टमाटर की गिरती कीमतों के मद्देनजर केंद्र सरकार ने बुधवार को कहा कि वह सहकारी संस्था एनसीसीएफ के माध्यम से बाजार हस्तक्षेप योजना के तहत मध्य प्रदेश में टमाटर के स्टोरेज और ट्रांसपोर्टेशन लागत की भरपाई रिफंड करेगी. कृषि मंत्री शिवराज सिंह चौहान ने एनसीसीएफ के माध्यम से राज्य में टमाटर के लिए बाजार हस्तक्षेप योजना (एमआईएस) के ट्रांसपोर्टेशन के घटकों के लागू करने को मंजूरी दे दी है.
किसानों को होगा फायदा!
एक आधिकारिक बयान में कहा गया, ‘एनसीसीएफ जल्द ही मध्य प्रदेश से ट्रांसपोर्टेशन संचालन शुरू करने की तैयारी कर रहा है.’ इस योजना के तहत, जहां उत्पादक और उपभोक्ता राज्यों के बीच शीर्ष फसलों (टमाटर, प्याज और आलू) की कीमत में अंतर है, वहां उत्पादक राज्य से अन्य उपभोक्ता राज्यों तक फसलों के भंडारण और परिवहन में होने वाली परिचालन लागत की रेफंड NAFED और NCCF जैसी केंद्रीय नोडल एजेंसियों को की जाएगी. बयान में कहा गया कि ऐसा उत्पादक राज्यों के किसानों के हित में किया गया है.
कौड़ियों के दाम टमाटर
पिछले कुछ महीनों पहले टमाटर की कीमतों में आग लगी हुई थी. लेकिन अब हालात एकदम बदल चुके हैं. अब टमाटर कौड़ियों के दाम बिक रहे हैं. ओडिशा से लेकर तेलंगाना और मध्य प्रदेश तक टमाटर के किसान परेशान हैं. ओडिशा में जहां किसान अपने जानवरों को टमाटर खिला रहे हैं तो वहीं मध्य प्रदेश के किसान इसे मिट्टी की कीमत पर बेचने को मजबूर हैं. कुछ महीनों पहले थोक मंडियों में टमाटर की कीमतें 50 रुपये प्रति किलोग्राम बिक रहा था.
किसान हुए परेशान
अब बहुत-सी मंडियों में स्थिति एकदम उलट है और किसानों को 3 से 5 रुपये प्रति किलोग्राम के हिसाब से किसान उपज बेचने को मजबूर हैं. मध्य प्रदेश में भी टमाटर की कीमतें बहुत कम हो गई हैं. फुटकर मंडियों में उपभोक्ता को अभी भी एक किलो टमाटर खरीदने के लिए 30 रुपये से ज्यादा कीमत चुकानी पड़ रही हैं. वहीं किसानों का आरोप है कि सरकार की तरफ से अभी तक ऐसा कोई कदम नहीं उठाया गया है जिससे उन्हें थोड़ी राहत मिल सके.
मजबूरी में बेच रहे फसल
ओडिशा के गंजम जिले में टमाटर किसानों को भारी नुकसान का सामना करना पड़ रहा है, क्योंकि बाजार में 10 से 15 रुपये प्रति किलोग्राम की दर से बिकने के बावजूद, खेत स्तर पर कीमतें 3 से 5 रुपये प्रति किलोग्राम तक गिर गई हैं. बुनियादी उत्पादन लागत भी वसूल न कर पाने के कारण कई किसान मजबूरी में अपनी फसल बेचने को मजबूर हो गए हैं, जबकि कुछ ने तो अपनी फसल ही छोड़ दी है.