देश में इस साल खरीफ फसल की तैयारी से पहले ही उर्वरकों (fertilizers) का संकट गहराता नजर आ रहा है. 1 अप्रैल 2025 तक भारत में खाद का स्टॉक पिछले तीन सालों में सबसे कम स्तर पर पहुंच गया है. आंकड़े बताते हैं कि जहां एक ओर खाद की खपत में 9 फीसदी की बढ़ोतरी दर्ज हुई है, वहीं शुरुआती स्टॉक 25 फीसदी घटकर सिर्फ 107.98 लाख टन रह गया है.
सरकार ने 2025 के खरीफ सीजन के लिए कुल 330.03 लाख टन खाद की मांग का अनुमान लगाया है, जो पिछले साल के 320 लाख टन की तुलना में करीब 3.2% ज्यादा है. इस अनुमान में 185.4 लाख टन यूरिया, 56.99 लाख टन डाई-अमोनियम फॉस्फेट (DAP), 11.13 लाख टन म्यूरिएट ऑफ पोटाश (MOP) और 76.51 लाख टन कॉम्प्लेक्स खाद (जो कई पोषक तत्वों का मिश्रण होता है) शामिल हैं.
स्टॉक घटा, मांग बढ़ी-कैसे होगा संतुलन?
सरकार लगातार रासायनिक खाद की खपत कम करने की कोशिश कर रही है और किसानों को जैविक और वैकल्पिक विकल्पों की ओर प्रोत्साहित कर रही है. लेकिन इसके बावजूद मांग लगातार बढ़ रही है. सरकारी आंकड़ों के अनुसार, 1 अप्रैल 2024 को खाद का शुरुआती स्टॉक 144.1 लाख टन था, जो इस साल 25 फीसदी घटकर 107.98 लाख टन रह गया है. यह स्टॉक 2022 के बाद से सबसे कम है, जब शुरुआती स्टॉक केवल 71.08 लाख टन था.
किसानों की परेशानी बढ़ी
गर्मी की शुरुआत के साथ ही किसान खरीफ फसल की तैयारी में जुट गए हैं. ऐसे में अगर समय पर खाद उपलब्ध नहीं हुई तो बीज बोने से लेकर फसल की शुरुआती वृद्धि तक हर कदम पर दिक्कत हो सकती है. खाद की कमी का सीधा असर फसल की पैदावार और किसानों की कमाई पर पड़ेगा.
सरकार के लिए अग्निपरीक्षा
खाद की कमी से निपटना अब सरकार के लिए एक बड़ी चुनौती बन गया है. समय पर आयात, वितरण और वैकल्पिक समाधान तैयार करने की जरूरत है ताकि किसानों की मेहनत पर पानी न फिर जाए. विशेषज्ञ मानते हैं कि अगर जल्द ही आवश्यक कदम नहीं उठाए गए, तो खरीफ सीजन में खाद को लेकर भारी मारामारी हो सकती है.