सिर्फ 30-35 दिनों में पहली तुड़ाई के लिए तैयार हो जाती है.
मध्‍य प्रदेश, गुजरात और महाराष्‍ट्र में इस तरह की भिंडी की मांग बहुत ज्‍यादा है.

किसानों के लिए फायदेमंद

इस भिंडी की बुवाई जायद के सीजन में होती है. एक एकड़ के लिए इसके चार किलोग्राम बीज काफी हैं. किसान 15 फरवरी से 15 मार्च के बीच इस भिंडी की बुवाई करके फायदा उठा सकते हैं. बुवाई के 45 दिन बाद पहली फसल आती हे. हर पौधा 20 से 22 भिंडी पैदा करता है और उत्पादन 180 क्विंटल प्रति हेक्टेयर तक पहुंच जाता है. बाजार में काशी लालिमा भिंडी, सामान्‍य भिंडी से महंगी होती है. बाजार में इसकी कीमत 200 रुपये से लेकर 500 रुपये प्रति किलो तक पहुंच जाती है. जबकि हरी भिंडी 50 रुपये प्रति किलो की दर से बिकती है.