गर्मी की इन फसलों में लगते हैं कुछ खास कीट, जानिए बचाव के तरीके

कृषि विशेषज्ञों के अनुसार गर्मी की फसलों में कुछ खास कीट लग जाते हैं जिन्‍हें अगर समय रहते नियंत्रित कर लिया जाए तो बेहतर रहता है. सब्जियों की फसलों खासतौर पर भिंडी में इनका प्रकोप ज्‍यादा देखा जाता है.

Agra | Published: 24 Mar, 2025 | 03:36 PM

गुजरात के किसान इन दिनों काफी खुश हैं. इस साल गर्मी की फसलों की बुआई अच्छी रही है. सौराष्‍ट्र क्षेत्र में खास तौर पर तिल की फसल लगाई गई है. इसके बाद मूंगफली, बाजरा, मूंग, उड़द, सब्जी फसलें जिनमें ग्वार, तोरई, चोली, आदि शामिल हैं. साथ ही साथ किसानों ने चारा भी बोया है. विशेषज्ञों के अनुसार गर्मी की फसलों में फसल उत्पादन बेहतर होता है. इसकी मुख्‍य वजह है मानसून के मौसम की तुलना में इस मौसम में बीमारियों और कीटों का प्रकोप कम रहता है. इसके बाद भी तापमान ज्‍यादा होने की वजह से कुछ कीटों जैसे थ्रिप्स और व्हाइटफ्लाई का प्रकोप बढ़ जाता है. सब्जियों की फसलों खासतौर पर भिंडी में इनका प्रकोप ज्‍यादा देखा जाता है.

फसलों में लगते हैं ये खास कीट

कृषि विशेषज्ञों के अनुसार गर्मी की फसलों में कुछ खास कीट लग जाते हैं जिन्‍हें अगर समय रहते नियंत्रित कर लिया जाए तो बेहतर रहता है. एक नजर डालिए इन कीटों के बारे में और इनसे बचाव के तरीकों पर:

तिल की फसल के लीफहॉपर्स

किसान इस कीट को तिल की ‘सिर बांधने वाली इल्‍ली’ के नाम से भी जानते हैं. फसल रोपण के तुरंत बाद खेत में हल्के पिंजरे रखने से कीटों के लार्वा को खत्‍म करके इन्‍हें नियंत्रित किया जा सकता है. अगर जरूरत हो तो किवनालफॉस 20 मि.ली. या क्लोरपाइरीफोस + साइपरमेथ्रिन 20 मि.ली. या इमामेक्टिन बेंजोएट 7 ग्राम या क्लोरेंट्रानिलिपोल 5 मिलीलीटर में से किसी एक को 10 लीटर पानी में मिलाकर छिड़काव करने से भी यह कीट नियंत्रित हो जाता है.

सफेद मक्खी

यह कीट तिल, मूंगफली, बाजरा, सब्जियों आदि की फसलों को प्रभावित करता है. इस पतंगे के पंख सफेद होते हैं. प्यूपा चपटे, अंडाकार और पपड़ीदार होते हैं. किशोर और वयस्क, यह कीट दोनों ही पत्तियों के निचले हिस्से को खाते हैं और रस चूसते हैं. इसकी वजह से पत्ती पर पीले धब्बे बन जाते हैं. ज्‍यादा प्रकोप होने पर पत्तियां पीली पड़ जाती हैं. प्यूपा एक चिपचिपा शहद जैसा पदार्थ छोड़ता है जो पत्ती की सतह और फूलों पर चढ़ जाता है. इसकी वजह से पौधे की वृद्धि रुक ​​जाती है. इसके अलावा, यह घुन भिंडी में पीली शिरा रोग के कैरियर के तौर पर काम करता है.

स्‍कैब रोग

यह कीट भिंडी की फसल में सबसे ज्‍यादा होता है. इसके कैरियर व्‍यस्क कीट लाल रंग के जबकि किशोर नारंगी रंग के होते हैं. ये कीट पत्ती के नीचे की तरफ रेशम के धागों जैसा एक महीन जाल बनाते हैं और पत्ती से रस चूसते हैं. इससे पत्ती पर सफेद-पीले धब्बे बन जाते हैं. अगर प्रकोप ज्‍यादा हो तो सभी पत्तियां पीली और भूरी हो जाती हैं और आखिरी में गिर जाती हैं. स्कैब के प्रभावी नियंत्रण के लिए एथियान 50 फीसदी, 10 ईसी, 25 मिली या प्रोपरगाइट 57 ईसी 10 मिली या फेनाजाक्विन 10 ईसी 10 मिली औषधि 10 ली पानी में मिलाकर छिड़काव करें.

भिंडी का तना और फल खाने वाली इल्‍ली

यह इल्‍ली हल्के सफेद रंग की होती है जिसका सिर काला होता है. इसके शरीर पर काले और भूरे रंग के धब्बे होते हैं. इसलिए इसे ‘कैबरी कैटरपिलर’ के नाम से भी जाना जाता है. फसल की शुरुआत में इल्ली, भिंडी की नई फलियों और कलियों को खा जाती हैं. इससे फलियां मुरझाकर सिकुड़ जाती हैं. जब भिंडी पर फल आता है तो इल्‍ली उसे भी नष्‍ट कर देती है.

कैसे करें बचाव

भिंडी की सड़ी हुई फलियों को इल्लियों सहित काटकर नष्‍ट करने से इल्लियों के संक्रमण को नियंत्रित किया जा सकता है. इल्‍ली से क्षतिग्रस्त भिंडी की फलियों को इकट्ठा करके उन्हें मिट्टी में गहराई तक दबा देना, हर दूसरे या तीसरे दिन भिंडी की निराई-गुड़ाई करने से इल्‍ली से होने वाले नुकसान को कम किया जा सकता है.

भिंडी की फसल में कीटों के नियंत्रण के लिए हर्बल कीटनाशकों जैसे कि 40 मिलीलीटर में 0.15 फीसदी एजाडिरेक्टिन युक्त नर्मदा नीम आधारित दवा का प्रयोग करना चाहिए. इसके अलावा 10 लीटर पानी में 15 दिन के अंतराल पर चार बार छिड़काव करना चाहिए. रासायनिक औषधि क्विनालफोस 25 ईसी (20 मिली प्रति 10 लीटर पानी) या इमामेक्टिन बेंजोएट 5 एसजी (10 ग्राम/10 लीटर पानी) या क्लोरेंट्रानिलिप्रोल 18.5 एससी (3 मिली/10 लीटर पानी) का एक साथ छिड़काव करना चाहिए.