प्याज और लहसुन दुनिया भर में उगाई जाने वाली महत्वपूर्ण फसलें हैं. साथ ही ये फसलें अपने स्वाद, आहार फायदों के अलावा औषधीय फायदों के लिए भी जानी जाती हैं. भारत में प्याज की कटाई तीन मौसमों में की जाती है. प्याज की कटाई का सीजन शुरू हो चुका है और इस समय कई जगहों पर नई फसल की आवक भी जारी है. आज हम आपको प्याज की एक ऐसी किस्म के बारे में बताने जा रहे हैं जो कम समय में किसानों को ज्यादा उपज देती हैं और इससे उन्हें काफी फायदा हो सकता है.
2013 में हुई थी तैयार
प्याज की यह किस्म है पूसा ऋद्धि प्याज और इसे रबी के सीजन 2023-24 के दौरान जयपुर के आछोजई गांव में पहली बार प्रदर्शित किया गया था. प्याज की इस किस्म को कृषि प्रौद्योगिकी मूल्यांकन एवं हस्तांतरण केंद्र, आईसीएआर-भारतीय कृषि अनुसंधान संस्थान और आईसीएआर-कृषि विज्ञान केंद्र, चोमू ने मिलकर डेवलप किया है. टीएसपी यानी Tribal Sub Plan (TSP) के तहत लाभार्थी किसानों ने इस किस्म को अपनाया जो सघन, गहरे लाल रंग की और एंटी-ऑक्सीडेंट से भरपूर है.
स्टेट वैरायटी रिलीज कमेटी (एसवीआरसी) की तरफ से साल 2013 में दिल्ली और एनसीआर के लिए जारी की गई थीं. इसने राजस्थान में 4.8-6.3 सेमी के औसत भूमध्यरेखीय व्यास और 70-100 ग्राम के बीच के कंद के वजन के साथ बेहतर प्रदर्शन किया है. यह प्याज अपने तीखेपन, स्टोरेज और निर्यात के लिए उपयुक्तता और 32 टन/हेक्टेयर की औसत उपज के लिए जानी जाने वाली इस किस्म ने प्रभावशाली परिणाम दिखाए हैं.
किसानों को दी गई ट्रेनिंग
प्याज की खेती के तरीकों का प्रशिक्षण लेने के बाद, किसानों ने 33.5 टन/हेक्टेयर की औसत उपज हासिल की. यह पिछली फसलों की तुलना में 25-35 फीसदी ज्यादा है. पूसा ऋद्धि प्याज की किस्म ने स्थानीय किस्मों की तुलना में बेहतर प्रदर्शन किया है. साथ ही इसकी पैदावार भी ज्यादा है और बाजार में इसकी कीमत भी बेहतर है. इस प्याज की क्वालिटी भी बेहतरीन है. रिटर्न के मामले में, किसानों ने प्रति बीघा (1000 वर्ग मीटर) 25,000 रुपये से 30,000 रुपये के बीच कमाया, जिसमें लाभ-लागत अनुपात 2.5 से 3.5 के बीच रहा. इसकी सफलता के परिणामस्वरूप, गांव के सभी किसानों ने चालू वर्ष में इस किस्म की मजबूत मांग व्यक्त की है.
रबी के प्याज की सबसे ज्यादा मांग
भारत में प्याज की फसल तीन सीजन में काटी जाती है जिसमें खरीफ की 20 फीसदी फसल अक्टूबर-नवंबर तक, फरवरी मार्च में 20 फीसदी खरीफ की ऐसी फसल की कटाई होती है जिसे देर से बोया जाता है. जबकि एक बड़ा हिस्सा यानी 60 फीसदी फसल रबी के मौसम में काटी जाती है जो अप्रैल से मई के बीच होता है. खरीफ और देर से खरीफ के प्याज की बाजार में काफी मांग होती है. ऐसे में इसकी खपत भी जल्दी हो जाती है. जबकि बड़ी मात्रा में काटे गए रबी प्याज बाजार में अधिक मात्रा में आते हैं.
भारत में उत्पादकता कम
अक्टूबर-नवंबर में कीमतों में बढ़ोतरी के दौरान उपलब्धता के लिए स्टोरेज की जरूरत होती है. साल भर आपूर्ति और मांग सुनिश्चित करने के लिए, उत्पादकता और कंद की गुणवत्ता में सुधार के लिए किसानों को सही प्लानिंग करने की जरूरत है. खराब बीज गुणवत्ता, कीट, रोग और मौसम के तनाव जैसी वजहों के चलते भारत की औसत प्याज उपज 18 टन प्रति हेक्टेयर है और यह बाकी प्याज उत्पादक देशों की तुलना में कम है. फसल प्रबंधन और स्टोरेज के तरीकों में सुधार करके उत्पादकता बढ़ाई जा सकती है. साथ ही रबी प्याज की कीमतों को स्थिर किया जा सकता है.