डायबिटीज मरीजों के लिए मददगार है ये चावल, IRRI ने विकसित की नई किस्म

इंटरनेशनल राइस रिसर्च इंस्टीट्यूट (IRRI) के वैज्ञानिकों ने एक नई चावल किस्म विकसित की है. ग्लाइसेमिक इंडेक्स (GI) कम होने से यह डायबिटीज के मरीजों के लिए काफी फायदेमंद साबित होसकते हैं.

Noida | Updated On: 11 Mar, 2025 | 04:08 PM

भारत के कई देशों में चावल मुख्य आहार है, लेकिन बढ़ती डायबिटीज़ की समस्या के कारण लोग इसे खाने से हिचकिचाने लगे हैं. इसका कारण यह है कि चावल का ग्लाइसेमिक इंडेक्स (GI) अधिक होता है, जिससे शरीर में शुगर का स्तर तेजी से बढ़ता है.  लेकिन अब, इंटरनेशनल राइस रिसर्च इंस्टीट्यूट (IRRI) के वैज्ञानिकों ने एक ऐसी नई किस्म विकसित की है, जिसका GI मात्र 44 है, जो इसे डायबिटीज़ के मरीजों के लिए भी सुरक्षित बनाता है. यही नहीं, इस चावल में 16 फीसदी प्रोटीन होता है, जो आम चावल की तुलना में दोगुनी है. यह उन लोगों के लिए भी बेहतरीन विकल्प हो सकता है, जो अपने आहार में अधिक प्रोटीन शामिल करना चाहते हैं.

क्या है ग्लाइसेमिक इंडेक्स (GI)?

ग्लाइसेमिक इंडेक्स (GI) किसी भी खाद्य पदार्थ के सेवन के बाद शरीर में शुगर के स्तर को बढ़ाने की गति को दर्शाता है.
70 से अधिक GI वाले खाद्य पदार्थ जल्दी पच जाते हैं और शुगर का स्तर तेजी से बढ़ाते हैं.
55 से कम GI वाले खाद्य पदार्थ धीरे-धीरे पचते हैं और शुगर को नियंत्रित रखने में मदद करते हैं.

कैसे विकसित हुआ यह खास चावल?

IRRI के वैज्ञानिकों ने 1.32 लाख चावल के किस्मों पर रिसर्च किया और उनमें से कम GI वाले चावल की पहचान की. उन्होंने ऐसे जीन खोजे जो चावल के GI को नियंत्रित करते हैं और फिर पारंपरिक तरीके से इन जीन को सांबा मसूरी चावल में शामिल किया.

जिसे न केवल एक बेहतर क्वालिटी वाले चावल विकसित हुआ, बल्कि इसकी उत्पादन क्षमता भी बढ़ गई. यह चावल प्रति हेक्टेयर 6.2 टन तक उत्पादन देने में सक्षम है और यह सिर्फ 110 दिनों में तैयार हो जाता है, तो वहीं आम चावल की फसल को पकने में 140 दिन लगते हैं.

इस चावल के फायदे

डायबिटीज के लिए सुरक्षित – ब्लड शुगर को नियंत्रित रखने में मदद करता है.

हाई प्रोटीन – 16% प्रोटीन के साथ यह चावल पोषण से भरपूर है.

बेहतर उत्पादन – प्रति हेक्टेयर 6.2 टन तक फसल देने की क्षमता.

जल्दी पकने वाला – 110 दिनों में तैयार, जिससे किसानों को जल्दी लाभ मिलेगा.

किसानों और एक्स्पोर्टर्स के लिए फायदे

यह नया चावल न केवल उपभोक्ताओं बल्कि किसानों और एक्स्पोर्टर्स  के लिए भी फायदेमंद साबित हो सकता है.  सामान्य गैर-बासमती चावल की कीमत 30,582.90 प्रति टन होती है, तो वहीं लो-GI चावल की अंतरराष्ट्रीय कीमत 1,39,971 प्रति टन तक हो सकती है.  यह अंतर बताता है कि इस नई किस्म के चावल की बाजार में काफी अधिक मांग हो सकती है, जिससे किसानों को भी अधिक लाभ मिलेगा.

ओडिशा में पायलट प्रोजेक्ट शुरू होगा

IRRI भारत में इस चावल को लोकप्रिय बनाने के लिए भारतीय कृषि अनुसंधान परिषद (ICAR) के साथ काम कर रहा है. 2026 तक ओडिशा में इस चावल का पायलट उत्पादन शुरू किया जाएगा. इसके अलावा, ओडिशा सरकार एक विशेष चावल प्रोसेसिंग सेंटरबनाने जा रही हैं, जहां महिलाओं के स्वयं सहायता समूह (SHGs) को रोजगार मिलेगा और वे चावल की प्रोसेसिंग और पैकेजिंग कर सकेंगी. इसके साथ ही यह पहल महिलाओं को रोज़गार और आर्थिक स्वतंत्रता देने में भी मददगार साबित होगी.

चावल और मिलेट्स का मेल

IRRI सिर्फ लो-GI चावल तक सीमित नहीं है, बल्कि वे चावल और बाजरा मिलाकर नए उत्पाद विकसित की योजना भी बना रहे हैं. यह स्वास्थ्य के प्रति जागरूक लोगों के लिए बेहतरीन विकल्प साबित हो सकते हैं

नए उत्पादों में शामिल होंगे:-
लो-GI चावल के फ्लेक्स (पोहा)
इंस्टेंट लो-GI चावल
चावल और बाजरा मिलाकर बने न्यूट्रिशनल फूड प्रोडक्ट्स

लो-GI चावल का महत्व

भारत में 101 मिलियन लोग टाइप-2 डायबिटीज से पीड़ित हैं और 130 मिलियन लोग प्रीडायबिटिक हैं. ऐसे में लो-GI चावल का उत्पादन और उपयोग स्वास्थ्य के लिए बहुत फायदेमंद हो सकता है.

 

 

Published: 11 Mar, 2025 | 12:00 PM