भारत में खाद्य तेलों के रिफाइनिंग सेक्टर को राहत देने के लिए सॉल्वेंट एक्सट्रैक्टर्स एसोसिएशन ऑफ इंडिया (SEA) ने केंद्र सरकार से एक बड़ी मांग की है. SEA ने उपभोक्ता मामले, खाद्य एवं सार्वजनिक वितरण मंत्री प्रहलाद जोशी से अनुरोध किया है कि आरबीडी पामोलीन तेल पर आयात शुल्क को मौजूदा 32.5 प्रतिशत से बढ़ाकर 40 प्रतिशत कर दिया जाए.
SEA का मानना है कि इससे घरेलू रिफाइनिंग उद्योग को मजबूती मिलेगी और सस्ते विदेशी तेलों से मिल रही चुनौती कम होगी.
कच्चे पाम ऑयल और रिफाइंड पामोलीन में फर्क बढ़ाने की जरूरत
SEA के अध्यक्ष संजीव अस्थाना ने मंत्री को भेजे पत्र में कहा कि इस समय कच्चे पाम ऑयल और रिफाइंड पामोलीन के आयात शुल्क में केवल 7.5 प्रतिशत का फर्क है, जो बहुत कम है. उन्होंने सुझाव दिया कि इस अंतर को कम से कम 15 प्रतिशत किया जाना चाहिए ताकि कच्चे तेल का आयात बढ़े और सीधे रिफाइंड तेल का आयात घटे.
उनका कहना है कि इस बदलाव से न तो देश में कुल आयात पर असर पड़ेगा और न ही खाद्य तेलों की महंगाई पर कोई खास प्रभाव आएगा.
मेक इन इंडिया को मिलेगा बढ़ावा
संजीव अस्थाना ने जोर देकर कहा कि यह कदम प्रधानमंत्री के “मेक इन इंडिया” अभियान के अनुरूप होगा. सस्ता रिफाइंड पामोलीन आने से भारत का घरेलू रिफाइनिंग सेक्टर कमजोर हो रहा है, जो लंबे समय में देश के लिए नुकसानदायक हो सकता है.
उन्होंने बताया कि भारत पारंपरिक रूप से इंडोनेशिया और मलेशिया से भारी मात्रा में पाम ऑयल का आयात करता है. भारतीय रिफाइनर कच्चे पाम ऑयल को खरीदकर देश में रिफाइनिंग करते हैं, जिससे न सिर्फ वैल्यू एडिशन होता है बल्कि रोजगार भी बनते हैं.
सीधा रिफाइंड तेल आयात बना रहा है चुनौती
आज के समय में कच्चे और रिफाइंड तेलों के बीच महज 7.5 फीसदी शुल्क अंतर की वजह से विदेशी रिफाइंड पामोलीन का सीधा आयात बढ़ गया है. SEA के मुताबिक, फिलहाल RBD पामोलीन का दाम कच्चे पाम ऑयल से करीब 50 डॉलर प्रति टन सस्ता है.
इससे भारत का रिफाइनिंग उद्योग संकट में आ गया है और अगर स्थिति में सुधार नहीं किया गया तो घरेलू उद्योग को भारी नुकसान हो सकता है.
पड़ोसी देशों की रणनीति भी बनी चिंता
रिपोर्ट्स के मुताबिक, मलेशिया और इंडोनेशिया अपनी प्रोसेसिंग इंडस्ट्री को बढ़ावा देने के लिए कच्चे पाम ऑयल पर ऊंचा निर्यात शुल्क लगाते हैं. इससे उन देशों से रिफाइंड पामोलीन का निर्यात बढ़ गया है.
भारत को भी अपने घरेलू उद्योग की रक्षा के लिए शुल्क नीति में बदलाव करना होगा ताकि स्थानीय रिफाइनिंग इकाइयां मजबूती से टिक सकें.