आज के समय में खेती से उतनी कमाई नहीं हो रही, जितनी मेहनत किसान कर रहा है. ऊपर से मौसम की मार और बढ़ती लागत ने हालात और मुश्किल बना दिए हैं. ऐसे में किसानों के लिए भेड़ पालन एक बेहतर विकल्प के रूप में सामने आया है, जो कम खर्च में अच्छा मुनाफा दे सकता है. इस काम की खास बात यह है कि इसे कम जगह और सीमित संसाधनों में भी शुरू किया जा सकता है. भेड़ से दूध मिलता है, ऊन भी, और जब वह बच्चे देती है तो आमदनी और बढ़ जाती है. इसके अलावा, भेड़ का मांस बाजार में महंगे दामों पर बिकता है.
भारत में कई ऐसी भेड़ों की नस्लें हैं जो दूध और ऊन दोनों देती हैं. इतना ही नहीं अगर भेड़ों को सही खाना, साफ-सफाई और इलाज मिलता रहे, तो वे सालों तक कमाई का जरिया बन सकती हैं. यही वजह है कि आज के वक्त में भेड़ पालन एक मजबूत विकल्प बनकर सामने आया है. हालांकि भारत में भेड़ पालन कोई नया धंधा नहीं है. सदियों से गांवों के किसान इसे करते आ रहे हैं. लेकिन अब वक्त है इसे परंपरा से निकालकर प्रोफेशन की शक्ल देने का और प्रोफेशन तब बनता है जब जानकारी, विज्ञान और समझदारी शामिल हो.
भेड़ पालन में लागत और कमाई
मान लीजिए आपने 20 भेड़ें खरीदीं. एक भेड़ की कीमत नस्ल के हिसाब से करीब 3,000 से 8,000 रुपये के बीच होती है. यानी 20 भेड़ों पर कुल खर्च 1 लाख से 1.5 लाख रुपये तक आएगा.अब बात तबेले की. भेड़ों को रखने के लिए करीब 500 वर्ग फुट जगह चाहिए, जिसे बनाने में लगभग 30,000 से 40,000 रुपये का खर्च आता है.
वहीं कमाई देखा जाए तो एक भेड़ साल में औसतन 2 से 3 किलो ऊन देती है. ऊन की कीमत बाजार में करीब 150 से 250 रुपये प्रति किलो है. इस हिसाब से 20 भेड़ों से सालाना 15,000 से 20,000 रुपये तक की आमदनी सिर्फ ऊन से हो सकती है. इसके अलावा, कुछ प्रजातियां दूध भी देती हैं और साथ ही हर साल बच्चे भी होते हैं, जिन्हें बेचकर अच्छा फायदा हो सकता है. ऊपर से गोबर का उपयोग खेत में खाद के रूप में या बेचकर किया जा सकता.
भरत में पाई जाने वाली नस्लें
भेड़ो की भारत में कई उन्नत प्रजातियां मिलती हैं. इनमें मालपुरा, जैसलमेरी, मंडिया, मारवाड़ी और बीकानेरी जैसी नस्लें प्रमुख हैं, जो न सिर्फ ऊन देती हैं, बल्कि दूध भी देती हैं. इनके अतिरिक्त कुछ विदेशी नस्लें भी हैं, जिनमें मैरिनो और कोरिडायल प्रमुख हैं. हालांकि इनका देखरेख थोड़ा ज्यादा करना पड़ता है, लेकिन ये मुनाफा भी बड़ा देती हैं.
देखरेख कैसे करें?
देख- रेख की बात करें तो भेड़ सिर्फ भूसा खाकर नहीं पलती बल्कि उसे खुली हवा, खुले मैदान, और रोजना घुमाने की जरूरत पड़ती है. अगर ये गंदगी में रही तो बीमार पड़ेगी, और बीमार पड़ी तो धंधा चौपट हो जाएगा. इसके लिए विशेष साफ-सफाई, नियमित टीकाकरण और पोषणयुक्त आहार जरूरी है.