चित्तूर से सांसद दग्गुमल्ला प्रसाद राव ने केंद्र सरकार से एक बड़ी मांग की है. सांसद ने प्राकृतिक आपदाओं से प्रभावित आम किसानों की सहायता के लिए तुरंत कदम उठाने का अनुरोध किया है. साथ ही उन्होंने कहा है कि केंद्र सरकार को एक समर्पित मैंगो बोर्ड की स्थापना करनी चाहिए. इससे आम उत्पादकों का कल्याण बढ़ेगा और निर्यात को भी बढ़ावा मिलेगा. प्रसाद राव ने आम की खेती में आंध्र प्रदेश राज्य के दबदबे पर भी रोशनी डाली. राज्य के 3.7 लाख हेक्टेयर से ज्यादा जमीन पर इस फसल की खेती होती है.
रूस-यूक्रेन युद्ध का असर
सांसद दग्गुमल्ला ने जोर देकर कहा कि कृष्णा, चित्तूर और गोदावरी जैसे जिले आम उत्पादन के लिए महत्वपूर्ण हैं. सांसद के मुताबिक चित्तूर तोतापुरी किस्म के आम और पल्प के निर्यात का एक महत्वपूर्ण स्रोत हैं. यहां से ये आम दुनिया के हर हिस्से खासकर यूक्रेन को भेजे जाते हैं. लेकिन रूस-यूक्रेन संघर्ष की वजह से निर्यात पर गंभीर असर पड़ा है. इससे किसानों के सामने आर्थिक संकट पैदा हो गया है. प्रसाद राव ने आम के पल्प पर यूरोपियन यूनियन की तरफ से लगाए गए उच्च आयात शुल्क पर चिंता जताई है. यह आयात शुल्क अफ्रीकी देशों में मौजूद स्टैंडर्ड्स से कहीं ज्यादा है.
15 साल में गिरी उपज
सांसद ने केंद्र सरकार से इन बहुत ज्यादा शुल्कों को कम करने के लिए यूरोपियन यूनियन देशों के साथ बातचीत शुरू करने की अपील की है. उनकी मानें तो अगर ऐसा होता है तो यह आंध्र प्रदेश में आम उत्पादकों के लिए बहुत ज्यादा प्रतिस्पर्धी और उत्पादक होने के लिए अच्छा होगा. राज्य के बागवानी विभाग के अनुसार, चित्तूर में करीब लगभग 1.7 लाख हेक्टेयर में आम की खेती होती है. यह सालाना 12 लाख टन आम पैदा करने में सक्षम है. हालांकि, पिछले 15 सालों में आम की उपज में गिरावट हुई है और यह मुश्किल से 30 फीसदी के आंकड़ें को पार कर पाई है. साल 2024 में, यह घटकर सिर्फ 20 फीसदी ही रह गई.
आम का इतिहास है पुराना
रायलसीमा, खास तौर पर चित्तूर में आम की खेती की शुरुआत दूसरी शताब्दी ईसा पूर्व के सातवाहन काल से मानी जाती है. इस फसल को विजयनगर शासकों का भी संरक्षण हासिल था. कहा जाता है कि आम के बाग किलों, मंदिरों और महलों के आसपास उगाए जाते थे. आज भी, विजयनगर साम्राज्य के समय में बनाए गए चंद्रगिरी किले और पेनुकोंडा किले के आसपास आम के पेड़ बिखरे पड़े हैं.
19वीं सदी के मध्य से ही अंग्रेजों ने गन्ने के साथ आम को भारत से सबसे अच्छी व्यावसायिक वस्तुओं में से एक माना. उन्हें लंदन निर्यात किया और हिमालय की तलहटी और गंगा और ब्रह्मपुत्र के डेल्टा में इसकी खेती को प्रोत्साहित किया. किसानों का कहना है कि चित्तूर का आर्द्र लेकिन शुष्क क्षेत्र बंपर फसल देने में सबसे आगे रहा और आज भी ऐसा ही है.