राजस्थान में किसानों की तरफ से हुए एक ऐलान ने सरकार की टेंशन बढ़ा दी है. किसानों ने ऐलान कर दिया है कि 15 मार्च तक वो सरसों को 6000 रुपये प्रति क्विंटल से कम पर नहीं बेचेंगे. उनका कहना है कि इसके नतीजों का विश्लेषण करने के बाद ही वो अपनी अगली कार्रवाई का फैसला करेंगे. अभी इस समय सरसों की कीमतें इसके न्यूनतम समर्थन मूल्य (MSP) 5,950 रुपये प्रति क्विंटल से नीचे चल रही हैं.
सरसों किसानों ने ली प्रतिज्ञा
अखबार द हिंदू बिजनेस लाइन ने किसान महापंचायत के अध्यक्ष रामपाल जाट के हवाले से लिखा, ‘हमनें सरसों को 6,000 रुपये से कम पर नहीं बेचने का फैसला किया है और प्रमुख जिलों में फसल के सभी उत्पादकों तक यह संदेश फैलाएंगे क्योंकि राजस्थान में रबी सीजन की मुख्य तिलहन फसल के रकबे में 50 प्रतिशत हिस्सेदारी है.’
उन्होंने बताया कि टोंक, अविभाजित अलवर जिलों के कई सरसों किसानों ने महाशिवरात्रि पर प्रतिज्ञा ली थी और वे उस कीमत से कम पर बेचकर इसका उल्लंघन नहीं करेंगे. जाट ने बताया, ‘हम यह सुनिश्चित करने के लिए पिछले कुछ वर्षों से अपना ‘सरसों सत्याग्रह’ जारी रखे हुए हैं कि किसानों को कम से कम MSP मिले क्योंकि सरकार ने अभी तक कानूनी गारंटी की मांग को स्वीकार नहीं किया है.’
कहां पर होता कितना उत्पादन
राज्य सरकार ने चालू फसल के लिए सरसों उत्पादन 55.57 लाख टन होने का अनुमान लगाया है, जबकि केंद्र ने अभी तक अपना अनुमान जारी नहीं किया है. राज्य सरकार ने कहा है कि टोंक में सरसों का उत्पादन 5.51 लाख टन, गंगानगर में 4.85 लाख टन, हनुमानगढ़ में 3.79 लाख टन, सवाईमाधोपुर में 3.03 लाख टन, अलवर में 2.88 लाख टन, बीकानेर में 2.69 लाख टन और भरतपुर में 2.37 लाख टन होने का अनुमान है. इस साल सरसों के कुल रकबे में गिरावट आई है, जिसका कारण विशेषज्ञों का मानना है कि अक्टूबर के अंत तक लगातार बारिश होना है.
सरसों उत्पादन में आगे राजस्थान
भारत में 2023-24 में 132.6 लाख टन सरसों का उत्पादन हुआ था जिसमें राजस्थान का योगदान 57.58 लाख टन रहा और यह कुल उत्पादन का 43 प्रतिशत है. जाट ने यह भी मांग की कि केंद्र को एक दिन में किसान से 25 क्विंटल की सीमा और 90 दिनों की ऑफिशियल विंडो जैसी बाधाओं को दूर करना चाहिए ताकि कीमतों में सुधार हो सके. उनका कहना था कि बारदाने की कमी, कर्मचारियों की हड़ताल जैसी गलत वजहों का हवाला देकर वास्तविक खरीद अवधि 70 दिन भी नहीं रह जाती है. यूं तो सरसों की आवक फरवरी के मध्य से शुरू हो जाती है, लेकिन खरीद अप्रैल से ही शुरू होती है.
रामपाल जाट के अनुसार पाम ऑयल जैसी सस्ती वस्तुओं में मिलावट और आयात शुल्क को न्यूनतम करने के कारण सरसों के दाम गिरते हैं. जाट ने कहा कि साल 1984 तक देश खाद्य तेल में आत्मनिर्भर था, जिसके कारण तेल आयात करने की आवश्यकता नहीं थी. उसके बाद नीति के कारण 85 फीसदी का आयात शुल्क धीरे-धीरे घटाकर जीरो कर दिया गया. इससे तेल आयात में इजाफा हुआ.
अभी तक जारी है सरसों सत्याग्रह
उनका कहना था कि साल 1991 की उदारीकरण नीति के कारण आयात में वृद्धि हुई. इस दिशा में कानून में ढील देने का प्रावधान किया गया. इससे खाद्य तेल में ‘ब्लेंडिंग’ शुरू हो गई और सरकार की तरफ से इसके जरिये मिलावट की अनुमति दी गई. सरसों के तेल के मामले में यह प्रावधान साल 2020 में वापस ले लिया गया, लेकिन मिलावट को रोकने के लिए कोई सार्थक प्रयास नहीं होने से लोगों को अभी भी शुद्ध सरसों का तेल उपलब्ध नहीं हो पा रहा है.
उनका कहना था कि चूंकि सरसों उत्पादकों को सही कीमत नहीं मिल रही है इसलिए किसान महापंचायत ने 2023 में नई दिल्ली में ‘सरसों सत्याग्रह’ का आयोजन किया था. तब से अब तक कई ज्ञापन सौंपे गए हैं, लेकिन कोई सार्थक परिणाम नहीं निकला है.