कपास की फसल में गुलाबी सुंडी को कैसे रोकें, जानें रोकथाम के दो खास उपाय

गुलाबी सुंडी मुख्‍य तौर पर हवा के जरिये से फैलती है. संक्रमित फसलों के अवशेष जिन्हें किसान अक्सर ईंधन के तौर पर प्रयोग करने के लिए खेतों में छोड़ देते हैं. गुलाबी सुंडी लार्वा को भी पनपने देता है.

Noida | Updated On: 24 Mar, 2025 | 02:32 PM

पिछले करीब चार सालों से पंजाब, हरियाणा और राजस्थान के उत्‍तरी राज्यों में घातक गुलाबी सुंडी ने कपास की फसलों को तबाह करता आ रहा है. यह कीट बीटी कॉटन की फसलों को अपना निशाना बनाता है. दिन पर दिन इसके हमलों से किसान इतने परेशान हो गए कि कुछ किसानों ने इसकी खेती से ही तौबा कर ली. सबसे दिलचस्‍प बात है कि फसल उस कीट का शिकार हो रही है, जिसके प्रतिरोध के लिए इसे बनाया गया था. गुलाबी सुंडी ने सिर्फ कपास की ही नहीं बल्कि कुछ और फसलों को भी निशाना बनाया. मगर कपास के मामले में इसका नुकसान इतना ज्‍यादा रहा कि कुछ किसान आत्‍महत्‍या जैसा कदम उठाने से पीछे नहीं हटे.

कपास की खेती से पीछे हटते किसान

कपास पर गुलाबी सुंडी की वजह से उत्‍तर भारत के किसान इससे पीछे हटने लगे. जहां साल 2023 में कपास की खेती इन राज्‍यों में 16 लाख हेक्टेयर थी तो 2024 में यह घटकर सिर्फ 10 लाख हेक्टेयर रह गई. गुलाबी सुंडी कपास के बॉलवर्म में अपना लार्वा छोड़ देता है. इसकी वजह से लिंट कट जाता है और दाग लग जाता है. इसके बाद इसे इस्तेमाल नहीं किया जा सकता है. साल 2017-18 में पहली बार इसका प्रकोप देखा गया था.

इंडियन एक्‍सप्रेस की रिपोर्ट के अनुसार सुंडी के हमलों को रोकने के लिए प्रभावी तकनीकें मौजूद हैं, लेकिन इन तरीकों को किसानों ने बड़े स्‍तर पर अपनाया नहीं है. गुलाबी सुंडी पहली बार उत्‍तर भारत में 2017-18 के मौसम में हरियाणा और पंजाब के कुछ स्थानों पर दिखाई दिया यहां मुख्‍यतौर पर बीटी कॉटन की खेती की जाती है. साल 2021 तक, इस कीट ने पंजाब के कई जिलों में काफी नुकसान पहुंचाना शुरू कर दिया, जिसमें बठिंडा, मानसा और मुक्तसर शामिल हैं.

पंजाब कृषि विभाग ने बताया कि साल 2021 में कपास उत्पादन के तहत लगभग 54 फीसदी क्षेत्र में सुंडी के संक्रमण की अलग-अलग डिग्री नजर आई थी. उस साल राजस्थान के आस-पास के क्षेत्रों में भी इस सुंडी का संक्रमण पाया गया. साल 2021 से पंजाब, राजस्‍थान और हरियाणा में गुलाबी सुंडी के हमलों में हर साल इजाफा हुआ है. राजस्थान के श्री गंगानगर और हनुमानगढ़ और हरियाणा में सिरसा, हिसार, जींद और फतेहाबाद इससे प्रभावित जिले हैं. इस साल बुवाई के दो महीने बाद इन राज्यों में गुलाबी सुंडी संक्रमण की रिपोर्टें सामने आ रही हैं.

गुलाबी सुंडी के संक्रमण की वजह

गुलाबी सुंडी मुख्‍य तौर पर हवा के जरिये से फैलती है. संक्रमित फसलों के अवशेष जिन्हें किसान अक्सर ईंधन के तौर पर प्रयोग करने के लिए खेतों में छोड़ देते हैं. गुलाबी सुंडी लार्वा को भी पनपने देता है. बाद में यही लार्वा आने वाले फसलों को भी चौपट कर सकता है. वहीं संक्रमित कपास के बीज, इसके फैलने की एक और बड़ी वजह हैं. लुधियाना स्थित कृषि विश्‍वविद्यालय के विशेषज्ञों का कहना है कि अगर एक बार फसल में गुलाबी सुंडी का पता चल जाए तो फिर कीटनाशकों का छिड़काव करना चाहिए. बार-बार छिड़काव करने पर ये अप्रभावित कपास के गुच्छों को बचा सकते हैं लेकिन अगर किसी गुच्‍छे में पहले से कीट दाखिल हो चुके हैं तो फिर उनको बचा पाना मुश्किल है.

कैसे रोकें सुंडी का प्रकोप

विशेषज्ञों का सुझाव है कि जिन खेतों में गुलाबी सुंडी का संक्रमण हो, वहां कम से कम एक मौसम के लिए कपास की फसल नहीं लगाई जानी चाहिए. इसके अलावा, किसानों को सलाह दी जाती है कि वे जल्द से जल्द अवशेषों को जला दें. साथ ही वो यह सुनिश्चित करें कि स्वस्थ और अस्वस्थ बीज (या कपास) के बीच कोई मिश्रण न हो. कपास कारखानों पर भी यही सलाह लागू होती है कि स्‍वस्‍थ और अस्‍वथ बीजों को अलग-अलग रखा जाए. पीबीडब्ल्यू प्रकोप को रोकने के लिए दो प्राथमिक तकनीकें हैं और दोनों ही कीटों की प्रजनन प्रक्रिया को बाधित करने पर निर्भर करती हैं. इनकी लागत करीब 3,300 से 3,400 रुपये प्रति एकड़ है.

पश्चिमी देशों में पॉपुलर हैं ये टेक्निक

पहली तकनीक के तहत कपास के पौधों के तने पर टहनियों के पास एक तरह के पेस्ट का प्रयोग किया जाता है. इस तकनीक को पर्यावरण के अनुकूल बताया जाता है और यह पश्चिमी देशों में फसल सुरक्षा का ‘गोल्‍ड स्‍टैंडर्ड’ माना जाता है. विशेषज्ञों के अनुसार यह पेस्ट सिंथेटिक फेरोमोन छोड़ता है जो नर कीटों को आकर्षित करते हैं. लेकिन इन फेरोमोन की व्यापक उपस्थिति की वजह से ये नर कीट मादा कीटों को ढूंढ़ने में असमर्थ होते हैं. इससे प्रजनन प्रक्रिया बाधित होती है और सुंडी की आबादी कम होती है.

करीब 7000 कपास के पौधों वाले एक एकड़ के खेत के लिए, पेस्ट को पूरे खेत में फैले 350-400 पौधों पर, कुल तीन बार – बुवाई के 45-50 दिन, 80 दिन और 110 दिन बाद लगाया जाना चाहिए. दूसरी तकनीक, जिसे पीबी नॉट तकनीक के नाम से जाना जाता है, भी इसी सिद्धांत पर काम करती है. इसमें, फेरोमोन डिस्पेंसर के साथ धागे की गांठें कपास के खेतों पर रणनीतिक रूप से रखी जाती हैं ताकि नर पतंगे भ्रम में पड़ जाएं और वो मादाओं को न खोज सकें. इस डिस्पेंसर को कपास के पौधों पर तब बांधना होता है जब वे 45-50 दिन के हो जाते हैं.

Published: 24 Mar, 2025 | 02:32 PM