हरे-हरे घासनुमा पत्ते और सफेद फूलों से लदा यह पौधा पहली नजर में आपको बेहद सुंदर लग सकता है, लेकिन देशभर के किसानों के लिए यह पौधा सिरदर्द बन चुका है. इस पौधे को देखते ही किसान इसे जड़ से काट फेंकते हैं, लेकिन कुछ समय बाद यह पौधा दोबारा हरा-भरा हो जाता है.
इस घास या पौधे को कांग्रेस घास, सफेद टोपी, चटक चांदनी, गंधी बूटी, गाजर घास, जंगली घास या पार्थेनियम हिस्टेरोफोरस के नाम से जाना जाता है. यह पौधा फसलों को नुकसान पहुंचाने के साथ-साथ उपजाऊ जमीन को भी बंजर बना रहा है. एक रिपोर्ट के अनुसार, भारत में लगभग 350 लाख हेक्टेयर क्षेत्र में अब तक यह पौधा या घास फैल चुका है. जानिए कैसे करें इस पौधे का अंत.
सेहत के लिए खतरनाक
जमीन ही नहीं, बल्कि यह पौधा मनुष्यों और पशुओं के लिए भी बेहद घातक है. इस पौधे के संपर्क में आने से एलर्जी, बुखार, दमा, डर्मेटाइटिस, एक्जिमा जैसी बीमारियां हो सकती हैं. वहीं, यदि पशु इसे खा लें, तो कई बार यह उनके लिए जानलेवा साबित हो सकता है.
कैसे भारत की जमीन पर उगा यह पौधा?
यह पौधा लगभग 1 लाख अन्य पौधों को जन्म देने में सक्षम है. हवा के जरिए यह एक स्थान से दूसरे स्थान तक तेजी से फैल जाता है. इस पौधे को भारत में सबसे पहले 1956 में पुणे (महाराष्ट्र) में देखा गया था. यह वही समय था जब देश को अकाल का सामना करना पड़ रहा था. उस दौरान भारत ने अमेरिका से गेहूं का आयात किया था, और उसी के साथ यह खरपतवार भी देश में आ गई. दक्षिणी भारत में उपयोग किए गए गेहूं के साथ यह जंगली पौधा भी खेतों में उग गया. इसके बाद से यह दक्षिण से होते हुए पूरे भारत में महामारी की तरह फैल रहा है.
कैसे करें इसे खत्म
जमीन को बंजर बनाने वाले इस पौधे को खत्म करने का सबसे आसान तरीका है कि इसे जड़ से उखाड़कर पहले सूखने दें और फिर इसे जला दें. ऐसा इसलिए क्योंकि इस पौधे से लगभग 15,000 से 25,000 सूक्ष्म बीज पैदा होते हैं, जो हवा की वजह से दूर-दूर तक फैल जाते हैं. वहीं, इसे खत्म करने के लिए नमक के पानी का लगातार छिड़काव भी प्रभावी होता है. इसके अलावा, 10 से 15 मिलीलीटर ग्लाइफोसेट नामक दवा को एक लीटर पानी में मिलाकर छिड़कने से भी यह पौधा खत्म हो जाता है.